हैदराबाद कांड की सीखें


 हैदराबाद कांड के समर्थन में ही ज्यादातर टिप्पणियाँ मिल रही हैं। मानवाधिकार आयोग ने यह जरूर कहा है कि वह पूरे मामले की जाँच पड़ताल करेगा, लेकिन हैदराबाद के एनकाउंटर के बाद देश के लगभग हर हिस्से जो सकारात्मक टिप्पणियाँ खासकर महिला वर्ग की उससे लगता है कि हमारी लगभग यह आधी आबादी अभिभावकों के बाद पुलिस को ही अपना संरक्षक मानती हैं। इसीलिए हैदराबाद के एनकाउंटर के बाद महिलाओं ने पुलिसकर्मियों पर फूल बरसाए, तिलक लगाए, पटाखे फोड़े, यहाँ तक की राखियाँ बाँधी गईं।  देश के कई हिस्सों में जश्न जैसा माहौल था। याद करें कि फूल युद्ध में जीते हुए लोगों पर बरसाए जाते हैं और राखियाँ युद्ध पर रवाना होने से पहले ।


 कई मनोचिकित्सकों और मनोविश्लेषकों का कहना है कि आजकल युवतियों के देर रात ही काम पर से लौटने का चलन आम हो चला है। हाँलाकि कुछ कंपनियाँ युवक हो युवती एक समय सीमा के बाद बाकायदा अपनी कंपनी की गाड़ी में बंदूकधारी गार्ड के साथ युवक-युवती के फ्लैट को अंदर से बंद कर लेने तक की व्यवस्था करती है, मगर यह चलन कुछ ही कंपनियों में है। सबसे पहले जरूरी है ज्यादा से ज्यादा कार्पोरेट और छोटी कंपनियाँ इस कल्चर को अपनाएँ और देर रात में घर लौटने के लिए कार्यरत युवक-युवतियों को निजी कैब में कतई न जाने दें। इसके खिलाफ कंपनी ही कानून बनाए।



 यदि युवा पीढ़ी दिन या रात में काम पर या किसी अन्य वजह से घर से निकल रही हैं तो सबसे पहले उसके बैग में मिर्च पाउडर की पुड़िया, कैंची, चाकू, छुरा, ब्लैड, सीटी रखें उसके साथ ही बेहोश करने वाला परफ्यूम। कुछ मनोविश्लेषक मानते हैं कि यह बेहद सफल नुस्खें साबित हो सकते हैं। यदि ड्राइवर कोई  गलत हरकत करता है तो युवती तत्काल सीटी बजा सकती है जिससे भीड़ मदद के लिए आ सकती है। काम पर जा रही युवती को पुलिस सहायता के नंबर, घर के नंबर लगातार रखवाएँ और जानकारी दें कि पास का पुलिस थाना कहाँ है। उसे कलेक्टर और पुलिस अधीक्षक का नम्बर भी रखने को दें। कुछ समाजसेवियों के नंबर भी इनमें काम आ सकते हैं। 


 आजकल किशोर, युवक, युवितयों की पार्टीज का चलन भी आम होने लगा है। ऐसी पार्टीज में जाने रोक रोक लगाई गई तो बच्चों पर मनोविश्लेषकों और मनोचिकित्सकों के अनुसार विपरीत असर पड़ सकता है। इसलिए उन्हें पार्टीज में तो जाने दें लेकिन वहाँ जाकर कैसा आचरण करना है, उनका पहनावा क्या हो, उन्हें क्या खाना-पीना है, वे किस होटल में जा रहे हैं और उसके पास घर का नंबर है कि नहीं यह अवश्य हर बार चैक कर लें।


 कई बार देखा गया है कि बाल शोषण की कोशिशें तीन-चार साल की बच्चियों से ही शुरू हो जाती हैं। ऐसे में बच्चियों की परवरिश का पूरा ध्यान रखें। न तो उसे नौकर के हाथों नहलायेें, न कपड़े पहनाने दें, न क्लास या घर में अकेले में ट्यूशन पढ़ने दें न नौकरों के साथ बाजार का सामान लेने भेजें।  नौकरों को भी काम पर रखने के पहले उसका बैकग्राउण्ड अच्छे से पता कर लें। बच्चियों से, किशोरियों से और युवतियों से लगातार खुलकर ऐसे मुद्दों पर बातचीत करते रहें। उनकी बातें सिर्फ न सुनें बल्कि समझाइश भी दें। मनोचिकित्सक और मनोविश्लेषकों की राय भी आवश्यक हो सकती है। बच्चियों की तीन-चार वर्ष की उम्र में शारीरिक-मानसिक बदलाव आने लगता है, इसीलिए यौन शिक्षा इसी उम्र के आसपास देने की शुरूआत करें। बच्चियों एवं बेटियों के भड़कीले वस्त्रों के बारे में सख्ती बरतें और खुद भी वैसे ही कपड़े पहनें।


 बच्चों को अकेला छोड़कर देर रात तक या लम्बे समय तक अकेला छोड़कर जाने से जहाँ तक हो सके बचें । यदि कहीं पर्यटन या घूमने-फिरने जा रहे हैं तो उन्हें अवश्य साथ ले जाएँ और उन अजनबी जगहों की अच्छी विशेषताओं की जानकारियाँ दें। ध्यान रखें कि आपका बच्चा किस बैकग्राउण्ड के बच्चों के सोहबत में रह रहा है। उस पर उसके क्या असर पड़ रहे हैं । ऐसे में कोई सख्त कदम जरूरी हो तो जरूर उठाएँ पर बच्चांे और युवतियों के साथ मारपीट या गाली-गलौज कतई न करें।


 सूचना-क्रान्ति के इस युग में आज भी किशोर और युवा पीढियाँ कुछ जानकारियाँ अभिभावकों से ही प्राप्त करना चाहती हैं इसलिए अभिभावक ऐसी जानकारियों से खुद को भी हरदम पुष्ट रखें । इस युग में तमाम मनोविश्लेषक और मनोचिकित्सक सलाह देने लगे हैं कि तीन साल की बच्चियों की अस्वाभाविक हरकत देखकर उसे मनोविश्लेषक या मनोचिकित्सक से मिलवाएँ । ऐसे में दवाएँ नहीं दी जातीं, बल्कि परेशानियों का पता लगाकर माता-पिता और बच्चियों को समझाइश दी जाती है। कई शोधों में यह भी पता चला है कि नाबालिगों, किशोरियों, युवतियों, महिलाओं के दैहिक दुष्कर्म में सामान्यतः 90 प्रतिशत रिश्तेदार, पड़ोसी, परिचित या थोड़ी बहुत जान-पहचान वाले लोग होते हैं। ऐसे लोग मौका देखते ही अस्मत पर हाथ डालने जैसा दुष्कर्म करने पर उतारू हो जाते हैं।


 मध्यप्रदेश में 2018 से बच्चों के साथ बलात्कार करने वालों के खिलाफ कानून में सुधार के तहत उसे सख्त बनाया गया था। तब से अब तक 30 दोषियों को फाँसी की सजा दी जा चुकी है। इसके अलावा चिल्ड्रन फ्राम सेक्सुअल आफेंसेस (पाक्सो) के अंतर्गत विशेष अदालत ने 168 लोगों को आजीवन कारावास की सजा दी है। इसके बावजूद ऐसी घटनाओं में कोई खास कमी नहीं देखी गई।


 कुछ मनोविज्ञान से संबंद्ध जानकारों का यह भी कहना है कि सिर्फ पोर्नो फिल्मों तथा पोर्नो लिटरेटर पर ही सख्त प्रतिबंध लगा दिया जाए तो ऐसे 75 प्रतिशत मामलों में कमी आ सकती है, क्योंकि अकेले या चोरी-छिपे बच्चे पोर्न फिल्में देखते हैं या पढ़ते हैं। पिछले दिनों केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने संसद में बयान दिया था कि 377 पोर्नो साइट्स पर अभी तक प्रतिबंध लगाया जा चुका है। सवाल यह है कि बावजूद  इसके एक क्लिक में स्मार्टफोन या नेट पर ऐसी गंदी सामग्री ढेरों की संख्या में क्यों आ जाती हैं। यूँ पोर्नो या सेमी पोर्नो सामग्री पहले भी लिखित में या चोरी-छिपे मिल जाया करती थी, लेकिन सामान्यतः वह लिखित होती थी और जरा-सी सूचना मिलने पर ऐसी दुकानों पर तत्काल पुलिस छापे मारकर कड़ी कानूनी कार्यवाही करती थी। अब जरूरत इस बात की है कि अभिभावक खुद भी अपने काम की साइट्स खोलें। समय की बर्बादी से बचें। जो चुटकुले द्विअर्थी न हों उसे ही शेयर  करें। स्मार्ट फोन के उपयोग की सीमा तय कर दें। बच्चों पर सतत निगरानी रखें। देखें कि यदि परीक्षा में उसे कम अंक मिल रहे हैं तो इसके क्या कारण हो सकते हैं। कहीं उसकी एकाग्रता में अचानक तो कमी नहीं आने लगी है। उससे बात करके गहरी पड़ताल करें।
 
 बच्चियों को खासकर श्रीमती इन्दिरा गाँधी या किरण बेदी जैसी महिलाओं के किस्से सुनाएँ। इन्दिराजी ने खुद को 10-12 साल की उम्र से मजबूत व्यक्तित्व वाली महिला के रूप में ढालना शुरू कर दिया था। इसी के बल पर आगे चलकर वे विश्व की सबसे शक्तिशाली राजनेता बनीं। किरण बेदी ने बचपन में ही अपनी माँ को वचन दे दिया था कि वे अन्याय को किसी कीमत पर बर्दाश्त नहीं करेंगी। याद रखें पुलिस पर असंवेदनशीता के चाहे कितने भी आरोप लगते रहे हों लेकिन महिलाओं और बच्चियों की सहायता करने में तत्काल दौड़ पड़ती है। अब तो तकनीक ने सब कुछ बेहद आसान कर बना दिया है। (लेख में लेखक के अपने विचार हैं)


नवीन जैन
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