प्रोफेसर (डॉ.) सोहन राज तातेड़
पूर्व कुलपति सिंघानिया विश्विद्यालय, राजस्थान
महात्मा गांधी हमारे देश के महापुरुषों में अग्रणी है। इनका पुरा नाम मोहनदास कर्मचन्द गांधी था। इनकी माता का नाम पुतली बाई था जो एक धर्मनिष्ठ महिला थी। महात्मा गांधी का लालन-पालन और प्रारम्भिक शिक्षा गुजरात में ही हुई। किन्तु उच्च शिक्षा के लिए विदेश जाना पड़ा। जब महात्मा गांधी उच्च शिक्षा के लिए विदेश जा रहे थे तो इनकी माता पुतली बाई ने इन्हें मद्यमांस के सेवन का निषेध और भोगविलासिता से दूर रहने का उपदेश दिया था। माता के उपदेश को इन्होंने जीवन में पूरी तरह उतारा और पूर्ण मनोयोग के साथ शिक्षा ग्रहण की। विदेश से जब वैरिस्टर बनकर लौटे तो उन्होंने यह देखा की भारत में अशिक्षा, भुखमरी, छूआछूत और ऊंच-नीच का भेदभाव पूरी तरह से व्याप्त है।
अंग्रेजों ने भारत को अपने अधिकार में लेकर यहां के देशवासियों के साथ बुरा वर्ताव कर रहे है। इन सब बातों को देखकर महात्मा गांधी को बहुत कष्ट हुआ और उन्होंने सामाजिक और राजनैतिक से पिछड़े हुए भारत को अंग्रेजों के चंगुल से मुक्त करने का बेड़ा उठाया। महात्मा गांधी यह अच्छी तरह जानते थे कि अंग्रेजी शासन से शस्त्र बल से टक्कर लेना बड़ा मुश्किल हैै। अंग्रेज लोग पूरी तरह से अस्त्र-शस्त्र से सुसज्जित है। अगर हिंसात्मक आंदोलन किया जाता है तो निश्चित रूप से धन-जन और निरीह लोगों का भारी विनाश होगा। इसलिए उन्होंने राजनीति में अहिंसा का एक नया प्रयोग किया जो कि पूरी तरह सफल रहा। महात्मा गांधी ने यह देखा की भारत की सम्पत्ति लूटकर अंग्रेज विदेश ले जा रहे है। उच्च पदों पर अंग्रेज अधिकारी सत्तासीन है, अंग्रेजों ने फूट डालों और राज करों की नीति अपनाकर भारत में वर्गभेद पैदा कर दिया है। अंग्रेजों के इस षडयंत्र को समझकर महात्मा गांधी ने भारतवासियों में जनचेतना का अभियान चलाया और यहां के लोगों में यह भावना भर दी कि अंग्रेज राज्य विदेशी है। इसेे हटाकर स्वशासन की जरूरत है।
महात्मा गांधी ने देश को स्वतंत्र कराने के लिए अहिंसात्मक आंदोलन चलाया। इस आंदोलन के लिए उन्होंने असहयोग आंदोलन, सत्याग्रह, सविनय अवज्ञा आंदोलन, भूख हड़ताल आदि अहिंसात्मक आंदोलन चलाया। महात्मा गाँधी ने अहिंसा को एक शस्त्र के रूप में प्रयोग किया। अहिंसा, संयम और तप को उत्कृष्ट धर्म कहा है। अहिंसाव्रत की अनुपालना में जो बाधाएं हैं, जब तक उनका परिहार नहीं होता, तब तक उसका अनुपालन संभव नहीं है। महात्मा गांधी ने आचरण की पवित्रता पर जितना अधिक बल दिया है, उतना किसी अन्य पर नहीं। उनका मानना था कि आचार के बल पर मानव देवता के समान पूजनीय बन जाता है।
भगवान् बुद्ध, भगवान् महावीर, श्रीमदाद्यशंकराचार्य जैसे महान् व्यक्तित्व का नाम आदर के साथ इसीलिए लिया जाता है कि इन्होंने अपने आचारण के द्वारा संसार को एक नयी दिशा दी। महात्मा गांधी के अनुसार अहिंसा केवल जीव हिंसा ही नहीं है बल्कि मन, वचन और काया की एकरूपता भी है। अहिंसा परमोधर्मः उनकी जीवन का मूल मंत्र था। अपने प्रति और दूसरों के प्रति ही नकारात्मक चिंतन करना हिंसा है। महात्मा गांधी का मानना था कि व्यक्ति कभी-कभी निषेधात्मक चिंतन के द्वारा तनाव में आकर आत्महत्या कर लेता है। यह बहुत बड़ा पाप है। मानव को परिस्थितियों से लड़ने और उस पर विजय प्राप्त करने के लिए तैयार रहना चाहिए। अहिंसा से सुख सम्पन्नता आती है। नैतिकता और शिष्टाचार का अध्याय जीवन में शुरू होता है।
महात्मा गांधी ने श्रीमद्रायचन्द से अहिंसा का पाठ सीखा था। जलियावालाबाग हत्याकांड में जब अनेक निर्दोष भारतीयों की हत्या हुई तो उस समय महात्मा गांधी ने अहिंसात्मक आंदोलन चलाते हुए अंग्रेजों के प्रति असहयोग आंदोलन चलाया। समय-समय पर सत्याग्रह आंदोलन भूख-हड़ताल इत्यादि के द्वारा अंग्रेजों का विरोध किया। समय-समय पर अनेक बार उन्हें जेल भी जाना पड़ा। लेकिन उन्होंने अपने अहिंसा व्रत को कभी तोड़ा नहीं जिस समय उत्तरप्रदेश के गोरखपुर जिले में चैरीचैरा हत्याकांड हुआ उग्र भीड़ ने पुलिस थाने को जला दिया। उस समय गांधी जी ने अपने असहयोग आंदोलन को वापस ले लिया।
गांधीजी का मानना था कि हिंसा को हिंसा से नहीं समाप्त किया जा सकता। गांधीजी के साथ धीरे-धीरे अनेक स्वतंत्रता संग्राम सैनानी जुड़ते चले गये। उसमें से कुछ लोग गांधीजी की नीतियों केे प्रबल समर्थक थे और कुछ नीतियों के विरोधी। कुछ समय बाद कांग्रेस नरम दल और गरम दल दो भागों में बंट गई। गोपालकृष्ण गोखले गांधीजी के राजनीतिक गुरू थे और नरम दल का नेतृत्व कर रहे थे। दूसरी तरफ गरम दल में लाला लाजपतराय, बाल गंगाधर तिलक और विपिनचन्द्रपाल जैसे नेता थे। इन लोगों का मानना था कि अंग्रेज बिना शस्त्र का प्रयोग किये भारत को छोड़ नहीं सकते। इसलिए भारत का स्वतंत्रता आंदोलन हिंसात्मक और अहिंसात्मक दोनों तत्वों का मिला-जुला रूप था।
महात्मा गांधी ने सर्वोदय आंदोलन, कुटिर उद्योग, सर्वधर्म समभाव, सहिष्णुता जैसे अहिंसात्मक तरीकों को अपनाकर स्वतंत्रता आंदोलन में जान फूंक दी और अहिंसा के बल पर देश को स्वतंत्र कराया। आज आदर के साथ उनका नाम लिया जाता है। भारत में ही नहीं बल्कि विश्व के अनेक देशों में अहिंसा के इस पुजारी की मूर्ति स्थापित की गयी है। अहिंसा का संदेश महात्मा गांधी ने जीवन भर दिया। (लेखक के अपने विचार हैं)