रेगिस्तान का जहाज कहे जाने वाले ऊंट की तादाद में तेजी से गिरावट आ रही है। देश में ऊंटों की घटती संख्या से कृषि और सुरक्षा पर संकट मंडराने लगा है। आलम यह है कि राजस्थान और गुजरात जैसे राज्य जहां पर कृषि और सामान की ढुलाई में सबसे ज्यादा काम आने वाले ऊंट अब कम हो रहे हैं, वहीं देश की सरहद की सुरक्षा में सीमा सुरक्षा बल के साथ कदमताल करने के लिए पर्याप्त ऊंट नहीं मिल रहे हैं। दरअसल राजस्थान में ऊंट केवल एक पशु नहीं बल्कि यहां की परंपरा और संस्कृति का हिस्सा माना जाता है। ढोला-मारू, पाबूजी, बाबा रामदेव, खिमवाजी और महेन्द्र-मूमल जैसे लोकगीत तो ऊंटों को आधार मानकर ही रचे गए हैं। राजस्थानी काव्य और पहेलियों में भी ऊंटों का अहम स्थान देखने को मिलता है।
लेकिन राजस्थान की यह शान अब संकट में है। कहने को तो राजस्थान सरकार ने ऊंटों की तेजी से कम होती संख्या को देखते हुए 30 जून 2014 को ऊंट को राज्य पशु घोषित किया। वहीं हाल ही में एक कानून बनाकर ऊंट को मारने पर पांच साल तक की सजा का प्रावधान किया। लेकिन इसके बावजूद प्रदेश व देश में ऊंटों का कुनबा लगातार कम होता जा रहा है। ऊंट यानी रेगिस्तान का टाइटैनिक डूब रहा है। इसे बचाने के तमाम सरकारी उपाय नाकाफी साबित होते दिख रहे हैं।
क्या कहते हैं आंकड़े
पशु संसाधन की गणना करने वाली 20वीं राष्ट्रीय पशुधन गणना नामक ताजा रिपोर्ट के मुताबिक, राजस्थान में ऊंटों की संख्या पिछले सात सालों में लगभग 35 फीसदी कम हुई है। वर्ष 2012 में जहां राजस्थान में 3.26 लाख ऊंट थे, जो वर्ष 2019 में घटकर 2.13 लाख हो गए हैं। वहीं गुजरात में ऊंटों की संख्या 30 हजार से घटकर 28 हजार, उत्तर प्रदेश में 8 हजार से घटकर 2 हजार, हरियाणा में 19 हजार से घटकर 5 हजार हो गई है। देश के करीब 82 फीसदी ऊंट राजस्थान में पाए जाते हैं। साल 1961 में राजस्थान में ऊंटों की संख्या करीब 10 लाख थी।
साल 1991 तक राजस्थान में ऊंटों की संख्या 8-10 लाख के बीच रही। इसके बाद ऊंटों की संख्या में गिरावट का दौर शुरू हो गया। साल 2003 में ऊंटों की संख्या घटकर 4 लाख 98 हजार रह गई। साल 2007 में प्रदेश में ऊंटों का कुनबा घटकर 4 लाख 22 हजार रह गया। गृह मंत्रालय की रिपोर्ट के मुताबिक बीएसएफ को 1276 ऊंटों की जरूरत है लेकिन उसके पास केवल 531 ऊंट ही हैं। ऊंट संख्या में विश्व में कभी तीसरे स्थान पर रहने वाला भारत आज नौवें स्थान पर आ गया है। पशु वैज्ञानिकों ने चिंता जाहिर की है कि अगर ऊंटों की संख्या बढ़ाने का कोई कारगर उपाय नहीं किया गया तो यह देश में विलुप्त हो जाएंगे।
गिरावट के कारण
देश में ऊंटों के संवर्द्धन और संरक्षण के लिए राजस्थान के बीकानेर में वर्ष 1984 में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद की तरफ से स्थापित राष्ट्रीय ऊंट अनुसंधान केन्द्र की रिपोर्ट के अनुसार, ऊंट की संख्या में कमी का मुख्य कारण चरागाहों की कमी, प्रजनन की कमी, युवाओं की ऊंट पालन से विमुखता, चारे की अनुपलब्धता और महंगाई भी है। वहीं ऊंटों की घटती संख्या के लिए ऊंटों का अवैध रूप से वध भी जिम्मेदार है। ऊंटों की कम होती संख्या के लिए रूढ़िवादिता भी एक कारण है। ऊंट पालने वाले राइका समाज में ऐसी मान्यता है कि ऊंटनी का दूध बेचना नहीं चाहिए। ऐसी मान्यता के कारण ऊंट के दूध का व्यापार नहीं बढ़ पा रहा है। पिछले कुछ वर्षों में ऊंट के मांस की मांग बढ़ने के कारण इनकी निर्मम हत्या की जाने लगी है। राजस्थान के कई जिलों में बलिदान के रूप में भी ऊंट मारा जा रहा है।
नतीजतन, राजस्थान में ऊंटों की संख्या तेजी से घट गई है। राजस्थान में ऊंटों की घटती संख्या के पीछे एक बड़ी वजह यह भी है कि पशुपालक अब ऊंटनी को गर्भवती ही नहीं होने देते। दरअसल ऊंटनी का करीब 13 महीने का गर्भकाल होता है। इस दौरान उसे करीब 4 महीने पूरी तरह आराम की जरूरत होती है। चूंकि इस दौरान पशुपालक को आर्थिक नुकसान उठाना पड़ता है। लिहाजा वह उसके गर्भवती होने से परहेज करता है। वहीं दैनिक जीवन में ऊंटों की उपयोगिता अब बहुत कम रह गई है। कृषि और यातायात के क्षेत्र में हुए मशीनीकरण ने ऊंट को हाशिए पर धकेल दिया है। राजस्थान से होने वाली ऊंटों की तस्करी भी इनकी संख्या कम होने के पीछे एक प्रमुख कारण है। तस्करी का यह जाल राजस्थान के थार रेगिस्तान से शुरू होकर उत्तर प्रदेश से बांग्लादेश होता हुआ खाड़ी देशों तक फैला हुआ है। ऊंट का मांस, उसकी हड्डियां, खाल और बाल तक की मांग रहती है।
आगे की राह
ऊंटों की संख्या में आई इस तेज गिरावट को देखते हुए यह सवाल खड़ा हो गया है कि क्या एक दिन भारत से ऊंट समाप्त हो जाएंगे? हालांकि, राजस्थान सरकार ने ऊंटों की संख्या को बढ़ाने के लिए ऊंट विकास योजना की शुरूआत की है। इसके अंतर्गत हर ऊंटनी के प्रसव पर ऊंट पालक को 10 हजार रुपए की अनुदान राशि दी जाती है। लेकिन केवल इस योजना से ऊंटों की संख्या में कमी को रोक पाना संभव नहीं है। हमें समझना होगा कि एक पशु के रूप में ऊंट राजस्थान के कई लोगों को आजीविका प्रदान करता है। इसका दूध कई बीमारियों के उपचार में काम आता है। अत: ऊंटों का बचाव अत्यंत जरूरी है। सरकार को ऊंट को एक डेयरी पशु के रूप में विकसित करते हुए इसके लिए उन्नत चरागाहों के विकास पर भी काम करना चाहिए। ऊंट के प्रजनन में वैज्ञानिक विधियों का इस्तेमाल होना चाहिए।
जिसमें टेस्ट ट्यूब तकनीक के जरिए ऊंटों की संख्या बढ़ाने के उपाय किये जा सकते हैं। कृषि के कामों में ऊंट को पर्यावरण मित्र के तौर पर प्रचारित करने के साथ ही कृषि कामों में ट्रैक्टर और मशीन की जगह ऊंटों का इस्तेमाल किया जाना चाहिए। क्योंकि ट्रैक्टर और मशीन से खेत में फसल और पौधों के लिए लाभकारी जीव-जंतु मर जाते हैं। साथ ही ऊंटों की बलि, हत्या व तस्करी को लेकर सुदृढ़ निगरानी तंत्र एवं टीम की तैनाती आवश्यक है। (लेख में लेखक के अपने विचार एवं अध्ययन है)
देवेन्द्रराज सुथार
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