छात्रों में अपनत्व का भाव जगाती शिक्षक की अनूठी पहल


अपनापन वैसे तो एक भाव है पर यह अपनापन ही सब समस्याओं का समाधान है। अपनापन घर के प्रति, परिवार के प्रति, अपनों के प्रति, सार्वजनिक संपत्ति के प्रति, गांव और शहर के प्रति, जंगल और पहाड़ के प्रति, देश और संस्कृति के प्रति, विश्व के प्रति, चराचर जगत के प्रति अपनापन। नई पीढ़ी के विद्यार्थियों में यह अपनापन विकसित हो गया तो सामने आने वाली सब प्रकार की चुनौतियों का समाधान हो जाएगा। सबके प्रति अपनापन यही वसुधैव कुटुम्बकम है। यही भारतीयता और सनातन परंपरा है। विद्यालयों में दिया जाने वाला दीपावली का गृहकार्य भी अपनेपन का संस्कार दे सकता है इस नजरिये को लेकर राजस्थान के जालौर जिले के रेवत आदर्श राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय में सेवारत वरिष्ठ शिक्षक संदीप जोशी ने बच्चों को दीपावली के लिए दिये जाने वाले गृहकार्य को लेकर अनूठी पहल की है। जाहिर है कि दीपावली पर गृहकार्य देने की विद्यालयों में एक तरह की सनातन परंपरा रही हैं। पीढ़ी दर पीढ़ी यह क्रम चलता आ रहा है। विद्यार्थी बड़ी रुचि से दीपावली के गृहकार्य को करते हैं। उत्तर पुस्तिका में सुंदर आकर्षक दीपक, दीपों की माला, रंगोली, तोरण, पटाखे व फुलझड़ियां इत्यादि बनाकर वे गृहकार्य को भी उत्सव की तरह संपन्न करते हैं। 


इस परंपरा के साथ बच्चे कुछ नये और व्यावहारिक कार्यों से भी अवगत हो इसको देखते हुए शिक्षक संदीप जोशी ने दीपावली गृहकार्य के लिए शैक्षणिक कार्य के साथ-साथ कुछ और भी काम बच्चों को करने के लिए दिये हैं। उदाहरण के तौर पर उन्होंने बच्चों को जैसे घर की सफाई करते हैं, वैसे ही बस्ते की भी सफाई करना, सभी किताब और कॉपी पर नये कवर लगाना, बस्ते को भी यथासंभव धोने का काम दिया है। दीपावली पर सुथार, लुहार, व्यापारी सभी अपनी आजीविका के साधनों का पूजन करते हैं। वैसे ही विद्यार्थियों को भी अपने शैक्षणिक साधन बस्ता, पुस्तक, कॉपी, कलम, ज्योमेट्री बॉक्स का यथायोग्य पूजन करने को कहा है। इसके पीछे शिक्षक संदीप जोशी का मानना है कि ऐसा करने से बच्चों में अध्ययन साधनों के प्रति सम्माननीय भाव, पूज्य भाव जागृत होगा, जिससे कॉपी-किताब की संभाल बढ़ जाएगी, ये अनावश्यक फटनी कम हो जाएगी, पेन का पुन:उपयोग शुरू हो जाएगा, अभिभावक को आर्थिक लाभ होगा और साथ में पर्यावरण संरक्षण भी होगा।


वहीं उन्होंने कक्षा 7, 8 , 9, 10, 11 व 12 के विद्यार्थियों को दीपावली वाले दिन सायंकाल कम से कम एक दीपक विद्यालय आकर अवश्य प्रज्वलन करने को कहा है। यथासंभव विद्यार्थी अपने माता, पिता, बड़े भाई अथवा बड़ी बहन के साथ आकर दीप प्रज्वलन कर सकते हैं। वे बताते हैं कि इस काम को लेकर कुछ विद्यार्थियों ने तो पांच दीपक लाने का विश्वास भी दिलाया हैं। इन कक्षाओं में लगभग तीन सौ विद्यार्थी हैं। लगभग ढाई सौ, तीन सौ दीपक, जलती दीपमालाओं के साथ विद्यालय परिसर रोशनी से नहायेगा। इसका उद्देश्य स्पष्ट है। दीप लगाकर केवल शृंगार ही नही करना है। इससे सामूहिकता का, सहकारिता का और संगठन भाव का विकास भी होता है। सब मिलकर कार्य करते हैं तो दृश्य कितना भव्य होता है, यह समझ बनना महत्वपूर्ण है। इसके साथ-साथ विद्यालय के प्रति अपनत्व भाव का भी विकास होता है। विद्यालय, गांव, सरकारी संपत्ति इन सब के प्रति अपनेपन का भाव जगने से कई समस्याओं का समाधान हो जायेगा। 


गौरतलब है कि शिक्षक संदीप जोशी नवाचार के लिए प्रख्यात है। उन्हें नवाचार के लिए अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की ओर से माननीय उप राष्ट्रपति एम. वेंकैया नायडू के हाथों से प्रो.यशवंतराव केलकर स्मृति युवा पुरस्कार-2018 का सम्मान भी मिल चुका है। जोशी ने बच्चों के बस्ते के बोझ को हल्का करने के लिए 'बस्ता मुक्त दिन' एवं प्राथमिक स्कूल से ही विद्यार्थियों में विज्ञान के प्रति रुचि जगाने के लिए 'प्रयोगशाला' शुरू की। देशप्रेम विकसित करने के लिए 'भारत दर्शन गलियारा' बनाया और कन्या सुरक्षा व उनकी अहमियत दर्शाने के लिए 'कन्या पूजन कार्यक्रम' शुरू किया। उनके ये प्रयास आज राजस्थान और मध्य प्रदेश के कई स्कूलों में लागू किए गए हैं। वे पिछले कई वर्षों से अपने विद्यालय में बच्चों को दीपावली गृहकार्य के रूप में व्यावहारिक कार्य दे रहे हैं। जिसको लेकर उनका मानना है कि यह छात्रों के लिए बहुआयामी गृहकार्य है। वे उदाहरण देते हुए बताते हैं कि गत साल इस प्रयोग के कारण विद्यालय दीपावली के अवसर पर लगातार तीन दिन रोशन रहा। अत्यंत उत्साह से, अपनेपन के साथ, परिवार भाव से, विद्यार्थी और उनके साथ कुछ अभिभावक भी विद्यालय को रोशन करने पहुंचे थे। छात्रों ने स्वयं प्रेरणा से उत्साह के साथ लगातार तीन दिन तक विद्यालय में दीप मालिका सजाई।


इस अनूठी पहल की शुरूआत से जुड़ा अनुभव साझा करते हुए शिक्षक जोशी बताते हैं कि दो उद्द्देश्यों को लेकर तीन वर्ष पूर्व यह विचार उनके मन में आया था। पहला तो यह कि विद्यालय ज्ञान का प्रकाश फैलाने वाला है, वह स्वयं दीपावली के अवसर पर अंधकार में नहीं रहना चाहिए। दूसरा यह कि विद्यार्थियों में विद्यालय के प्रति अपनापन का भाव बढ़े। जिस अपनापन और अधिकार भाव के साथ बालक अपने घर में रोशनी करता है, सजावट करता है, वह आत्मीय भाव विद्यालय के प्रति भी विकसित होने चाहिए। यह अपनापन रहेगा तो अनेक समस्याएं स्वतः ठीक होती रहेगी। इससे कुछ विशेष अनुभव भी मिलते हैं। वर्ष भर में होने वाले विभिन्न कार्यक्रम विद्यालय समय में शिक्षकों की उपस्थिति में होते हैं, मगर दीपोत्सव का यह कार्यक्रम अवकाश के दिनों में होता है और कोई भी शिक्षक साथ में नहीं होता है तब भी विद्यार्थी पूरे अनुशासन से, पूरे परिवार भाव से अपने स्तर पर ही इसका आयोजन करते हैं। छात्रों के विभिन्न प्रकार की कल्पनाशीलता भी इसमें निखरकर सामने आती है। विभिन्न प्रकार से दीपों को सजाना, अलग-अलग तरह की रंगोली बनाना, मंगल चिह्न बनाना इत्यादि। हालांकि शिक्षक जोशी ने इस कार्यक्रम को अभी अभियान के रूप में प्रारंभ नहीं किया है, किंतु मीडिया से जानकारी मिलने पर और भी कई शिक्षक मित्रों ने अपने विद्यालयों में दीपदान की योजना बनाई और छात्रों में विद्यालय के प्रति अपनेपन के भाव को बढ़ाने वाले इस आयोजन को संपन्न किया है।  



देवेन्द्रराज सुथार 
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