तोताराम के साथ कल की मीटिंग चबूतरे पर ही हुई थी। पत्नी के घुटनों में दर्द था। हमने चबूतरे पर से ही आवाज़ लगाई थी- चिक्की की दादी, ज़रा दो कप चाय तो दे जाना। पर उत्तर नहीं आया। उसका इन्फ़्रास्ट्रकचर भी अब पैंसठ साल पुराना हो चुका है सो हमारी आवाज़ उसके एंटीना ने नहीं पकड़ी। फिर थोड़ा ज़ोर से आवाज़ लगाई तो उत्तर आया- आप ख़ुद ही आकर ले जाओ। तभी तोताराम को जाने क्या दौरा पड़ा, बोला- तू इस घर के मंत्री मंडल का सबसे कमजोर सदस्य है। तेरा इतना भी पावर नहीं कि तेरी एक आवाज़ पर दो कप चाय भी आ जाए। और उठकर चला गया।
तोताराम के साथ हमारा कम से कम साठ साल पुराना रिश्ता तो है ही। हँसी मजाक भी चलते रहते हैं। आज जाने उसे क्या हो गया कि इतनी घटिया बात कह गया। इसकी तो रसोई तक पहुँच है, ख़ुद जाकर भी तो चाय ला सकता था। न हम प्रधान मंत्री मन मोहन सिंह हैं और न यह प्राइम मिनिस्टर इन वेटिंग लाल कृष्ण अडवानी है । कौन सी हमारी जायदाद बँट रही थी। रात भर मन बैचैन रहा। ठीक से नींद भी नहीं आई।
सवेरे अख़बार पासमें रखे चबूतरे पर बैठे, पढ़ने का मन ही नहीं हो रहा था। तभी पास से आवाज़ आई- भाई साहब, अगर मेरी बात से आपको कष्ट हुआ हो तो मैं क्षमा माँगता हूँ। हम तो भरे बैठे ही थे, उबल पड़े- दो मिनट इंतज़ार नहीं कर सकता था या अन्दर जाकर ख़ुद चाय नहीं ला सकता था? तेरी भाभी के घुटनों में परसों से दर्द है। रसोई में आकर चाय ले जाने को कह दिया तो कौन सी आफ़त आगई ? कुछ कहने से पहले सोच तो लेता।
और फिर क्षमा माँगने का यह कौन सा कूटनीतिक स्टाइल चुना है? 'अगर कष्ट हुआ हो तो.....। क्षमा माँगने वाला अपनी भूल समझकर जब दुखी होता है तो स्वयं अपनी आत्मा की शान्ति के लिए प्रायश्चित स्वरुप क्षमा माँगता है। इसलिए क्षमा कभी अगर-मगर के साथ नहीं होती। क्षमा याचना आत्मविश्लेषण के बाद पश्चाताप-विगलित मन का गंगा-स्नान है तो धन्यवाद कृतज्ञ मन की पुण्य-प्रणति। वैसे यदि कोई व्यक्ति अभिमानी है तो उसकी क्षमा तभी पूर्ण होती है जब वह अपने अभिमान को व्यक्त और अव्यक्त रूप से मार नहीं देता।
इसके लिए अंगद द्वारा रावण को सुझाये गए क्षमा के तरीके से समझा जा सकता है। अंगद कहता है-
दसन गहहु तृण कंठ कुठारी। परिजन सहित संग निज नारी॥
सादर जनक सुता करि आगे। एहि विधि चलहु सकल भय त्यागे॥
प्रणतपाल रघुवंस-मणि त्राहि-त्राहि अब मोहि।
आरत गिरा सुनत प्रभु अभय करैगो तोहि॥
अब आज के प्रसंग में रावण कौन है और राम कौन ? तू जाने।
राजनीति के 'बांकों" की बातें अलग है। ये न तो लड़ते हैं, न मरते हैं, न मारते हैं। केवल नाटकबाजी करते हैं। आज स्वार्थ के लिए टुच्ची बातें करके कल क्षमा माँग कर फिर दूध के धुले बन जाते हैं। तुझे कुछ बोलना ही नहीं चाहिए था। अपनों को स्पष्टीकरण की ज़रूरत नहीं होती और दूसरे स्पष्टीकरण पर विश्वास नहीं करते। सो चुप ही रह। साइलेंस इज गोल्ड ।
तोताराम चाय लेने अपनी भाभी के पास चला गया । लौटा तो हाथों में चाय के दो गिलास और आँखों में वही सहज चमक। हम दोनों का कल्मष धुल चुका था। लेखन १९-६-२००९ (लेख में लेखक के अपने विचार हैं)
पता : रमेश जोशी (वरिष्ठ व्यंग्यकार, संपादक 'विश्वा' अंतर्राष्ट्रीय हिंदी समिति, अमरीका)
आइडिया टावर के सामने, दुर्गादास कॉलोनी, कृषि उपज मंडी के पास, सीकर -332001
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