राजस्थान के चुनावों के विस्तृत परिणाम अखबार में पढ़ ही रहे थे कि तोताराम प्रकट हुआ, बोला- भाई साहब, चाय मँगवाइए, आपका लघु भ्राता बसंती की इज्ज़त बचा कर सकुशल लौट आया है । हमने कहा- तोताराम, राज्य में ३२ जिले हैं और दिगंबर सिंह उर्फ़ बसंती की इज्ज़त ३५२४ वोटों से बच गयी । हर जिले से समझ ले कि तेरे जैसे ५-५ मर्द भी डीग-कुम्हेर गए होंगे तो हर एक ने २०-२२ वोटों का योगदान दिया होगा । अगर अपने जिले से ५ आदमी न भी जाते तो भी दिगंबर सिंह उर्फ़ बसंती की इज्ज़त आराम से बच जाती । वैसे दिगंबर का अर्थ निर्वस्त्र भी होता है सो अगर कुछ ऐसा वैसा हो भी जाता तो भी क्या फ़र्क पड़ता था पर देख यहाँ तो ज़रा से सहारे के अभाव में चीर-हरण ही हो गया -भरी सभा में । कांग्रेस अध्यक्ष सी.पी. जोशी मात्र एक वोट से इज्ज़त उतरवा बैठे । यदि तू ही नाथद्वारा चला जाता तो दिगंबर का तो कुछ बिगड़ता नहीं पर हाँ, जोशीजी की यूँ मिट्टी पलीद नहीं होती । नीरज ने जो कहा वही हो गया- एक तार की दूरी है बस दामन और कफ़न में । और फिर एक दूसरे जोशीजी और हैं लक्षमण गढ़ वाले, जो मात्र ३४ वोटों से मात खा गए । दो आदमी इधर भी चले जाते तो इस पंछी की नैया भी पार हो जाती ।
तोताराम बोला- देख मास्टर! मुझे राजनीति में कोई रुचि नहीं है । और फिर तुम्हारे कांग्रेस अध्यक्ष के घर में ही तो थे श्रीनाथजी । सारे राज्य में घूमते फिरे मगर श्रीनाथ जी के एक बार से ज्यादा धोक नहीं लगाई वरना एक वोट का क्या श्रीनाथजी ख़ुद ही डाल आते एक वोट तो । वैसे ठीक भी रहा, सबको पता चल जाएगा कि एक वोट की भी कीमत होती है । इससे यह भी शिक्षा मिलती है कि अपने एक वोट को पटाने की बजाय दूसरे के दो वोट बिगाड़ना अधिक महत्वपूर्ण है । इस सिद्धांत को ख़ुद की नाक कटवाकर दूसरे के सगुन बिगाड़ना कहते हैं । और फिर जोशीजी ओवर कोंफिडेंस में भी तो मार खा गए । एक बार पुकारा भी तो नहीं हमें । यदि पुकारते तो क्या हम नहीं जाते ? डूबते गजराज को बचाने के लिए तो भगवान नंगे पैरों दौड़े चले गए थे ।
(लेखक के अपने विचार हैं)
रमेश जोशी
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