पसीने का क़र्ज़


आज तोताराम चाय के समय गैरहाजिर था । आया तो कोई दसेक बजे । आते ही जल्दी मचाने लगा, बोला- फ़टाफ़ट तैयार हो जा, गुजरात चलाना है ।


हमने कहा- यार, गुजरात में भी अपने शेखावाटी जितनी गरमी पड़ती है । कहीं घसीटना ही था तो शिमला, मसूरी की बात करता । उत्तर मिला- शत्रु, अग्नि, बीमारी और क़र्ज़ को कभी कम नहीं आँकना चाहिए । जितना ज़ल्दी हो सके इनसे मुक्ति पा लेनी चाहिए ।


हमने कहा- जब भारत सरकार का एक सर्वे प्रकाशित हुआ था 'प्रति व्यक्ति क़र्ज़' के बारे में तो हमने पेंशन से लोन लेकर चिदंबरम का कर्जा चुका तो दिया था । जहाँ तक बीमारी का सवाल है तो बुढ़ापे में भी अपना स्वास्थ्य ठीक-ठाक ही है । आग कीमतों में लगी है सो किसी के बाप से बुझने से रही । और हमारा शत्रु अब यमराज के अलावा और कौन होगा । पर यह कर्ज़े वाली बात ज़रा साफ़ कर ।


तोताराम ने स्पष्ट किया- अडवानी जी ने पन्द्रह साल राजस्थान में जनसेवा की है, गरमी में घूम-घूम कर पसीना बहाया है । सो मोदीजी मंच से सूचना दे गए हैं कि राजस्थान को अडवानी जी के इस पसीने का क़र्ज़ चुकाना है ।


हमने कहा- यार, पसीना तो हमने भी चालीस साल मास्टरी में बहुत बहाया है पर आज तक उसके लिए किसीके सर पर सवार नहीं हए । और फिर ये मोदी जी तो ब्रह्मचारी हैं । इन्हें रुपये पैसे की बात से क्या लेना-देना । वैसे भी वे आजकल एक और बालब्रह्मचारिणी जी से देश की रक्षा और विकास की बात करने चेन्नई गए हुए होंगें ।


तोताराम बोला- तुझे याद नहीं, मोदी जी नरेन्द्र या ब्रह्मचारी होने से पहले मोदी हैं । एक-एक दाने और एक-एक बूँद का हिसाब रखने वाले । महाजनों और मोदियों से बचना संभव नहीं । अडवानी जी ने कभी इस क़र्ज़ के बारे में बात नहीं की और न कभी कोई नोटिस भेजा । पर तुझे पता होना चाहिए कि बही और हिसाब-किताब कारिंदों के पास होता है ।


हमने कहा- तोताराम, सेवा निस्वार्थ की जाती है, उसका दाम नहीं लिया जाता । और फिर अडवानी जी इतने टुच्चे भी नहीं हैं ।तोताराम ने उत्तर दिया- देख मास्टर, क़र्ज़ कैसा भी हो चुका देना चाहिए, नहीं तो फिर इस मृत्युलोक में आना पड़ेगा । नो ड्यूज के बिना आगे स्वर्ग में भगवान नई ड्यूटी ज्वाइन नहीं करने देगा । तुझे पता होना चाहिए कि भगवान राम की एजेंसी अडवानी जी, नरेन्द्र मोदी और तोगडिया के पास ही है । सो क़र्ज़ तो चुकाना ही पड़ेगा ।


हमने कहा- मोदी जी ने प्रतीकात्मक क़र्ज़ की बात कही थी । उनका मतलब था कि उस कर्ज़े के बदले में भा.ज.पा. को वोट दे देना । वोट किसको दिया यह किसको पता चलेगा । कह देंगें कि वहीं दिया था जहाँ मोदी जी ने कहा था । हो गया हिसाब-किताब बराबर । तोताराम बोला- वे ऐसे नहीं मानेंगे । जब तक अडवानी जी प्रधानमंत्री नहीं बन जाते तब तक यह क़र्ज़ हमारे माथे रहेगा ही ।


हमें गुस्सा आगया । एक तो वोट देने गए तो लू लग गई । और ऊपर से ये कर्ज़े-कर्ज़े की रट लगा रहे हैं । हमने भी कह ही दिया- देख, हमने भी छः साल गुजरात में मास्टरी की है, पसीना बहाया है- चार साल पोरबंदर और दो साल राजकोट में । छत्तीस साल हमारे छोटे भाई ने पोरबंदर में पसीना बहाया है । अगर उन्हें हिसाब-किताब ही करना है तो हम दोनों भाइयों के छत्तीस जमा छः कुल बयालीस साल होते हैं । उसमें से अडवानी जी के पन्द्रह साल काटकर हमारा सत्ताईस साल का हिसाब कर दें । हमें नहीं जाना गुजरात । तुझे जाना हो तो जा । अब यह तो कल ही पता चलेगा कि तोताराम गुजरात गया या नहीं (लेखक के अपने विचार हैं)


रमेश जोशी 
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