जाने किस किस रूप में आकर, प्रेम लुटाये मेरी माँ,
पथरीली हो राहें तो, फूल बिछाये मेरी माँ ।
अंधेरी रातों में पथ में, दीप जलाये, मेरी माँ,
प्यासी रेतीली दुपहरी में, जल बरसाये मेरी माँ ।
पतझड़ के वीरानों में, गुल महकाये मेरी माँ
भटकती सरिता को सागर की, राह बताये मेरी माँ ।
डॉ. सरिता अग्रवाल (जयपुर)