फिर जागेगी बहार

प्रकृति का उपहार  


सूनी सब गाँवों की गलियाँ, सूने शहरों के रास्ते,
सूनी आँखों के सपने पूछे, ये सज़ा मिली किस वास्ते 


सहती रही बरसों धरती, मानव की मनमानियां,
हरियाली-खुशहाली की बातें, लगने लगी थी कहानियाँ 


घुटने लगी जब साँस धरा की, तब उसने ली गहरी ये श्वास,
समझेगा इस पीड़ा को मानव, है प्रकृति को अब भी आस 


हंसता चाँद और हँसते सितारे, धुला-धुला सा आसमां होगा,
निंदिया से फिर जागेगी बहार, खुशियों का हर सूं समां होगा  


लेखिका : डॉ. सरिता अग्रवाल 
जयपुर