कभी आनंद शर्मा टीवी चेनल पर जेम्स ओटिस से अपील कर रहे हैं कि गाँधी की वस्तुओं को नीलामी से हटा लें तो कभी न्यूयार्क में महावाणिज्य वाणिज्य दूत कोशिश कर रहे हैं तो कभी भारत मूल के होटल व्यवसायी नीलामी में भाग लेने के लिए संयुक्त मोर्चा बना रहे हैं तो कभी मनमोहन सिंहजी अम्बिका सोनी से कह रहे हैं कि गाँधी जी की वस्तुएं किसी भी हालत में भारत लानी हैं तो कभी अम्बिका सोनी स्वयं पर्यटन में गाँधी जी के महत्व को देखते हुए प्रयत्नशील हैं ।
मगर सौ अम्बिका सोनी की और एक विजयमाल्या की । विजयमाल्या भी लाइन में लग गए और एक ही झटके में ले आए बापू का सारा सामान । ऐसे काम भाषणों से नहीं होते । जुआ और नीलामी दिल के खेल हैं । दिलवाले ही ऐसे खेलों में भाग लेते हैं और धाँसू तरीके से जीतते भी हैं । या तो पुलिस उचित भेंट पूजा से मान जाती है या फिर देसी दारू बनाने वालों के पास लट्ठ है ही । सरकार को भले ही अपनी कुर्सी बचाने के लिए संसद-खरीद के गटर में उतरना पड़ता है पर दारूवालों की अपनी लाबी होती है और पूरी सिद्दत से काम करती है ।
अंदरखाने यह भी सुना जा रहा है कि विजयमाल्या भारत सरकार के लिए काम कर रहे थे पर विजय माल्या ने इससे मना कर दिता है । वैसे यह गिव एंड टेक का मामला हो सकता था क्योंकि सरकार दारूवालों का ध्यान रखती है तो दारूवाले भी सरकार का ध्यान रखते हैं । नीलामी करने वाले ने सोचा था कि चुनावों का मौसम है सो गाँधी के नाम से वोट माँगने वाली सरकार ज़रूर अच्छी कीमत दे देगी । पर जब सरकार नहीं पहुँची तो उसने सोचा कि जो मिल रहा है वही अच्छा वरना मामला गया फिर पाँच साल पर ।
हमने सोचा कि इस मामले में क्यों न सीधे ओटिस महाशय से ही संपर्क किए जाए । पूछा- बन्धु, गाँधीजी तो कभी अमरीका आए नहीं फिर ये चीजें आपके हाथ कैसे लगीं ? बोले - हमारे गोरे भाइयों ने इस बुड्ढे की अफ्रीका और भारत में बहुत ठुकाई की थी उसी दौरान ये चीजें गिर पड़ी होंगी और कहीं पुलिस के मालखाने में पड़ी होंगी । सो कोई हमें दे गया होगा । हमने भी यह सोच कर रख लीं कि क्या पता कभी ये भी कुछ दे ही जायेंगीं । वैसे हम तो एक्टर-एक्ट्रेसों और लम्पटों की चड्डी-चोली में ही ज़्यादा डील करते हैं क्योंकि आजकल खाली दिमाग और भारी जेबोंवाले ये ही चीजें ख़रीदते हैं । योरप अमरीका में इनका अच्छा मार्केट है ।
आज तोताराम आया तो बड़ा खुश था, बोला- देख लिया ? तू दारू पीनेवालों की बहुत बुराई किया करता था । अरे, खोटा पैसा और खोटा बेटा ही समय पर कम आता है । हमने शंका प्रकट की- यार, कहीं यह माल्या मस्ती में आकर गाँधी जी के कटोरे में ही बीयर डाल कर सेलेब्रेट न कर ले । तोताराम बोला- तो क्या आसमान टूट पड़ेगा । सरकारें दारू बेचती हैं और ऊपर से नैतिकता के भाषण झाड़ती है । विजय माल्या जैसा भी है पर सरकार की तरह ढोंगी तो नहीं है । और फिर दारू से सरकार को कल्याणकारी योजनाओं के लिए टेक्स भी तो मिलता है । तू समझता है कि सरकारें तेरे जैसे मक्खीचूसों से चलती हैं ?
हम पूरी जी-जान लगा कर बापू की वस्तुएँ भारत वापस आने से गर्वित होने का प्रयत्न करने लगे । शायद सफलता मिल ही जाए ।
बातें करता रह गया भोला हिन्दुस्तान ।
अमरीका में बिक गया बापू का सामान ॥
बापू का सामान, वस्तु की पूजा करते ।
पर बापू की आदर्शों पर ध्यान न धरते ॥
कह जोशीकविराय राम का काम कीजिए ।
राम और बापू का नाटक बंद कीजिए ॥
(व्यंग्यकार/लेखक के अपने विचार है)
रमेश जोशी
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