अपनी अपनी औकात

 



भारत ने पश्चिम को जाने कितना 'लगान' दिया, 'तारे ज़मीन पर' ही नहीं दिन में भी दिखाई देने लगे, पर आस्कर की 'पहेली' अपने से नहीं सुलझी । और जब गोरे हाथों ने झोंपड़पट्टी के एक कुत्ते को दुलार दिया या एक गोरी में ने कटे ओंठ वाली पिंकी को मुस्कराना सिखा दिया तो आस्करों की लाइन लग गई । इससे पहले भी गोरे एटनबरो ने एक अधनंगे फकीर को छू दिया तो आस्कर बरस पड़े । कोई बात नहीं, किसी भी रूप में भारत आस्कर से जुड़ा तो सही । हो सकता है किसी शुद्ध भारतीय फ़िल्म को भी आस्कर मिल जाए । अब तो जय हो का क्षण चल रहा है । हम उसी का जाप कर रहे थे कि तोताराम आ गया ।


 


आते ही तोताराम ने पूछा- कहो तो 'जय हो' के जाप में बाधा डालने की गुस्ताखी करूँ ? हमने कहा- मना करने पर भी तुम मानने वाले तो हो नहीं, कहो । तो बोला- इस टकले आस्कर में एक टकले आदमी की मूर्ति के अलावा कुछ पैसा-धेला भी मिलाता है या वैसे ही अमरीका आने-जाने का खर्चा करवा देते हैं ? हमने कहा- भाई, हमने तो सुना है कि आस्कर में पैसा धेला कुछ नहीं मिलता । बस, नाम ही नाम है । तोताराम बोला- तब तो केट विंसलेट ने ठीक ही किया । हमने पूछा- क्या ठीक किया ? तो बोला- तुझे पता है, सह अभिनेत्री का आस्कर पाने वाली केट विंसलेट ने कहा है कि वह अपने आस्कर को टायलेट में रखेगी । दिखा दी ना आस्कर को उसकी औकात !


 


हमने कहा- तोताराम, तू टायलेट को घटिया जगह मत समझ । टायलेट ही सबसे सुरक्षित जगह है । किसी बड़े आदमी को फोन करो तो पता चलता है कि साहब टायलेट में हैं । रेल में टीटी से बचने के लिए टायलेट ही सबसे सुरक्षित जगह है । बड़े आदमी टायलेट में ही अध्ययन भी करते हैं । जिसे कब्ज़ की शिकायत हो उसे बड़े-बड़े क्रांतिकारी विचार भी टायलेट में ही आते हैं जब वह मालावातरण की प्रतीक्षा कर रहा होता है । तुझे पता है, ब्रिटेन के प्रधान मंत्री टोनी ब्लेयर ने चेरी ब्लेयर को टायलेट में ही प्रपोज़ किया था । ब्रिटेन के एक महान प्रबंधक ने सुझाव दिया है कि प्लेन में टायलेट यूज़ करनेवाले से हर बार एक पौंड लिया जाए । वैसे किसी के कपड़े ख़राब होने लगेंगे तो वह एक क्या, दस पौंड दे देगा । अगर चिदंबरम जी को ख्याल आ जाता तो वे इसी पर टेक्स लगा कर राजकोषीय घाटा पूरा कर लेते । आज कल तो कहा जाता है कि किसी की हैसियत का अंदाज़ लगाना हो तो उसका ड्राइंग रूम नहीं, उसका टायलेट देखो । माइकल जेक्सन जब भारत आया था तो उसने ठाकरे जी का 'सामना' पढ़ने की बजाय उनका टायलेट यूज़ किया था । सो विंसलेट ने आस्कर को टायलेट में स्थापित करके आस्कर को सम्मान ही दिया है । यदि टैगोर का नोबल पुरस्कार वाला पदक टायलेट में रखा होता तो चोरी नहीं होता ।


 


हमने कहा- तो एक नया टायलेट ही बनवा लेते हैं । सिलसिला चालू हो गया है, पता नहीं कब कौन एक-आध आस्कर भिड़ा जाए । (व्यंग्यकार/लेखक के अपने विचार है)


रमेश जोशी 


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