प्रोफेसर (डॉ.) सोहन राज तातेड़
पूर्व कुलपति सिंघानिया विश्विद्यालय, राजस्थान
जीवन विज्ञान-जीवन जीने की कला, मानसिक तनाव से भी भावनात्मक तनाव के परिणाम भयंकर होते है। हम कैसे श्वास लें, कैसे चलें, कैसे बैठे, कैसे देखें, कैसे दूसरों के साथ बर्ताव करे, कैसे आचरण करे, बड़ो के साथ कैसा व्यवहार करे, छोटो के साथ कैसा आचरण करे।
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राग-द्वेष को जीतने का नाम है- जीवन विज्ञान। जीवन तो सभी जीते है किन्तु जीवन कैसे जिया जाये इस प्रक्रिया का ज्ञान जीवन विज्ञान कहलाता है। जीवन विज्ञान जीवन जीने की कला है। जीवन जीने की कला का तात्पर्य है कि हम कैसे श्वास लें, कैसे चलें, कैसे बैठे, कैसे देखें, कैसे दूसरों के साथ बर्ताव करे, कैसे आचरण करे, बड़ो के साथ कैसा व्यवहार करे, छोटो के साथ कैसा आचरण करे। स्वस्थ समाज संरचना में जीवन विज्ञान का महत्त्वपूर्ण योगदान है। आज की सबसे बड़ी समस्या तनाव की है। जीवन विज्ञान तनाव दूर करने का एक महत्त्वपूर्ण उपक्रम है। वैज्ञानिक जगत में कायोत्सर्ग की प्रक्रिया तनाव मुक्ति, शिथिलीकरण की अचूक प्रक्रिया है। आज का आदमी तनाव का शिकार है उसे शांति का अनुभव नहीं होता है। वह निरंतर बैचेन रहता है। तनाव को दूर करने के लिए यह जानना आवश्यक है कि यह क्यों पैदा होता है अध्यात्म की दृष्टि से तनाव को तीन भागों में बांटा गया है शारीरिक तनाव, मानसिक तनाव और भावनात्मक तनाव प्रत्येक व्यक्ति तीनों तनावों से घिरा है। जब व्यक्ति अत्यधिक शारीरिक श्रम कर्ता है तो थक जाता है तब उसके शरीर में तनाव निर्मित हो जाता है।
मांसपेशियों में तत्कालित खिंचवा व कड़ापन आ जाता है जो बाद में विश्राम करने पर दूर हो जाता है पर दो घंटे सोने से जितना विश्राम मांसपेशियों को नहीं मिलता उतना आधे घंटे तक विधिवत कायोत्सर्ग करने से मिल जाता है। हम मन का श्रम तो करते है किन्तु उसको विश्राम देना नहीं जानते है। हम चिन्तन करना जानते है किन्तु अचिन्तन की बात नहीं जानते, चिन्तन से मुक्त होना नहीं जानते। मानसिक तनाव का मुख्य कारण है- अधिक सोचना। सोचने की भी एक बीमारी है। कुछ लोग इस बीमारी से इतने ग्रस्त है कि परियोजन हो या न हो, वे निरंतर कुछ न कुछ सोचते रहते है।
मन को विश्राम देना भी संभव है जब हम वर्तमान में रहना सिख जाये। वह स्मृतियों की उदेड़बन में या कल्पनाओं के ताने बाने में व्यस्त रहता है वर्तमान में जिनका अर्थ है-मन को विश्राम देना, बाहर से मुक्त होना, मानसिक तनाव से छुटकारा पाना। यह एक बड़ी समस्या है आर्त और रौद्र ध्यान इसके मूल कारण है। आर्त ध्यान का अर्थ है प्रिय की प्राप्ति एवं अप्रिय से मुक्ति के लिए निरन्तर चिन्तन करना आज के युग में शारीरिक तनाव एक समस्या है। मानसिक तनाव उससे उग्र समस्या है और भावनात्मक तनाव सबसे विकट समस्यां है।
मानसिक तनाव से भी भावनात्मक तनाव के परिणाम भयंकर होते है। इस समस्या से निपटने के लिए प्रेक्षाध्यान का सहारा लिया जाता है। प्रेक्षाध्यान के अभ्यास से आर्त-रौद्र ध्यान टूट जाता है। जीवन में श्वास-प्रश्वास का बड़ा महत्त्व है। श्वास भीतर जाता है, उसके साथ प्राणवायु भीतर जाती है। प्राण तत्त्व भी भीतर जाता है और प्राण-तत्त्व का उर्जा के रूप में परिणमन होता है। हमारे जीवन क समूचा क्रम, हमारी सारी प्रवृत्तियां प्राणशक्ति या प्राण उर्जा के द्वारा संचालित होती है। यदि प्राण की उर्जा नहीं है तो चेतना टिक नहीं सकेगी।
हम जितना गहरा श्वास लेते है, उतनी ही अधिक प्राण-शक्ति प्राप्त होती है। जब हम श्वास-प्रेक्षा द्वारा श्वास-दर्शन करते हैं, तब प्राण-शक्ति और बढ़ जाती है। श्वास दो प्रकार का होता है- सहज और प्रयत्न-जनित। प्रयत्न के द्वारा श्वास में परिवर्तन किया जा सकता है, छोटे श्वास को दीर्घ बनाया जाता जा सकता है। साधना को विकसित करने के लिए प्राण-शक्ति की प्रचुरता अपेक्षित होती है। प्राण-शक्ति के लिए श्वास का ईंधन चाहिए। श्वास का ईंधन जितना सशक्त होगा, प्राण-शक्ति उतनी ही सशक्त होगी और प्राण-शक्ति जितनी सशक्त होगी, हमारी साधना उतनी ही सफल होगी।
श्वास को सशक्त बनाने के लिए ही हमे उसे दीर्घ बनाना चाहिए। जीवन और श्वास का अन्योन्य संबंध है। शरीर स्वास्थ्य की दृष्टि से श्वास न हो तो हमारी मांसपेशियां गति नहीं करती, हमारे शरीर में क्षमता नहीं होती। हमारे दिमाग के तंतु मृतप्रायः हो जाते। हृदय की धड़कन बंद हो जाती है और आदमी मर जाता है। समूचे शरीर को संचालित करने के लिए श्वास ईंधन देता है अतः श्वास जीवन का एक मूल्यवान पक्ष है। श्वास प्रेक्षा की वैज्ञानिकता को समझने के लिए श्वसन क्रिया को समझना आवश्यक है। प्राणियों में श्वसन एक आवश्यक एवं महत्त्वपूर्ण प्रक्रिया है, जिसके द्वारा शरीर की प्रत्येक कोशिका को आॅक्सीजन की प्राप्ति होती है और कार्बन-डाइ-आॅक्साइड का निष्कासन होता है। श्वास, प्राण और पर्याप्ति का आपस में घनिष्ठ सम्बन्ध है।
सम्पूर्ण आकाश मण्डल में प्राण चक्र फैला हुआ है। शरीर और इन्द्रियों की सक्रियता के लिये प्राण ऊर्जा की सक्रियता आवश्यक है। यौगिक प्रदर्शन भी प्राण शक्ति के प्रदर्शन हैं। प्राण शक्ति के जागरण के लिये स्थूल से सूक्ष्म की ओर जाना होता है। श्वास की एक मात्र तत्व है जो शरीर के बाहर भी जाता है और भीतर भी जाता है। मन को पकड़ने के लिये श्वास को पकड़ना पड़ेगा। मन को श्वास के साथ जोड़कर भीतर जाना ही अन्तर्यात्रा का प्रारम्भ है। साधनाकाल में श्वास की साधना में श्वास प्रेक्षा नींव का पत्थर है। शरीर की सभी क्रियाओं को संपादित करने के लिए विभिन्न तंत्र कार्यरत होते हैं। ये सभी तंत्र एक निश्चित अनुपात में कार्य करते हैं, जिससे शरीर के भीतर साम्यावस्था बनी रहती है। स्वस्थ जीवन के लिए साम्यावस्था का होना अत्यन्त आवश्यक है। इस प्रकार जीवन विज्ञान जीवन जीने की कला सिखलाता है। (लेखक के अपने विचार हैं)