जातक की लग्न कुंडली


ज्योतिषाचार्य : रश्मि चौधरी


किसी भी जातक की लग्न कुंडली के 12भाव उसके जीवन चरित्र का (जन्म से लेकर मृत्यु तक ) पूरा नक्शा होते हैँ
इनमे से प्रथम , चतुर्थ , सप्तम और द्वादश भावों को हम बहुत ही संवेदनशील भाव कह सकते हैँ ये भाव ऐसे भाव हैं जिनका सीधा सीधा संबंध जातक के “स्व ” से होता है.।
प्रथम भाव -जातक का जन्म ,  और व्यक्तित्व , आचार विचार
चतुर्थ भाव -जातक का घरेलू जीवन और घरेलू वातावरण (विवाह से पूर्व का )
सप्तम भाव -जातक का विवाह और जीवन साथी
अष्टम भाव -जातक की मृत्यु ..और मृत्यु का प्रकार , विवाहेतर जीवन कन्या के लिए सौभाग्य भी तथा द्वादश भाव शैया सुख अय्याशी और भोग विलास का भाव भी है अब लेते हैं मंगल को ..तो चूंकि मंगल एक तामसिक ग्रह और क्रूर ग्रह भी है साथ ही मंगल जैसा ग्रह जो ऊर्जा पराक्रम शक्ति का कारक भी है
तो यदि मंगल इन भावों में होगा और उसका बल भी अधिक हैं तो जातक के अंदर अतिरिक्त शक्ति ऊर्जा भी देगा साथ ही कुंडली के ये भाव जिन मनोभावों से संबंध रखते हैं उन मनोभावों में बहुत अधिक बढ़ोत्तरी कर देगा
जिसका जातक के जीवन पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा
जैसे लग्न में मंगल होगा तो जातक बहुत जल्दबाज और आक्रामक सोच वाला होगा
इसी तरह सभी भावों के जाने
चूंकि 1,4,7,8,12 भाव अति संवेदन शील और मंगल एक तामसिक ग्रह तो इनसंवेदन शील और जातक के  “स्व “से संबंधित  भावों में मंगल का होना शुभ नहीँ माना गया हैं
मैने अनुभव में देखा है.कि ऐसी स्थिति में मंगल पर यदि क्रूर ग्रहों का प्रभाव हैं तभी ज़्यादा अनिष्ट कारी होता है
जिन जातकों की कुंडली में द्वादश या अष्टम मंगल हो और उस पर राहु का प्रभाव भी आ जायें तो अष्टम भाव गत मंगल वाले जातक के जीवन में दुर्घटनाएं ज़रूर घटेगी और द्वादश भाव गत मंगल वाला जातक दूसरों के जीवन में.दुर्घटना का कारण बनेगा
वो अपनी अय्याशी के चलते किसी का मर्डर करने की भी हिम्मत कर सकता है।
मंगली योग ज्योतिष का बहुत अहम भाग हैं
बहुत संक्षेप में लिखा हैं
अपने अनुभव के अनुसार
सब कुछ लिखना संभव नहीं 
ये मेंरे स्वयं के विचार हैं कुंडली में मंगल योग के बारे में
हर कोई इससे सहमत हो ऐसा नहीँ मानती मैं