चेहरे पर फैले तन्हाइयो के निशान है
कैसी है दौलत की हर इंसान परेशान है
हसरतों की ऐसी मची घमासान है
ऐठी ऐंठी सूरते बचा सिर्फ़ गुमान है
अब घर भी देखो सजी हुई दुकान है
भावो से रहित सब रेडीमेट समान है
घर मे जो पकते है वो नही पकवान है
बाहर जाकर खाना शौक और शान है
कहने को तो कहते है कमजोर खान -पान है
पहले घी ,दूध वाली अब कहा जान है
पर मॉल में घण्टो घूमने में न सुस्ती है न थकान है
यह नव उड़ानो की नई पहचान
आधुनिकता की कुछ परिभाषित पहचान है
आप पुराने जमाने के है यह नई जुबान है
यह नए जमाने का उड़न छू ज्ञान है
ताले के भीतर बस रखना जुबान है
भगवान ही संभाले यह मानव कृति महान है🙏
Ó ममता सिंह राठौर