मद्यपान, नाइकोटिन एवं सिगरेट धूम्रपान संबंद्ध विकृति


 


डॉ. शिवाली मित्तल 
(psychologist)
9414543057 


मद्यपान का सेवन आज समाज को बुरी तरह से प्रभावित कर रहा है, जिसका सेवन कम आयु के बच्चे भी करते हैं तथा साथ ही यह युवा पीढी अंधकार में धकेल रही है, मद्यपान एक ऐसी विकृति ;(Disorder)  है, जो सिर्फ पीने वाले व्यक्ति को ही प्रभावित नही करता बल्कि हत्या, बलात्कार (Rape) , आत्महत्या, दुर्घटना के प्रमुख कारण भी बन गया है। पीने की बात के कारण व्यक्ति में मनोवैज्ञानिक क्षुब्धता (Psychological disturbances) उत्पन्न हो जाती है। उसमें समायोजन संबंधी तरह-तरह की कठिनाइया उत्पन्न हो जाती है। व्यक्ति में सामाजिक एवं आर्थिक क्रिया-कलापों में काफी (Disturbances) उत्पन्न हो जाता है।


 


मद्यपान का वैधानिक स्वरूप (Clinical Picture of Alcoholism) 


जो व्यक्ति मद्यपान का सेवन अधिक मात्रा में करते है उनका (Higher brain centers) उच्च मस्तिष्कीय केन्द्र अल्कोहल से इतना अधिक प्रभावित हो जाता है कि इनके सही निर्णय लेने की क्षमता लगभग समाप्त हो जाती हैं। इनका (Self-control) आत्म-नियत्रंण समाप्त हो जाता हैं। इनका (Motor Coordination) क्रियात्मक समन्वय ढीला पड जाता हैं। तथा उनमें सिरदर्द, सर्द, लक्षण होते हैं। तथा अल्कोहल को पीने के बाद कुछ देर तक अतिरिक्त शक्ति, फुर्तीलापन, खुषी तथा संतोष आदि का अनुभव होने लगता है तथा अवास्ताविकता (Unreality) की दुनिया में पहुॅच जाता है। जहाॅं न तो किसी प्रकार की चिन्ता तथा भय होता है। थोडी देर के लिए उसकी आत्म श्रद्धा (Self-esteem) अधिक बढ जाती है।


मनो चिकित्सकों के अनुसार जब ऐसे व्यक्तियों के खून में अल्कोहल की मात्रा 0.1 प्रतिशत हो जाती है, तो उस व्यक्ति को मदहोश समझा जाता है। कुछ व्यक्तियों के खून में अल्कोहल की मात्रा 0.03 प्रतिशत होती हैं, उनमें चिन्तन तथा भावनाओं में हल्का फुल्का परिवर्तन आता हैं, 0.06 प्रतिशत होने पर मानसिक, सुख एवं जोश का अनुभव होता है। 0.7 प्रतिशत होने पर वह बातूनी हो जाता है। तथा उसमें अतिरंजित संवेग उत्पन्न होने लगता है। 0.12 प्रतिशत होने पर चाल ढाल बेढंगा (खराब) हो जाता हैं। तथा चलने में उसके पैर लडखडाने लगते हैं। मद्यपान का अत्यधिक सेवन करने वाले व्यक्तियों में लैगिंक उत्तेजन अधिक पाया जाता है तथा स्मृति का कम होना पाया जाता है। मद्यपान का सेवन करने वालो में कम्पन सुबह-सुबह पीने की आदत, नियत्रंण में कमी, भोजन समय पर न करना, दिन में कई बार पीने की आदत होती है।


 


मद्यपानता की अवस्थाए (Phases of Alcoholism)



  1. वृक्कीय लक्षण अवस्था : इस अवस्था में व्यक्ति सामाजिक प्रचलनों के अनुरूप खास खास मौकों पर शराब पीता है। फिर पुनर्बलित होकर वह और अधिक पीना प्रारंभ कर देता है। पहले वह मद्यपान का सहारा केवल तनाव को कम करने के लिए कभी कभी लेता है। परन्तु धीरे धीरे तनाव की सहनशक्ति इतनी कम हो जाती है कि उन्हे बाध्य होकर मद्यपान करना पड़ता है।

  2. उत्पादक चरण या प्रारंभिक चरण : इस अवस्था में पीने वाले व्यक्ति के व्यवहार में कुछ विसामान्यता के लक्षण दिखलाई देने लगते है। इस अवस्था में पहुचने पर व्यक्ति शराब की मात्रा को बढा देता है। जिससे व्यक्ति की याददाश्त कम होने के लक्षण सामान्य रूप से देखे जा सकते है। और इस अवस्था में चुराकर तथा छिपकर शराब पीने की इच्छा तीव्र हो जाती है। इतना ही नहीं वह गट-गट पीना, शराब पीने के प्रसंग से दूर हटना इत्यादि के लक्षण दिखाई देते है।

  3. महत्वपूर्ण चरण : इसमें व्यक्ति के मदिरापान पर से नियंत्रण हट जाता है। जब वह शराब पीना प्रारंभ करता है तो वह तक पीते जाता है, जब तक कि उसकी चेतना बनी होती है। इससे उसे सामाजिक नियमों, समय तथा परिस्थिति का कोई ख्याल नहीं रहता हैं।

  4. जीर्ण अवस्था : यह वो अवस्था है, जिसमें व्यक्ति के सुबह-सुबह पीने की आदत से होता है। यह वह सोचता है कि जब तक वह पीयेगा नहीं तब तक कोई भी काम प्रारंभ नही कर सकता है। सच तो यह कि मद्यसेवी शराब को अपने जिन्दगी का एक हिस्सा मान लेता है।


 


मद्यपानता से संबंधित मनोविक्षिप्तियाॅं (Psychoses associated with Alcoholism)


*              अल्कोहल इडिओसिंक्रेटिक नशा : इसमें अल्कोहल पीने से उसके शरीर में काफी गिरावट आ जाती है, जिसके उसके व्यवहार को उग्र रूप प्रदान कर देता हैं। इससे व्यक्ति के व्यवहार में आक्रामकता की प्रवृति मानसिक दुविधा तथा स्मृतिलोप आदि के लक्षण प्रबल हो जाते है।


**            शराब वापसी प्रलाप :  इस तरह (alcoholio psychosis) मनोविकृति सबसे सामान्य होता है। यह उन शराब का सेवन करने वालो में पाया जाता है जो काफी लम्बे अरसे से शराब पीते आ रहे है। या फिर उप मद्यसेवियों में विकसित होता है। जो लम्बी अवधि तक मद्यपान करते के बाद मद्यपान का त्याग कर देते है। उन्माद ;कमसपतपनउद्ध की अवस्था उत्पन्न होने के पहले इनमें अनिद्रा एवं बेचैनी की षिकायत होती है। ऐसे में हल्की फुल्की आवाज भी व्यक्ति को काफी तेज लगती है।


***          श्रवण मतिभ्रम : इसका प्रमुख श्रवण संबंधी विभ्रम का होता है। इसमें मद्यसेवी को पहले किसी एक व्यक्ति की आवाज सुनाई देती है। कुछ सप्ताह या महीना बाद उसे एक साथ कई व्यक्तियों की आवाज सुनाई देती है। और सभी में उसकी आलोचना एवं षिकायत ही उसे सुनाई देता है। सामान्यतः इस मनोविकृति में मद्यसेवी मे एक साथ 7 दिनों तक लगातार तीव्र मात्रा में श्रवण संबंधी विभ्रम बना होता है। कभी कभी इसकी अवधि ज्यादा भी हो सकती है।


****        शराब एमेनिक डिसऑर्डर : इसमें स्मृतिदोष (memory defect) का लक्षण होता है। इस विकृति से ग्रसित मद्यसेवी तुरन्त के अनुभवों एवं घटनाओं को बिल्कुल ही भूल जाता है। जबकि अल्य दूसरे की तरह स्मृतियाॅं सामान्य होती है। ऐसे व्यक्ति विभ्रम (Hallucination) तथा समय एवं स्थान की स्थिति भ्रान्ति (Disorientation) काफी पायी जाती है। कई अध्ययनों से स्पष्ट हो गया है कि इस तरह की मनोविकृति भोजन में विटामीन B (VB)  की कमी से उत्पन्न होती है।


Proposed sub-types of Alcoholism :-


                मद्यपान में जिंदगी के आरंभिक अवस्था में प्रारंभ न होकर बाद की अवस्था में प्रारम्भ होता है, इनमें मनोवैज्ञानिक निर्भरता अधिक होती है। व्यक्ति  प्राय चिंतित रहता है, तथा इनमें समाज विरोधी व्यक्तित्व शीलगुणों की कमी पायी जाती है। ऐसे लोगो में स्वास्थ्य संबधी समस्याएॅं काफी होती है।  मद्यपानता जिसकी शुरूआत जिंदगी के आरभिंक काल में जैसे किशोरावस्था मे होता है, तथा इसमें सतत समाज विरोधी व्यवहार भी व्यक्ति में पाया जाता है। अधिकांश यह मद्यपानता पुरूषों में अधिक होता है। ऐसे लोगों में चिंता कम होती है। तथा इनका सामाजिक एवं पेषेवर कार्यी मे प्रायः विध्न-बाधाएॅं होती रहती है। इनमें मेडिकल समस्याएॅं काफी कम होती है।


Ftiology of Alcoholism  .  (मद्यपानता के कारण)


1.Biological factors (जैविक कारक) : मद्यपान रोगियों के रक्त एवं शरीर की कोशिकाएं मद्यसार पदार्थी के साथ अनुकूलित एवं अभियोजित करने की जिद्द हो जाती है। ऐसी अवस्था में वे यदि देर के लिए भी अपने आप को शराब से वंचित करते है। तो वे बैचेन हो जाते है। एवं कई तरह के शारिरिक लक्षण जैसे पसीना आना, चक्कर आना, वमन (उल्टी) की इच्छा होना, विभ्रम ;माया ऐठन आदि मुख्य रूप से देखने को मिलते है। इन शारीरिक कष्टों से छुटकारा पाने के लिये व्यक्ति पुनः शराब पीता है। कुछ अध्ययनों में यह स्पष्ट है कि मद्यपानता अनवांशिक  रूप से काफी अधिक प्रभावित होता हैं, मद्यपानी माता पिता के बच्चों, भाई बहनो में सामान्य लोगो की तुलना मे तीन से चार गुणा मद्यपानता अधिक होती है।


2 . Psychosocial factors  (मनेासामाजिक कारक) : इसमें व्यक्ति न केवल दैहिक निर्भरता बल्कि रोगी मनोवैज्ञानिक निर्भरता भी विकसीत कर लेता है। जैसे:- व्यक्तित्व कारक, व्यक्तित्व कारक, तनाव, तनाव में कमी, और शुद्धिकरण, वैवाहिक और अन्य अंतरंग सबध आदि।



  1. Socio cultural factors (सामाजिक सांस्कृतिक कारक) : समाज की संस्कृति मे प्रतिबल तनाव का सामान्य स्तर कितना है। जिन सामाजिक संस्कृतियों में असुरक्षा का स्तर अधिक होता है, उनमें एल्कोहल पीने की अधिक देखी जाती है।


Treatment of Alcoholism  (मद्यपानता के उपचार)



  1. Biological Treatment (जैविक उपचार):- इसमें इसका मुख्य उद्देश्य शराब पीने वाले शराब का सेवन करना बंद कर दे, इसके लिए कई तरह के उपचार किये जाते है। इनमें डीटाॅक्सीफिकेषन (विषहरण) तथा कई विशेष तरह के औषध (दवा) का उपयोग मुख्य है। डीटाॅक्सीफिकेषन एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें व्यसनी के शरीर से मद्यसार (शराब) को कम किया जाता है। डीटाॅक्सीफिकेषन की प्रक्रिया अस्पताल में या किसी उपचार केन्द्र पर मेडिकल पर्यवेक्षण


(चिकित्सा पर्यवेक्षण) के तहत की जाती है। इसके अतिरिक्त क्लोरडियाजेपौक्साईड (क्लोरडाएज़पोक्साइड) मचवगपकमद्ध नामक औषध का उपयोग किया जाता है। इस औषध से शराब पीने वाले व्यक्ति के पेशिये  उत्तेजन, मितली उल्टी तथा प्रत्याहार मे तो कमी आती है। कुछ चिकित्सीय औषध (बलात्कार की दवा)  का भी उपयोग किया जाता है, डिसुलफियारम  (डिसुलफिरम) एसिटालडेहिड (डिसुलफिरम), यह औषध केवल चिकित्सीय परामर्ष से ही ली जाती है।



  1. Psychosocial Treatment : मनोसामाजिक उपचार मे तीन तरह की प्रविधियाॅं से किया जाता है-

  2. समूहिक चिकित्सा (Group therapy)

  3. व्यवहारात्मक चिकित्सा (Behavioural therapy)

  4. ऐलकोहलिक ऐनोनिमस (Alcoholic anmymous)


यह प्रतिविधियां  मनोवैज्ञानिक के द्वारा व्यक्ति (ग्राहक) को दी जाती है।


Nicotine and Cigarette Smoking Related Disorder (नाइकेाटिन एवं सिगरेट धूम्रपान संबंद्व विकृति):- नाइकोटिन एक जहरीला एकालोयाड  है, जो तम्बाकू का मुख्य तत्व है। यह सिगरेट, खैनी (तम्बाकू चबाना) सिंगार, सूॅधनी (सुंघनी) आदि में पाया जाता है, नाइकोटिन का उपयोग नाइकोटिन निर्यास (निकोटीन गम) तथा नाइकोटिन फाहा (निकोटिन पैच) के रूप में किया जाता है। (निकोटीन गम) तथा (पैच) चंजबी के द्वारा व्यक्ति त्वचा के मार्ग से (निकोटीन गम) नाइकोटिन अपने शरीर के अन्दर लेता है, और खैनी (तम्बाकू चबाना) को मुख मार्ग से तथा अन्य में धूम्रपानी (धूम्रपान) माध्यम से नाइकोटिन व्यक्ति अपने शरीर के भीतर ग्रहण करता है। नाइकोटिन एक तरह का सामान्य उत्तेजक पदार्थ है।


नाइकोटिन सम्बन्ध विकृति दो प्रकार के होते है:-



  1. नाइकोटिन निर्भरता(Nicotine Dependence): निकोटिन एक ऐसा तत्व है, जिसके सेवन से व्यक्ति में तीव्र निर्भरता विकसित हो जाती है। इसके प्रमुख लक्षण जैसे:- धूम्रपान करने के लिऐ बाध्यता महसूस करना, धूम्रपान तथा निकोटिन लेने के प्रति अत्यधिक (Involuement) दिखाना, निकोटिन तथा धूम्रपान की आपूर्ति के लिऐ पर्याप्त उपाय करना, धूम्रपान कुछ दिनो तक रोक देने के बाद फिर भी धूम्रपान करने की तीव्र इच्छा दिखाना। इस तरह की समस्याएॅं धूम्रपान करने वालो में दिखती है।

  2. नाइकोटिन प्रत्याहार (Nicotine Withdrawal) : जब नाइकोटिन तथा धूम्रपान करने वाला व्यक्ति कुछ दिनों तक के लिए उसे छोड देता है, तो उसमें कुछ विशेष तरह के संलक्षण पाया जाता है। जिसे नाइकोटिन प्रत्याहार (निकोटीन वापसी) कहा जाता है। इसमें प्रमुख लक्षण जैसे विषादी मनोदषा(उदास मन), नींद में कमी, कुंठा, हद्वय गति में कमी, भूख अधिक लगना, शारीरिक वजन  में वर्द्धि  आदि है। जब व्यक्ति अचानक नाइकोटिन का सेवन बन्द कर देता है तो या कम कर देता हो तो चैबीस घंटो के भीतर ये उपर बतायें गये लक्षणों में  कम से कम चार अवस्था  ही व्यक्ति में विकसित होते है।


Treatment of Nicotine  नाइकोटिन के उपचार:- अधिक धूम्रपान करने वाले व्यक्ति प्रोग्राम तथा अन्य किसी प्रकार के सुझाव से धूम्रपान करना छोड देते है, करीब दो तिहाई व्यक्ति धूम्रपान करने वाले व्यक्ति प्रत्येक वर्ष धूम्रपान छोडने की कोशिश करते है, परन्तु वे सफल  नही हो पाते है। और वह पुनः धूम्रपान करना प्रारंभ कर देते है। इसके लिए मनोविज्ञानियों  नैदानिक मनोविज्ञानियों द्वारा नाइकोटिन प्रतिस्थान चिकित्सा प्रदान करके उनकी बुरी लतों की गंभीरता को कम करने में पर्याप्त सफलता मिलती है। नाइकोटिन प्रतिस्थापन चिकित्सा मे नाइकोटिन निर्यास


(गम) तथा नाइकोटिन फाहा ;च्ंजबीद्ध व्यक्ति के शरीर के किसी भाग के चमडे पर साट दिया जाता है। त्वचा धीरे धीरे नाइकोटिन को अपने में सोखता है। इस तरह के चिकित्सा का उद्देश्य व्यक्ति में  नाइकोटिन की उपलब्धि को सीमित समय तक बनाये रखते हुए धूम्रपान व्यवहार को कम करना होता है।


शरीर में  इस तरह से प्रवेश पाया हुआ नाइकोटिन का प्रभाव धूम्रपान के समान प्रभाव नही डालता है, तथा धूम्रपान के प्रत्याहार लक्षणों एवं लालसा (क्रेविंग)  को निश्चित रूप से कम करता है। मनोवैज्ञानिको के अनुसार जो व्यक्ति धूम्रपान अधिक करते है, उनके लिए व्यवहार चिकित्सा, सामूहिक परमहंस (समूह Couselling)] चिकित्सक की राय तथा उनकी देख रेख मे उनका उपचार किया जाता है। तथा साथ ही परिवार व सहयोग उनकी देख रेख, उनका व्यवहार, का होना भी जरूरी होता है। एवं धूम्रपान करने वाले व्यक्ति को खुद पर विष्वास दिलाना होता है, तथा ये सब मनोवैज्ञानिकों और परिवार के सम्पूर्ण सहयोग से भी संभव हो सकता है। तथा क्योंकि धूम्रपान करने वाले व्यक्ति में आत्मविश्वास की कमी हो जाती है।इसलिए उसमें मनोवैज्ञानिकों के उपचार के साथ साथ परिवार को भी अपना सम्पूर्ण सहयोग देना होता है, जिससे धूम्रपान करने वाले व्यक्ति केा यह आत्म विष्वास हो जाये कि वह भी सामान्य जिंदगी जी सकता है बिना किसी धूम्रपान के। तभी धूम्रपान करने वाले का इलाज संभव होता है।