फूलों की दुकानें खोलो, खुशबुओं का व्यापार करो 

प्रसंग कोविड-19 : दुनिया भर में नकारात्मक की आंधी चल रही है इसको थामने के लिए इसके गले में सकारात्मकता का फंदा डालना होगा  




(डे लाइफ डेस्क)


स्पेंसर चार्ली चैपलिन ने मूक अभिनय के माध्यम से सम्पूर्ण मानव सभ्यता को त्रासदियों को भूल कर या उन पर हंसने का मांगलिक कार्य किया। फ्रांस के एक दार्शनिक ने कहा भी था कि जिस दिन में एक बार भी हंस ना लूँ  वह दिन मेरे लिए बेकार होता है। चैपलिन की कमी इसलिए खलिश दे रही है क्योंकि कोविड-19 के अंधियारे के दौर को दूर करने के दौरान पूरी दुनिया चिंताओं, आशंकाओं, दुखों, बेचारगियों, कुंठाओं से घिरने लगी हैं। चैपलिन जैसे ही कलाकार को किसी भी रुलाई को भुक्का फाड़ हँसी में तत्काल बदलकर दिल का पूरा गुबार निकाल सकने की कला आती थी । यह हुनर उन्हें अपनी गरीबी से उपजी हताशा से मिला था। वैसे भी आप हिंदी फिल्मों के हास्य अभिनेताओं की संघर्ष गाथाओं को पढ़ेंगे तो स्पष्ट हो जाएगा कि हर कोई ज़िन्दगी से सताया गया था।



चार्ली चैपलिन का 131 वां जन्मदिन 16 अप्रैल को था और निधन 25 दिसम्बर 1977  को हुआ था। ना जाने कितने रूप थे उनके हास्य कलाकार डायरेक्टर, प्रोड्यूसर, म्युज़िक डायरेक्टर, स्क्रिप्ट राइटर आदि। ऐसे महान अभिनेता ने सिर्फ अभिनय से ही खाना पूर्ति नहीं करली बल्कि हिटलर जैसा महान तानाशाह पर ऐतिहासिक फिल्म 'दी ग्रेट डिक्टेटर'  फिल्म भी बनायीं थी। जिसकी तारीफ हुई और विरोध भी चले। चैपलिन  कहते थे मैं ज़िन्दगी भर मसखरा ही रहना चाहता हूँ और मेरे लिए अभिनय पूर्ण  विश्राम की अवस्था चैपलिन के अनुसार उनका दर्द किसी को भी हंसा दे तो उन्हें अच्छा लगता है। लेकिन उनका दर्द किसी के भी दुःख का सबब बने यह उनको कतई पसंद नहीं था। चैपलिन 88 वर्ष तक जिए।



ऐसे में जब पूरी दुनिया कोरोना के खिलाफ महासंग्राम लड़ ररही है तो इससे उपजे नकारात्मक के बोध को सकारात्मकता के बोध में  बदलने के लिए अलख जगाने के लिए चार्ली चैपलिन का अभिनय संजीवनी बूटी या लाइफ सेविंग ड्रग या जीवनदायनी औषधि साबित हो सकती है। हमें हर हालत में फूलों की दुकानें खोलनी होंगी और खुशबुओं का व्यापार करना ही पड़ेगा। 


लेखक : नवीन जैन 
इंदौर