लाॅकडाउन की योद्धा है गृहिणी 

(डे लाइफ डेस्क)
मनुष्य कितना भी शक्तिसम्पन्न क्यों न हो जाये प्रकृति के सामने वह निरुपाय ही साबित होता रहा है। सदियों से लेकर आज तक कई भांत की सूक्ष्म और भौगोलिक दुर्धुष से सामना करते हुए वह फिर से जीवन की राह चल पडत़ा आया है। ऐसी ही अदम्य इच्छा शक्ति और जीजीविषा  की परीक्षा के लिए अतिसूक्ष्म शत्रु हमारे समक्ष अब आ ही खड़ा हुआ है। कोरोना वायरस से फैला ये रोग हमारे देश को जकड़ने की पूरी तैयारी में है। इससे बचाव ही उपाय है क्योंकि म्युटेड हुए इस नये वायरस का इलाज तो है ही नहीं बल्कि लक्षणों की पहचान भी अब की जा रही है। फिर भी इसकी प्रकृति क्या है ये समय ही बतायेगा क्योंकि अलग-अलग देशों में इसका व्यवहार अलग दृष्टिगत हुआ है। विश्व के 199 देशों को पूरी तरह गिरफत में ले कर यह विश्व महामारी भयंकर रुप ले चुकी है। इतिहास में यह सर्वप्रथम है कि कोई आपदा संपूर्ण जगत के क्षेत्र ही नहीं जन-जन को प्रभावित कर रही है।


भारत में इस वायरस ने कुछ दिन ठहर कर दस्तक दी इससे यह लाभ हुआ कि विभिन्न देशों की इससे लड़ने की रणनीति से अवगत हुआ और सीखा। इसी कारण खतरे की आहट मिलते ही हमारे प्रधानमंत्री जी ने  इक्कीस दिन का लाॅकडाउन रखने के लिए जनता से अपील की। यह लाॅकडाउन जनता का, जनता के लिए, जनता द्वारा है। इस विशाल देश में क्षेत्रीय आपदा आती रहती है फिर भी लाॅकडाउन शब्द बिलकुल नया है। पर इस बिमारी से बचने का एक ही तरीका है कि लोग एक-दूसरे से दूर रहें,सोशियल डिस्टेंसिंग बनाये रखे। छूने से क्योंकि यह रोग तेजी से फैलता है इसलिये जनता से धीरज धरते हुए इक्कीस दिन घर में ही रहने को कहा गया। हम देख ही रहे हैं कि स्कूल-काॅलेज,ऑफिस -संस्थान , फैक्टिरियां-कारखाने, दुकानें-बाजार सब कुछ बंद कर घर में बैठने की अपील की। सिर्फ जरुरी सेवायें जिनसे जीवन की मूलभूत आवश्यकता पूरी होती हो वही चालू है। अस्पताल-मेडिकल स्टोर, पुलिस, बिजली-पानी विभाग, किराणा-दूघ, सब्जी आदि की कुछ दुकानें खुली रहती है।  नागरिकों से कहा गया कि सिर्फ और सिर्फ अंत्यंत जरुरी सामान लेने के लिए ही बाहर निकलें अर्थात् दूध और अस्पताल के लिए ही क्योंकि बाहर निकलने से वायरस की चपेट में आने का पूरा खतरा है।


जब इक्कीस दिनों के लिए घर में रहने की बात हो तो गृहिणी एक तरह से योद्धा रुप में दृष्टिगोचर होती है। इस आपातकाल में पुलिस व गृहिणी के कांधे इस लाॅकडाउन को सफल बनाने की जिम्मेदारी आ पड़ी है।यहां उसको अपनी पारंपरिक चतुराई का इस्तेमाल करते हुए घर नहीं बल्कि रसोई में रहकर लाॅकडाउन को सफल बनाने में मुख्य भूमिका निबाहनी है। गृहिणी के घर के कामों में भी बढोतरी हुई है व सहायिका भी नहीं आ नहीं रही। इन दिनों घर के हर सदस्य को उसके काम में सहयोग देना चाहिए।बच्चों को घर का काम सिखाने का सही समय है। इस विकट दौर में जब उत्पादन कम है और आयात संभव नही तब घर या देश में मौजूद संसाधनों से ही हमें अपने ये दिन बिताने पड़ रहे हैं। यद्यपि सरकार जरुरत का सभी सामान उपलब्ध करा रही है तब भी हम गृहिणियों का फर्ज बनता है कि सामान को किफायत से बरतें जिससे सामान खरीदने के लिए घर के सदस्य को बाहर कम से कम जाना पड़े। क्योंकि रोज की जरुरत के सामान का दोहन हम लापरवाही से करेगें तो हमारे परिवार के किसी सदस्य को किराणा-दूध लेने के लिए बाहर जाना ही पड़ेगा। लाॅकडाउन के आधे दिन बीत चुक हैं और चूंकि अब संक्रमण कम्युनिटी स्तर पर है तो संक्रमित होने की संभावना हर बार बढ़ेगी। वह स्वयं ही नहीं बल्कि अनजाने ही अपने परिवार के लिए भी जानलेवा संक्रमण ले आता है। इसलिए केवल गृहिणी ही नहीं बल्कि परिवार के हर जन का कत्र्तव्य है कि घर की वस्तुओं का इस्तेमाल सीमित करे। गृहिणी दोनों समय जरुरत जितना सादा व पौष्टिक भोजन ही बनाये। तैलीय नहीं बल्कि सात्विक भोजन बनाये ताकि इम्युनिटी बढ़े। स्वस्थ रहना भी आवश्यक है क्योंकि अब अन्य छोटी सी बिमारी के लिए भी अस्पताल जाना संक्रमण को न्यौता देना है। अंकुरित दाल-अनाज,थुल्ली-खिचड़ी, सूखी सब्जियों के इस्तेमाल के यही सही दिन है। क्योंकि इसकी परंपरा इसीलिए पड़ी कि तुरत-फुरत और पौष्टिक भोजन बन जाये। अतिरिक्त खाना बन भी जाये तो अपने आस-पास किसी जरुरतमंद को दें जरुर लेकिन दस फीट के दूरी से।


इसके अतिरिक्त राशन सामग्री हमें इसलिए भी बचानी चाहिये कि हमारे आस-पास किसी परिवार में लाॅकडाउन के अंतिम दिनों में खाने की कमी हो जाये तो उनकी मदद भी कर सकें।  नमकीन,मैगी,पोहे,साॅस आदि प्रिजरवेटिव चटनियां लाॅकडाउन के अंतिम दिनों के लिए बचाकर रखें। बच्चों समेत घर का हर सदस्य गृहकार्य में गृहिणी की मदद करे। अनावश्यक मांगें ना करे जिससे बाजार जाने का कारण निकले। डोर टू डोर सामान पहुंचाने वालों से सिर्फ दाल,अनाज व दूध की ही मांग करें ना कि पनीर, पिजा बेस, जैम जैसी गैर जरुरी चीजों की। इस आपातकाल में उन्हें कई अतिजरुरतमंदों को भी सप्लाई करना होता है तो उन्हें बेवजह व्यस्त ना करें।


लाॅकडाउन का अनुभव पहली बार है लेकिन इतने दिनों में हमें समझ आ गया है कि हमारा घर में रहना कितना आवश्यक है।अब हम इसका पालन और सख्ती से करेगें। लाॅकडाउन परिवार के साथ छुट्टियां बिताने जैसा है। बच्चों और बुजुर्गांे व नौकरीपेशा गृहिणियों के लिए यह नया अनुभव साबित हो रहा है।घर में ही सुरक्षित रहकर मनोरंजन करना कितना सुखद है। अपनी दबी हुई रुचियों को पूरा करने का समय है जो अब तक समय का रोना रोते हुए पूरी नहीं हो पा रही थी। गृहिणी को भी ऐसा ही करने के लिए प्रेरित करते रहें। सभी जन योग-प्राणायाम अवश्य करते रहें। लाॅकडाउन के शुरु के दिनों में यदि टीवी-मोबाइल बहुत काम में ले लिया हो तो अब कम कर दें व बचे दिनों का प्रयोग रचनात्मक कार्यों के लिए तेजी से करें। टीवी,मोबाइल की लत पहले ही हमारे लिए मनोवैज्ञानिक समस्या बनी हुई है। इन दिनों इसके अतिप्रयोग से बच्चों व युवा में अवसाद व अन्य मानसिक व्याधियां ला सकती है। सावधान हो जायें। स्कूल व  काॅलेज के विद्याार्थी अपनी पढ़ाई भी जारी रखे क्योंकि लाॅकडाउन खतम होते ही अतिरिक्त कक्षायें होंगी व परीक्षायें तेजी से होने लगेंगी। इस समय का उपयोग पढ़ाई में करना आवश्यक है। बच्चों के साथ पारंपरिक खेल लूडो,चैपड़,अष्टा-चंगा,गड्डा,सांप-सीढ़ी खेलते हुए विगत की बातें बतायें। अच्छा साहित्य व काॅमिक पढाते रहें। कहानी सुनायें, वाद्य बजाना सिखायें व  उनकी रुचि अनुसार कार्यों को बढ़ावा दें।  इन दिनों की मितव्ययता , सहयोग व सहनशीलता का पाठ बच्चों व युवाओं के लिए सकारात्मक प्रभाव ला रहा है। बुजर्गों व हमारे लिए यह पुराने समय को याद करने जैसा लग रहा है।


गृहिणियां यदि घर के कामों की अधिकता के कारण कुछ रचनात्मक ना कर पा रही हों तो कुंठित ना हो क्योंकि सभी सदस्यों को प्रसन्नतापूर्वक बांध कर देश सेवा ही कर रही है जो कि समुचित भी है। यह अपने आप में महती कार्य है जिसकी अत्यधिक आवश्यकता है। इन सबके अतिरिक्त हमें आशावान व उर्जावान बने रहना जरुरी है। देश-दुनिया के समाचार सुनते हुए मायूस ना हों। आत्मबल बनाये रखें। बोरियत व अवसाद से बचने के सभी मिलकर उपाय करते रहें। अपने परिचितों का फोन से हालचाल लेते रहें व उन्हें आशान्वित बनाये रखने की कोशिश करते रहें। देश की व्यवस्थायें अंतत हमारी सुरक्षा के लिए दिनरात लगी हुई है। हमारे आस-पास डाॅक्टर,मेडिकलकर्मी,पुलिस आदि का  परिवार हो तो उनको मानसिक संबल दें,सराहना करें व सहायता करें। कोरोना मरीज भी अब हमारे बहुत पास क्वैरेंटाइन में हो तो उन्हें भी हौसला दें। अंतत यह सकारात्मकात्मकता ही विजय होती है। दुश्मन कितना भी बलवान हो हौसले और जोश हर विपदा का हल है।


हमारे देश के हर नागरिक की कोशिश ही  लाॅकडाउन को सफल बनायेगा व इन विकट दिनों के बाद भारत स्वस्थ बनकर निकलेगा। समय रहते लाॅकडाउन करने के निर्णय की हमारी सरकार की विश्व में प्रशंसा हो रही है लेकिन इसे व्यवहार में सफल हम ही करेगें तभी हमारा देश फिर से उठ खड़ा होगा ऐसे समय में जबकि साधन सम्पन्न देशों ने भी घुटने टेक दिये है। तो घर में बैठी योद्धाओं अपनी कुशलता का परिचय दो और संक्रमण से परिवार ही नहीं देश को भी बचाकर लाना है। आशायें कायम रखो व अपनी भूमिका निभाओ। (लेखिका के अपने विचार हैं )


 



लेखिका : किरण राजपुरोहित नितिला
जोधपुर