कोरोना के अंधड़ में भूख का जंगल

यह लेख मैंने देश के सबसे बड़े दैनिक पत्र में करीब ढाई साल पहले लिखा था। आज इसकी प्रासंगिकता कोविड-19 के तहत फिर बढ़ गई है, क्योंकि भुखमरी इन दिनों एक सबसे विकराल समस्या साबित हो सकती है। कारण सरकार तो लगभग हर जगह हाथ पर हाथ धरे बैठी हैं। मण्डियों में नया अनाज भरा पड़ा है, लेकिन जरूरतमंदों तक उसके सीधे वितरण की कोई व्यवस्था दिखाई नहीं देती। यह बेहद दुखद परिदृश्य पूरे तंत्र में बड़ी सैंध भी सिद्ध हो सकती है।



लेखक: नवीन जैन इंदौर से 


इसमें कोई शक नहीं है कि भारत ने कुछ ही सालों में विभिन्न क्षेत्रों में बहुत प्रगति की है और वह विश्व शक्ति बनने की ओर तेजी से आगे बढ़ रहा है लेकिन कुछ जमीनी सच्चाईयाँ ऐसी हैं जो इस प्रगति का मुँह चिढ़ाती हैं। इनमें सबसे ऊपर नाम आता है भुखमरी का। संयुक्त राष्ट्र के भूख संबंधी सालाना सर्वे के अनुसार दुनिया में सबसे अधिक 19.4 करोड़ लोग भारत में भुखमरी के शिकार हैं। यह संख्या चीन से भी अधिक है। भारत में भूख के कारण प्रति सेकंड एक व्यक्ति की मृत्यु होती है। हमारे देश में प्रति घंटे 4000 व्यक्तियों की, प्रतिदिन एक लाख व्यक्तियों की तथा प्रतिवर्ष 36 मीलियन व्यक्तियों की मौत होती है। इनमें से 58 प्रतिशत मृत्यु भुखमरी के कारण होती है। भूख के कारण प्रति पाँच सेकंड में एक बच्चे की मृत्यु, प्रति घंटे 700 बच्चे तथा प्रतिदिन 16000 बच्चे एवं प्रतिवर्ष 6 मीलियन बच्चों की मौतें होती हैं।


भूख को मापने का एक अन्तर्राष्ट्रीय मानक है जो बाॅडी माॅस इंडेक्स यानी बीएमआई कहलाता है। यह किसी व्यक्ति के कद के हिसाब से उसके वनज की सीमा बताता है। एक सामान्य बीएमआई के लिए अन्तर्राष्ट्रीय स्वीकार्य सीमा 18.5 है । 17 से 18.4 की बीएमआई वाले को कुपोषित कहा जाता है और 16.0 से 16.9 के बीच वाले व्यक्ति को गंभीर रूप से कुपोषित कहा जाता है। इस मानक के अनुसार 16 से कम बीएमआई वाले व्यकित को भुखमरी का शिकार कहा जाता है। भुखमरी मापने वाले सूचकांक ग्लोबल हंगर इंडेक्स ने भारत को ‘अलार्मिंग कैटिगिरी’ में रखा है । सन् 2016 की रिपोर्ट में भारत की स्थिति काफी गंभीर दिखाई देती है । दुनिया के 118 देशों में भूख और कुपोषण को ध्यान में रखकर तैयार की जाने वाली इस सूची में भारत 97वें स्थान पर है। चिंता की बात यह है कि देश के रोजाना 19 करोड़ लोग भूखे सोने को मजबूर हैं।


दुनिया में भुखमरी के शिकार जितने लोग हैं उनमें से एक चैथाई लोग सिर्फ भारत में रहते हैं। भुखमरी के मामले में हमारे हालात पाकिस्तान और बांग्लादेश जैसे मुल्कों से भी ज्यादा खराब हैं । वैसे भयानक गरीबी झेलने वाले देश इथोपिया, सूडान, कांगो, नाइजर, चाड और दूसरे अफ्रीकी देश हैं । रिपोर्ट के मुताबिक भारत की हालत भले ही पहले से बेहतर हुई हो लेकिन कई पड़ोसी मुल्कों से बद्तर है।



नेशनल फेमिली हेल्थ सर्वे के मुताबिक देश में बच्चों की कुल आबादी में से 40 प्रतिशत बच्चे शारीरिक विकास की समस्या और 60 प्रतिशत बच्चे कम वजन की समस्या से जूझ रहे हैं। कुपोषण के कारण 5 साल से कम आयु के लगभग 20 प्रतिशत बच्चों की मौत देश में हर साल हो रही है। इतना ही नहीं देश की राजधानी दिल्ली के स्मल इलाकों के 36 प्रतिशत बच्चे कुपोषण से पीड़ित हैं। क्राई तथा अलाइंस फाॅर पीपुल्स राइट्स के द्वारा दिल्ली के स्लम इलाकों के बच्चो पर ताजा शोध में हुआ है। यह शोध नवजात से लेकर 5 साल तक के कुल 3650 बच्चों पर किया गया था जिसमें 626 लड़के और 674 लड़कियाँ कुपोषित पाई गईं।


एक अनुमान के अनुसार हमारे देश में छह करोड़ से भी अधिक बच्चे कुपोषण से ग्रसित हैं। कुपोषण की जद में आने के बाद बच्चों में बीमारियों से लड़ने की क्षमता या उनके शरीर की प्रतिरोधक क्षमता धीरे-धीरे कमजोर हो जाती है जिससे बच्चा खसरा, निमोनिया, पीलिया, मलेरिया आदि बीमारियों की गिरफ्त में आकर दम तोड़ देता है । बच्चे मरते तो कुपोषण से हैं लेकिन लोगों को लगता है कि उनकी मौत बीमारियों के कारण हो रही हैं। प्रसिद्ध अर्थशास्त्री ज्यां द्रेज के अनुसार देश के कुछ राज्य मसलन बिहार, झारखंड, ओडिशा, मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश आदि कुपोषण की समस्या से बुरी तरह त्रस्त हैं। गरीबी की वजह से इन राज्यों में कुपोषण के मामलों में लगातार इजाफा हो रहा है। नेशनल सर्वे द्वारा जारी आँकड़ों के अनुसार बिहार, उत्तर प्रदेश तथा मध्यप्रदेश के 80 प्रतिशत ग्रामीण तथा 60 प्रतिशत शहरी जनता को समुचित पोषाहार नहीं मिल पाता है। फिलहाल पश्चिम बंगाल के चाय बागान वाले उत्तरी क्षेत्र, उड़ीसा तथा झारखंड भी भुखमरी की समस्या से सबसे ज्यादा पीड़ित है। कालाहांडी का सच दशकों से चिंतनीय है । बताना ठीक रहेगा कि वर्ष 1943 में बंगाल के भाषण अकाल के दौरान 30 से 40 लाख लोग भुखमरी के शिकार हुए थे।



गौर करने लायक बात यह है कि केवल पेट भरना ही पोषण नहीं है। हमारे भोजन में समुचित मात्रा में प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, वसा, खनिज, लवण, विटामिन और शुद्ध जल का शामिल होना बहुत जरूरी है। कुपोषण से मुक्ति पाने में स्वच्छता एवं जागरूकता बेहद अहम् भूमिका निभाती है। इन दिनों देश भर में एक कदम स्वच्छता की ओर’ नारे के साथ घर-घर शौचालय निर्माण का अभियान जोर-शोर से चल रहा है । इसके लिए जन-जन की जागरूकता एवं सक्रिय भागीदारी बेहद आवश्यक है। भुखमरी जैसी भयंकर बीमारी पर अंकुश लगाना सरकार के लिए बहुत बड़ी चुनौती है। हाँलाकि सरकार की तरफ से बच्चों की विभिन्न बीमारियों के बचाव के लिए टीकाकरण और गर्भवती महिलाओं के लिए कई प्रकार की स्वास्थ्य योजनाएँ क्रियान्वित की गई हैं। बहुत जरूरी है कि ग्रामीण तबकों तक सारी योजनाओं का लाभ पहुँचे। देश की वितरण प्रणाली में सुधार के साथ ही उसमें लिप्त भ्रष्ट लोगों पर भी अंकुश जरूरी है।


सालों पहले भुखमरी का प्रयोग मृत्युदंड के रूप में किया जाता था। मानव सभ्यता की शुरूआत से लेकर मध्य युग तक लोगों को चार दीवारों में कैद कर दिया जाता था और वे भूख के चलते मर जाते थे।  प्राचीन ग्रेको रोमन सभ्यता में भी ऊँचे दर्जे के किस्से दर्ज हैं। टिबेरियास सभ्यता में भी भूख से मार डालने की प्रथा थी। वहाँ लड़कियों को ब्रह्मचर्य का संकल्प तोड़ने का दोषी पाए जाने पर भुखमरी की सजा दी जाती थी। इसी तरह 19वीं शताब्दी में युगोलिनो डेला को परिवार सहित पीसा के एक बुर्ज में बंद करके भूख से मार डाला गया था।  (लेखक के अपने विचार हैं)