(15 दिसम्बर चाय दिवस के लिए विशेष)
चाय है तो चीनी शब्द पर भारत में यह जन-जन की जुबान पर चढ़ा हुआ है । कहा जा सकता है कि भारत में चाय नहीं तो सुबह नहीं । सुबह होते ही सबसे पहली जरूरत चाय होती है । लोग चाय की चुस्कियाँ यूँ भी लेते हैं और कई लोग हैं जो चाय की चुस्कियों के साथ अखबार पर भी नजर डाल लेते हैं । ऐसा नहीं है कि चाय भारत में सुबह ही पी जाती है । इसकी तलब कभी भी लग सकती है । कई लोग दोपहर और रात में भी चाय पीते हैं । आवभगत करने का तो यह सबसे आसान, सरल और सस्ता तरीका है । भारत में किसी के यहाँ यदि मेहमान जाएँ तो उनसे चाय का अवश्य पूछा जाता है । भारत में चाय पारंपरिक तरीके से ही प्रायः बनती है लेकिन अब चाय के कई फ्लेवर उपलब्ध हो गए हैं।
हजारों वर्षों से लोकप्रिय चाय के दुनिया में आने की कहानी भी बड़ी दिलचस्प है। चाय का इतिहास करीब 5000 साल पुराना माना जाता है। कहते हैं कि एक दिन चीन के सम्राट शैन नुग के सामने रखे गरम पानी के प्याले में कुछ पत्तियाँ आकर गिर गईं और पानी का रंग बदल गया। जब सम्राट ने उसकी चुस्की ली तो उन्हें उसका स्वाद बहुत पसंद आया और धीरे-धीरे यह चीन के प्रमुख पेय में से एक बन गया । शुरूआत में चीन के लोग चाय को दवा की तरह पीते थे। भारत में चाय लाने का अंगे्रजों को जाता है। कहा जाता है कि प्राचीन भारत में चाय का सर्वप्रथम उल्लेख रामायण (750-500 ई.पू.) में मिलता है।
बौद्ध साधुओं की कहानियों में भी चाय के चलन की बात पढ़ने को मिलती है। आजादी के पहले भारत के गवर्नर जनरल लार्ड बैटिक ने 1834 में चाय की परम्परा शुरू की तथा उसका उत्पादन करने की संभावना तलाश करने के लिए एक समिति का गठन किया। सन् 1835 में असम में चाय के बाग लगाए गए। उसके बाद से ही चाय भारत में लोकप्रिय हुई। चाय के दीवाने भारत में ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में हैं। एक अनुमान के मुताबिक दुनियाभर में चाय की 1500 से भी ज्यादा किस्में हैं। अफगानिस्तान तथा ईरान का राष्ट्रीय पेय चाय है । रशियन लोग भी चाय के दीवाने हैं। वहाँ 82 फीसदी लोग चाय के शौकीन हैं तुर्की की कहानी भी कम दिलचस्प नहीं है। वहाँ हर व्यक्ति प्रतिदिन 10 कप चाय पीता है।
प्रथम भारतीय चाय उत्पादक मनीराम दीवान थे । उन्होंनेे जोरहाट के चीनामारा और शिवसागर जिले के सिंगलोऊ में चाय बागानों की स्थापना की । प्रारम्भ में भारत में चाय का सेवन केवल अंगे्रजी मानसिकता वाले लोग ही किया करते थे । सन् 1920 में भारत के आम नागरिक भी चाय पीने लगे तथा चाय पानी के बाद सबसे अधिक पिया जाने वाला पदार्थ बन गया । चीन दुनिया का चाय का सबसे बड़ा उत्पादक देश है । भारत इस मामले में दूसरे स्थान पर है।
यही खूबी है चाय की चुस्की में तभी तो आज काॅफी के बढ़ते प्रचलन में भी एक कप अच्छी चाय ने अपनी जगह बरकरार रखी है। चाय शारीरिक स्फूर्ति के साथ दिमाग को भी तेज बनाती है। जब बच्चे पढ़ाई के दौरान थकान तथा सुस्ती महसूस करने लगते हैं तो उनके लिए चाय एक रिफ्रेशिंग साॅल्यूशन का काम करती है। जो लोग चाय का सेवन करते हैं वे चाय न पीने वालों की तुलना में अधिक स्वस्थ तथा दुरूस्त रहते हैं। हार्ट रिलेटेड डिसीज को दूर करने के अलावा चाय रक्तसंचार को भी ठीक रखती है। चाय के विविध रूप में एंटी आॅक्सीडेंट की मात्रा बहुत ज्यादा होती है जिससे यह कैंसर जैसी बीमारी से लड़ने में भी मदद करते हैं। इसके अलावा यह स्तन कैंसर, प्रोस्टेट कैंसर तथा फेफड़े के कैंसर होने का खतरा भी कम करते हैं। थकान के दौरान चाय पूरे शरीर की माँसपेशियों को आराम देती है। इससे एक नई ऊर्जा का विकास होता है ।
जो लोग अपना वजन कम करने के लिए व्यायाम करते हैं उनके लिए ग्रीन टी सबसे बेहतर उपाय है। साथ ही खुश हों तब भी और उदास हों तब भी हमारी जिंदगी का चाय हिस्सा बनी रहती है। कई शोध यह भी बताते हैं कि चाय से मेटाबाॅलिक रेट भी बढ़ता है जो डायबिटिज के खतरे को दूर करता है। भारतीय परम्परा के अनुसार कैफिन एक दवा के रूप में कार्य करता है। कई बीमारियों को नियंत्रित रखने के साथ-साथ चाय त्वचा को चमकदार बनाती है। कोशिकाओं को उत्तेजित कर सोचने-समझने की शक्ति को बढ़ाता है। चाय वास्तव में फ्लोराइड और मेटेनिंन से बनी होती है जो प्लेग को दूर रखती है इसलिए स्वथ दाँतों और मसूड़ों के लिए चाय लाभदायक है।
चाय की दीवानी रूसी लोगों में भी देखने को मिलती है। रूसी भाषा में भी चाय को चाय ही कहते हैं। रूसी लोग भोजन करने के बाद मिठाईयों और टाॅफियों के साथ साथ पीना पसंद करते हैं। यहाँ लोग बिना दूध की चाय भी बहुत पसंद करते हैं। हाँलाकि मसाला चाय भी यहाँ दिन-ब-दिन लोकप्रिय होती जा रही है । मास्को की अनेक किराणा शाॅप में तीन तरह के स्वादों वाला चाय मसाला मिल ही जाता है । रूसी परिवारों में भी मेहमानों को चाय पर बुलाने का रिवाज है ।
ब्रिटैन में रह रहे एक भारतीय शख्स प्रणव ने एक चाय की दुकान खोली जिसका नाम है 'चाय गरम' । इस दुकान में सिर्फ शरणार्थी ही काम करते हैं । दिल्ली के इस युवक के प्रति दीवानगी ऐसी है कि किसी भी देश का शख्स अगर लंदन जाता है तो वो एक बार प्रणव की चाय की दुकान पर जरूर जाता है । इसी तरह 26 साल की उपमा विर्दी चंड़ीगढ़ में जन्मीं थी । अपनी पढ़ाई के लिए वह आॅस्ट्रेलिया चली गई । इसी दौरान उसे महसूस हुआ कि आॅस्ट्रेलिया में अच्छी चाय मुश्किल से मिलती है और उसने मन बना लिया कि वह चाय का बिजनेस करे । इसी व्यवसाय के चलते उपमा ने अपनी चाय से आॅस्ट्रेलिया के लोगों को चाय का मुरीद बना दिया तथा वहाँ उन्होंने 'बिजनेस वुमन आॅफ द ईयर' पुरस्कार जीता ।
भारत की रहने वाली उपमा विर्दी ने चाय का बिजनेस कर देश ही नहीं दुनिया में अपनी पहचान 'चायवाली' के रूप में बना ली । इसी तरह कुछ दिनों पहले ही पाकिस्तान का एक चायवाला अपने लुक्स को लेकर काफी वायरल हुआ था । पूरा सोशल मीडिया इस चायवाले का दीवाना हो गया था । पाकिस्तान की लड़कियाँ तो उसकी नीली आँखों की दीवानी हो गईं थीं । बात चायवाले को माॅडल बनाने तक पहुँच गई थी। मकाईबारी-टी चाय का ब्रांड भारत की सबसे मंहगी चाय में शुमार हो गया है। इसकी कीमत 1.11 लाख रू. प्रति किलो हैं। इस चाय को दार्जिलिं की फैक्ट्री में तैयार किया जाता है । दुनियाभर के लोग इस चाय के दीवाने हैं । अब यह दुबई में भी मिलेगी ।
जापान, ब्रिटेन और अमेरिका के सम्पन्न लोग इस चाय के दीवाने हैं। लगातार बढ़ती लोकप्रियता की वजह से मकाईबारी चाय की बुकिंग 1,850 डाॅलर प्रति किलो की रिकार्ड कीमत पर पहुँच गई । इस चाय के कई फ्लेवर भी हैं। 'दा होंग पाओ' नाम की चाय दुनिया की सबसे मंहगी चाय है। इस चाय में विटामिन सी, ई, के, बी1, बी3, बी6, बी12 होता है । इस चाय के पौधे को विधि विधान से वसंत ऋतु में लगाया जाता है । कुछ मीठे कुछ तीखे स्वाद वाली इस चाय को सामान्य घर की अपेक्षा फार्मेसियों या बड़ी चाय की दुकानों में कड़ी सुरक्षा में अलमारियों में रखा जाता है । वर्तमान समय में एक केतली भर चाय की कीमत 6,72,000 रू. है।
चीन के मींग शासन काल मेें महारानी की तबियत खराब हुई तो इसी चाय ने उन्हें पूरी तरह स्वस्थ किया । इतना ही नहीं उनके अंदर काफी एनर्जी भी आ गई। कहा तो यहाँ तक जाता है कि एक किलो दा होंग पाओ चाय की कीमत तीस किलो सोने की कीमत के बराबर है । मींग शासन का राजा हमेषा एक लंबा लाल रंग का चोगा पहने रहता था इसलिए इस चाय की पत्ती का नाम दा होंग पाओ । यानी 'लंबा लाल चोगा' पड़ गया । चाय का जलवा इतना है कि हमारे प्रधानमंत्री ने अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा को उनकी भारत यात्रा के दौरान चाय खुद पेश की थी । यह चाय नरेन्द्र मोदी ने स्वयं बनाई थी ।
अब एक खास बात । दिल्ली के मशहूर कनाॅट प्लेस से लेकर गाँव की टपरियों तक इन दिनों कुल्हड़ की सोंधी-सोंधी खुशबू वाली अदरक की चाय का चलन बढ़ रहा है। कुल्हड़ वाली चाय पीने के लिए लोग दूर-दूर से आते हैं । हाल यह है कि दुकान पर कुल्हड़ नहीं होने पर कई ग्राहक चाय नहीं पीते ।
एक और किस्सा यूँ है कि आपकी मनपसंद चाय का स्वाद बनाने वाली कंपनियाँ लंबे समय से पेशेवर टी टेस्टरों की सेवाएँ लेती आ रही हैं । ये ही टेस्टर चाय की पत्ती के स्वाद, उसकी क्वालिटी और तैयारी को जाँचने के लिए पेशेवरों को नौकरी पर रखती है। बैंगलुरू के इंडियन इंस्टीट्यूट आॅफ प्लांटेशन मैनेजमेंट मार्केट इन्फर्मेशन टी टेस्टिंग की तकनीक और उसके तरीकों के बारे में अध्ययन कराता है । टी उद्योग भी इस कोर्स को मान्यता देता है । कोर्स करने वाले गे्रजुएट भारतीय और अन्तर्राष्ट्रीय चाय कंपनियों के यहाँ नौकरियाँ पा सकते हैं । चाय के बागानों में भी नौकरी के लिए अच्छे अवसर उपलब्ध हैं। (लेख में लेखक ने उम्दा जानकारी देने का प्रयास किया है)
लेखक - रेणु जैन
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