कड़कनाथ भी हो गए नरमनाथ


हमें अपनी आदतें बदलनी पड़ेंगी 

 

इंदौर (मप्र) से नवीन जैन

 


मनो विश्लेषक डेल कार्नेगी ने अपनी विश्व प्रसिद्ध पुस्तक चिंता छोड़ो में अद्भुत बात कही थी कि हम चाहे तो किसी भी आदत को आसानी से बदल सकते हैं।  यदि आदतें बदलने लेगी तो समय यह भी आ सकता है आदमी अपना स्वभाव या प्रकृति भी बदलने लगे। कोरोना वायरस की विभीषिका ने भारतीय सभ्यता को यह नायब पुराणी सीख नए रंग में दी है। दरअसल कड़कनाथ एक मुर्गे की प्रजाति है जो मध्य प्रदेश में पाई जाती है। इस लुप्त हो गए प्राणी का व्यवहार भी बेहद कड़क माना जाता है। विशेषकर खाने पीने के मामले में कड़कनाथ इतने अकड़ू हुआ करते थे कि अपने खाने के चुगे के अलावा यदि ड्राई फ्रूट्स भी परोस दो तो झांसे में नहीं आते थे। कुछ दिनों पहले कड़कनाथ ऐसे ही हेकड़नाथ रहे।  मगर जैसा कि ऊपर कहा गया कड़कनाथ भी नरम पड़ते जाने को तैयार हो गए शायद डेल कार्नेगी मुख्यत : बात यही  लागू होती है कि आदतें तो आसानी से बदली जा सकती हैं। कोरोना के खिलाफ जंग में कड़कनाथ को भी यही करना पड़ा।



इस विशेष प्रजाति के प्राणी को जब रोज़ चुगे की जगह सब्जी रोटी दी गई तो कुछ दिनों तक तो जनाब इस मुग़ालते में रहे कि हम भी ऋषि मुनियों की तरह बिना दाना पानी के गुज़ारा कर लेंगे। इसलिए पहले तो सब्जी रोटी की तरफ नज़र तक नहीं फेंकी मगर शायद अपने बाल बच्चों का ख्याल आया। इसलिए सब्जी रोटी आजमाई। अब आलम यह है कि जनाब बेहद कड़कनाथ बिल्कुल नरमनाथ हो गए हैं। कुल जमा मतलब यह कि प्रकृति या नेचर या स्वभाव ने यह बता दिया कि वो तो हमें खुद को बदलना ही पड़ेगा। पहले आदतें आती है फिर स्वाभाव आ जायेगा नए मूड में आकर प्रकृति के हाथ में कभी कोरोना का चाबुक होगा तो किसी और वायरस का।