श्रीमती अनीता मोदी
विभागाध्यक्ष, अर्थशास्त्र विभाग
जी.एस.एस. गर्ल्स (पी.जी.) काॅलेज
चिड़ावा (राजस्थान)
परिवहन एवं दूरसंचार क्षेत्रों में हुए तीव्र परिवर्तनों के साथ तकनीकी क्रांति ने सम्पूर्ण विष्व को एक 'वैष्विक गांव' के रूप में एकीकृत व समन्वित कर दिया है। इसी वजह से विभिन्न देशों के मध्य वस्तुओं, सेवाओं, साधनों, संस्कृति व ज्ञानविज्ञान का आदान-प्रदान तेजी से बढ़ता जा रहा है। इसी क्रम में विश्व में 'पर्यटन' ऐसे सशक्त एंव चमकते हुए उद्योग के रूप में अवतरित हुआ है जो आय, उत्पादन, रोजगार व निर्यात संवर्धन में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।इसी तथ्य को रेखांकित करते हुए एक सर्वेक्षण के आधार पर यह निष्कर्ष प्रदान किया गया है कि एक पर्यटक द्वारा खर्च किया जाने वाला एक रुपया अर्थव्यवस्था में 3.2 से 4.4 बार पुनः विनियोजित होकर देश के आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण योगदान देता है। यही नहीं, विदेशी मुद्रा प्राप्ति का अच्छा स्रोत होने के कारण भी विश्व के विभिन्न देश पर्यटन उद्योग के विकास हेतु हर संभव प्रयास करते हुए अपनी अर्थव्यवस्थाओं को सुदृढ़ कर रहे है।
विभिन्न देशों के मध्य आपसी सद्भाव, सामंजस्य एवं भाईचारे जैसी भावनाएॅ उत्पन्न करने व विकास करने में पर्यटन से अच्छा अन्य कोई विकल्प नहीं है।विश्व में शांति, सहयोग व सद्भावना की महती आवश्यकता को दृष्टिगत रखते हुए पर्यटन का महत्व दिगुणित हो जाता है। इसके अतिरिक्त पर्यटन सांस्कृतिक आदान-प्रदान का पर्याय है। हमारे देश में पर्यटन विकास की अपार एवं विपुल संभावनाएं मौजूद है। भौगोलिक विविधता, प्राकृतिक सौन्दर्य, ऐतिहासिक इमारतों, धार्मिक स्थलों एवं समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर के कारण हमारे देश में पर्यटन का महत्व उत्तरोत्तर बढ़ता जा रहा है। देश में अवस्थित पहाड़, समुद्र, नदियां, तालाब, जंगल, झरने एवं झीलों की प्राकृतिक छटा बरबस ही पर्यटकों का मन मोह लेती है। इसी भांति, हजारों वर्ष पुरानी गुफायें व कन्दरायें, किले, महल, गढ़ एवं देवालय पर्यटकों के लिए आकर्षण के केन्द्र है। देश के विभिन्न भागों एवं विशेष रूप से गांवों में आयोजित मेले, उत्सव, पर्व एवं त्यौहार भी पर्यटन के दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण हैं। देश के समुद्र पर्यटन वैभव की ओर संकेत करते हुए पूर्व पर्यटन राज्य मंत्री श्रीमती रेणुका चैधरी ने सटीक ही कहा है कि 'प्राकृतिक सौंदर्य, ऐतिहासिक स्थलों और धार्मिक स्थानों के दृष्टिकोण से भारत इतना समृद्व है जितना शायद ही दुनिया का कोई देष होगा।' इन सब पर्यटन केन्द्रों की बदौलत ही देश में करीब 70 लाख विदेशी पर्यटक प्रतिवर्ष भ्रमण हेतु आते है जबकि घरेलू पर्यटकों का आंकड़ा 35 लाख प्रतिवर्ष है। इन सबके बावजूद भी हकीकत यह है कि पर्यटन स्थलों की भरमार होने के बावजूद देश पर्यटन के दृष्टिकोण से अपेक्षित सफलता हासिल नहीं कर पाया है।
विचारणीय तथ्य है कि विश्व पर्यटन मानचित्र पर हमारा देश निचले पायदान पर हैं। पर्यटन के दृष्टिकोण से हमारा देश चीन, सिंगापुर, मलेशिया व थाईलैण्ड जैसे देशों से काफी पिछड़ा हुआ है। गौरतलब है कि विश्व के कुल पर्यटकों में देश की भागीदारी मात्र 0.33 प्रतिशत है जिसमें वृद्धि करने हेतु विश्व में सुव्यवस्थित व प्रभावी ढंग से पर्यटन स्थलों का प्रचार-प्रसार करने हेतु व्यापक रणनीति को क्रियान्वित किया जाना जरूरी है। वर्तमान उदारीकरण व वैष्वीकरण के युग में ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि, पषुपालन एवं कृषि, संबंधित क्षेत्रों एवं लघु व कुटीर उद्योगों में रोजगार अवसरों का निरन्तर संकुचन हो रहा है। ऐसी निराशाजनक स्थिति में बेरोजगारी बढ़ने के साथ देश में गरीबी भुखमरी व कुपोषण जैसी भयावह समस्याओं ने चुनौती का रूप धारण कर लिया है। इस संकट की घड़ी में 'पर्यटन' ही अर्थव्यवस्था के लिए वरदान साबित हो सकता है। देश के प्रत्येक अंचल में पर्यटन के दृष्टिकोण से कोई न कोई ऐसी विशेषता मौजूद है जिसको विकसित करके अधिकाधिक लोगों को प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार उपलब्ध कराते हुए गरीबी व भुखमरी की मार को कम किया जा सकता है।
पर्यटन एक ऐसा हथियार है जिसके द्वारा देश को गरीबी व बेरोजगारी के पंजों से मुक्त करवाकर विकास दर में बढ़ोतरी करना संभव है। यही नहीं, देश के ग्रामीण क्षेत्रों में प्रचलित लोकगीत, लोक वाद्य यंत्र एवं लोक कलाएॅ भी बरबस ही पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करते है। स्वर्णिम बालू रेत के टीले, लहलहाते हरे भरे खेत, गुनगुनाते कृषक वर्ग एवं उनकी आकर्षक रंगीन वेषभूषा, में 'रुरल ट्यूरिज्म' की अपार संभावनाऐं सन्निहित है। इसी भांति ग्रामीण लोक देवी देवताओं, लोकपर्व एवं लोक जीवन पर आधारित महोत्सव व मेलों का आयोजन करके पर्यटकों की संख्या में बढ़ोतरी करना संभव है। देश में 'स्वास्थ्यप्रद पर्यटन स्थलों' को चिन्हित करके उनके विकास हेतु योजनाएॅ क्रियान्वित करके पर्यटन विकास को सुनिश्चित किया जाना संभव है। देश के विभिन्न क्षेत्रों व कस्बों में अवस्थित विविध धार्मिक स्थल देशी पर्यटकों के लिए श्रद्धा व आकर्षण के केन्द्र है। इन स्थलों का योजनाबद्ध ढंग से विकास करके पर्यटकों की संख्या में बढ़ोतरी संभव है। इसी प्रकार, देश में ईको टूरिज्म, मेडिकल टूरिज्म की विपुल संभावनाएॅ विद्यमान है। मरुस्थलों, झीलों, पहाड़ों व वनाच्छादित क्षेत्रों में 'साहसिक पर्यटन' के विकास को सुनिष्चित करने के लिए नौकायन, ट्रैकिंग एवं पर्वतारोहण जैसी पर्यटन गतिविधियों को बढ़ावा दिया जा सकता है। पर्यटकों के आगमन के साथ ही पर्यटन उद्योग की धुरी से जुड़े सभी उद्योगों व इकाईयों के चक्र स्वतः ही घूमने लगते हैं। इस तथ्य को दृष्टिगत रखते हुए पर्यटकों की संख्या बढ़ाने, उनके आगमन को वर्ष पर्यन्त सुनिष्चित करने एवं पर्यटन संबंधित स्थलों व उद्योगों को विकसित करने हेतु हरसंभव प्रभावी प्रयास किये जाने चाहिये। पर्यटन के विकास के साथ ही देश गरीबी, बेरोजगारी, भूखमरी व अल्पपोषण आदि दानवों से मुक्त होकर वास्तविक अर्थो में 'समावेषी विकास' की कल्पना को साकार कर सकेगा।