अंतर्राष्ट्रीय पुस्तक दिवस 23 अप्रैल
सालों से कहा जा रहा है कि ‘‘पुराना कोट पहनों, नई पुस्तकें खरीदो।’’ जाहिर है कि पुस्तकें हमें जिंदगी का सही रास्ता दिखाती हैं और असली मकसद को समझाती हैं। इसीलिए आज भी भारतीय समाज में रामायण, रामचरितमानस तथा गीता का इतना महत्व है। कुछ सालों से तो यह तक कहा जाने लगा है कि दुनिया में ऐसा कोई प्रश्न नहीं है जिसका उत्तर रामचरितमानस या गीता में न हो। और अगर इन दोनों ग्रंथों में उक्त प्रश्न का उत्तर नहीं मिल रहा हो तो वह प्रश्न अस्तित्व में ही नहीं है। मौका है 23 अप्रैल को पुस्तक दिवस मनाने का। 23 अप्रैल 1564 को अंगे्रजी साहित्यकार शेक्सपीयर ने दुनिया को अलविदा कहा था। शेक्सपीयर जिनकी कृतियों का विश्व की समस्त भाषाओं में अनुवाद हुआ। इसी उपलब्धि को देखते हुए यूनेस्को ने 1995 से और भारत ने 2001 से इस दिन को पुस्तक दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की ।
ग्लोबोलाइजेशन के इस युग में किताबें हमसे दूर होती जा रही हैं। पहले ऐसा नहीं था । पुस्तकें हमारी संगी-साथी हुआ करती थीं। हमारे प्राचीन ग्रंथों में भी किताओं के बारे में काफी उल्लेख मिलता है। गीता में तो यहाँ तक कहा गया है कि ‘‘ज्ञानात् ऋते न मुक्ति’’ अर्थात् ज्ञान के बिना मुुक्ति संभव नहीं है। यदि आप नियमित रूप से नहीं पढ़ते हैं तो हर दिन एक किताब के कुछ पन्नों को पढ़ें और टी.वी. पर समाचार पत्र पढ़ें । जल्दी ही आपको एहसास हो जाएगा कि आप फिल्में देखने की बजाय किताबें पढ़ने की अच्छी आदत के आदी हो चुके हैं। भारत में ऐसे कई परिवार हैं जिनमें आज भी परम्परा है या तो घर में पुस्तकें संग्रहित हो या संगीत का कोई वाद्य हो । तभी वह घर सम्पूर्ण घर माना जाता है।
पं. जवाहरलाल नेहरू का पुस्तकों के बारे में कहना था कि ‘‘जो पुस्तकें सबसे अधिक सोचने को मजबूर करें वही उत्तम पुस्तक है।’’ जाहिर है कि पढ़ने की आदत से इंसान का दिमाग सतत् विचारशील रहता है। इससे उसके सोचने, समझने का दायरा व्यापक होता चला जाता है, जिसका प्रभाव उसके पूरे जीवन पर पड़ता है। पुस्तकें पढ़ने की आदत वाला व्यक्ति प्रायः कोई गलत निर्णय नहीं लेता क्योंकि उसकी आदत पड़ जाती है कि हर महत्वपूर्ण बात के अच्छे और बुरे पक्ष पर गहराई से विचार किया जाए उसके बाद ही किसी निर्णय पर पहुँचा जाए । मतलब यह हुआ कि उसका विवेक सदा क्रियाशील रहता है। और विवेकवान व्यक्ति ही जीवन में सफल होते हैं। वैसे भी रूस में एक कहावत है कि जहाँ सौ प्रतिशत बुद्धि लगती है वहाँ एक प्रतिशत काॅमन सेंस से भी काम चल जाता है। यह काॅमन सेंस सिर्फ पुस्तकें ही विकसित कर सकती हैं।
इंग्लैंड के एक विश्वविद्यालय के एक शोध के अनुसार जो लोग पढ़ने तथा रचनात्मक गतिविधियों से जुड़े होते हैं वे हरदम कुछ नया सोचते रहते हैं या करते रहते हैं। मलाला युसुफजई ने किताबों के बारे में कहा है कि ‘‘एक किताब, एक कलम, एक बच्चा और एक टीचर पुरी दुनिया बदलने के लिए काफी हैं। किताबों के संपर्क में रहने वाले लोगों का दिमाब किताब न पढ़ने वाले लोगों की तुलना में 32 फीसदी युवा बना रहता है। लगातार पढ़ने की आदत से वे हमेशा अपडेट बने रहते हैं। चाहे मामला फैशन का भी क्यों न हो ? वे हमेशा अव्वल रहते हैं।
नई-नई टेक्नालाॅजी के इस्तेमाल करने में भी वे खासे उत्साह से भरे रहते हैं। कहा भी जाता है कि किताबें पढ़ने से तनाव के हार्मोन्स यानी कार्टिसोल कम होता जाता है। तनाव के दौरान तरह-तरह की फालतू बातें दिमाग में आती हैं। ऐसे में मन का शांत रहना लगभग असंभव हो जाता है। दिमाग में आने वाली फालतू बातों पर लगाम कसने का काम किताबें करती हैं। हम वर्तमान में प्रतियोगिता के युग में जी रहे हैं। हमारे बच्चों में कॅरियर बनाने की प्रतियोगिता को लेकर काफी दिमागी उथल-पुथल मची रहती है। यदि हम अपने ऐसे बच्चों को उनकी समस्याओं से संबंधित पुस्तकें पढ़ने के लिए प्रवत्त करें तो नतीजे बेहतर आने की पूरी संभावना रहती है क्योंकि तनाव जैसा राक्षस उनके दिमाग से निकल चुका होता है।
दुनिया के मशहूर गं्रथों या पुस्तकों में महाभारत, रामचरितमानस, गीता, चारों वेद, बाइबिल, कुरान और गुरूगं्रथ साहिब शामिल हैं। उधर संसार की प्रसिद्ध पुस्तकों में प्रेमचंद के उपन्यास गोदान, शिवाजी के उपन्यास मृत्यंुजय, शेक्सपीयर के नाटक हेमलेट, मेकबेथ आदि शामिल हैं। यह तो सर्वज्ञात है कि उत्तम स्वास्थ्य के लिए गहरी नींद का होना अतिआवश्यक है। यदि हम स्वस्थ रहना चाहते हैं और जिंदगी का लुत्फ उठाना चाहते हैं तो गहरी नींद लेने की आदत डालें ताकी हमारी सुबह खुशनुमा हो । याद रखें, यदि आप अच्छी किताबें पढ़ कर सोने की आदत डाल लेंगे तो आप भी कहेंगे कि वाह क्या दिन निकला है। प्रसिद्ध कवि स्व. भवानीप्रसाद मिश्र की एक कविता की कुछ पंक्तियाँ हैं -
कुछ लिखकर सो,
कुछ पढ़कर सो,
जिस जगह तू जागा था,
उस जगह से बढ़कर सो ।
(लेखक की अपनी शौध एवं विचार हैं)
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