मानवीय एकता के सूत्र  


प्रो. (डॉ.) सोहन राज तातेड़


पूर्व कुलपति सिंघानिया विश्विद्यालय, राजस्थान


(डे लाइफ डेस्क)


पुनरुत्थान कार्यक्रम में गिरते हुए मूल्यों की पुर्नस्थापना और पुर्नजागरण के लिए कुछ ऐसे चिंतन बिन्दु यहां प्रस्तुत किये जा रहे है जिनका उद्देश्य मानवीय एकता के सूत्र है। मानवीय एकता क्या है? क्यों आज इसकी आवश्यकता पड़ी है? एकता पैदा करने वाले सूत्र क्या है? इसे समझने के लिए मानव को समझना पड़ेगा। मानव एक सामाजिक प्राणी है। मनुष्य समाज में रहता है। समाज से बहुत कुछ प्राप्त करता है। समाज से आदान-प्रदान, भाईचारा, सौहार्द, सहानुभूति, समता, उदारता से रहना उसका कत्र्तव्य है। समाज में किसी का शोषण न हो। राष्ट्र निर्माण में सबका योगदान हों जिससे स्वस्थ समाज का निर्माण हो सके। भेद-भाव की खांई को समाप्त करने के लिए सबको मिलकर के प्रयास करना चाहिए। जन्म के समय सभी समान होते है। किन्तु पैदा होने के बाद सम्प्रदाय की छाप लगा दी जाती है। यह सम्प्रदाय ही एक ऐसा तत्व है जो मानव-मानव में भेद कर देता है।


जन्म के समय बच्चा कोरे कागज के समान होता है। परिवार और समाज में जो सिख उसे दी जाती है वह वैसा ही बन जाता है। हिन्दु परिवार में जन्मा हुआ बच्चा हिन्दु संस्कारों में पलता है और मुस्लिम समाज में पैदा हुआ बच्चा मुस्लिम संस्कारों से पलता-पुस्ता है। इसी प्रकार जैन, बौद्ध, सिक्ख, ईसाई परिवारों में जन्म लेने वाले बच्चे धर्मानुकूल सामाजिक वातावरण में बड़े होते है। सम्प्रदाय भेद पैदा करता है और धर्म एकरूपता दिखलाता है। सभी प्राणी सुख से जीना चाहते है, कोई भी प्राणी दुःख नहीं चाहता। फिर भी सुख-दुःख आत्मकर्तृत्व के आधार पर भोगने पड़ते है। जिससे यह सिद्ध होता है कि पूर्व जन्म में किये हुए कर्म भी मानव को इस जन्म में भोगने पड़ते है। प्रकृति सबके साथ समान व्यवहार करती है और एकता का संदेश देती है। पृथ्वी, जल, वायु और आकाश का आनन्द सब समान रूप से लेते है। सूर्य का प्रकाश सभी समान रूप से लेते है कोई कम या ज्यादा ग्रहण नहीं करता है। इससे यह ज्ञात होता है कि प्रकृति सबकी है और सब प्रकृति के है तो भेद किस बात का है। मानवीय एकता पर अपने विचार व्यक्त करते हुए कबीरदास जी ने लिखा है- 


एक खून एकहि मलमूतर एक चाम एक गुदा,
एक जाति से सब उपजाना को ब्राह्मण को शूदा



सभी मनुष्य का रक्त समान होता है, मलमूत्र समान होता है, सभी मानव जाति से उत्पन्न है तो मनुष्य में अंतर किस बात का। यह अंतर मानवकृत है ईश्वरकृत नहीं। ईश्वर की दृष्टि में सब समान है। हरि का भजै सो हरि का होई जो ईश्वर का भजन करता है वही ईश्वर का हो जाता है। मानव न कुछ लेकर के आया है और न कुछ लेकर के जायेगा। उसका धर्म और पुण्य-पाप कर्म ही उसके साथ जाता है। मानवीय एकता के लिए हमारे ऋषियों मुनियों ने बहुत प्रयास किया है। सबकी समान शिक्षा, सबकी समान दिक्षा और सबकी समान कार्यप्रणाली ही मानवीय एकता को दर्शाती है। परिवार, समाज और देश में भाईचारा होना चाहिए।


वसुधैव कुटुम्बकम् का सूत्र हमारे भारतीय संस्कृति का सूत्र है। पूरा विश्व ही एक परिवार के समान है इसमें कोई न तो उच्च है और न ही निम्न। सभी अपने धर्म, वर्ण, जाति के अनुसार परिवार, समाज और राष्ट्र के उत्थान में लगे हुए है। हमारे राष्ट्रीय पर्व भी हमें एकता के सूत्र में बांटते है। होली, दिवाली, रक्षाबंधन, ईद, वैशाखी इत्यादि उत्सव एकता का संदेश देते है, भाईचारे का संदेश देते हैं। ये सब पर्व हम लोग मिलकर खुशियां बांटकर मनाते है। किसी के सुख में सुख और दुःख में दुःख का अनुभव करना हमारा कत्र्तव्य है। एकता की सबसे बड़ी मिसाल उस समय प्रस्तुत होती है जिस समय कोई राष्ट्रीय आपदा आती है। अतिवृष्टि, अनावृष्टि, सुनामी, भूकम्प आदि प्राकृतिक आपदाएं जब आती है तो उस समय धनजन की बहुत हानि होती है। सबसे बड़ी समस्या छोटे बच्चों को आती है जिनके मां-बाप और पारिवारिक जन कालकवलित हो जाते है। उस समय स्वयंसेवी संस्थाएं और अनेक सामाजिक संस्थाएं सरकार के सहायता कार्यक्रम में साथ मिलकर इन बच्चों की देखभाल करती है और अपने संसाधनों के अनुकूल रोटी, कपड़ा, मकान और चिकित्सा की व्यवस्था करती है। ये सब कार्यक्रम मानवीय एकता के आधार पर ही संभव हो पाता है।


धर्म मनुष्य को तोड़ता नहीं बल्कि जोड़ता है। ईश्वर के समक्ष या देवालयों में जब हम जाते है तो वहां पर सबकी मंगल कामना करते है। इसीलिए धर्म को उत्कृष्ट मंगल कहा गया है। जैसे गंगा, यमुना जैसी नदियों का जल सब समान रूप से ग्रहण करते है और अपनी प्यास बूझाते है। वहां किसी प्रकार का भेद-भाव नहीं रहता। आज के समाज में कुछ ऐसी आतंकवादी घटनाएं समाज को तोड़ने के लिए की जा रही है जिससे समाज विभाजित हो जाये किन्तु आतंकवादियों के मनसूबों को सभी जानते है और उनकी यह कुत्सित विचारधारा कभी सफल नहीं हो सकती। हर धर्म और हर समाज में कुछ बुरे विचारधारा के लोग होते है जिनका उद्देश्य यह होता है कि समाज को तोड़ो, भाईचारा को बिगाड़ो। तुच्छ स्वार्थों के कारण ऐसे समाज कंटक लोग समाज की शांति व्यवस्था को तोड़कर अशांति फैलाना चाहते है और राजनैतिक लाभ लेते है किन्तु मानवीय एकता का प्रबल धागा कभी टूटता नहीं। (लेखक के अपने विचार है)