कारगिल युद्ध : ज़रा याद करो वो कुर्बानी


विजय दिवस जुलाई 26 


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जुलाई  26 को प्रत्येक वर्ष देश भर में  कारगिल युद्ध की याद में विजय दिवस मनाया जाता है। इस युद्ध पर करीब बीस किताबें लिखी गई हैं। जिनके अंशों को पढ़कर निष्कर्ष यह भी निकलता है कि इस बेकार की खूंरेजी के पीछे पाकिस्तान के तत्कालीन सेनाध्यक्ष जनरल परवेज़ मुशर्रफ के साथ तीन अन्य जनरलों का भी हाथ था। ये सभी बेहद गर्म तथा हेकड स्वभाव के थे। परवेज मुशर्रफ ऐसे मिज़ाज का ही उदाहरण थे कि जब भारत के पूर्व प्रधानमंत्री स्व. अटल बिहारी वाजपेयी अपनी ऐतिहासिक बस यात्रा से शन्ति चर्चा करने भारत पाक की सीमा वाघा, जिसे अटारी भी कहते हैं, तो वहाँ प्रोटोकॉल के मुताबिक जनरल परवेज ने अटलजी को सेल्यूट करने की बजाए सिर्फ हाथ मिलाया था। जिसके कारण पाक की दुनिया भर में जग हँसाइ हुई थी। माना जाता है कि परवेज़ मुशर्रफ को अपने देश की बदनाम गुप्तचर एजेंसी आईएसआई ने पूरी शै दे रखी थी। जानकार कहते हैं कि इसी एजेंसी ने पाक के ऊंचे लोगों को चमकाकर रखा हुआ है वर्ना इस पड़ोसी मुल्क का अवाम अमन पसंद है। यह ज़रा से पिछले इतिहास की बात है लेकिन एक जमाना था जब महाभारत या रामायण सीरियल देखने के समय लगभग पूरे पाक की सड़कें सूनी पड़ जाया करती थीं।


यह दोंनो देशों का कदाचित सबसे बड़ा दुर्भाग्य था कि नवाज शरीफ वाकई चर्चा के तहत दोनों देशों के मसले खासकर कश्मीर एवं सीमा पार प्रायोजित उग्रवाद को सुलझाना चाहते थे। इसी कारण अटलजी अपनी पार्टी में विरोध के बावजूद लाहौर गए थे। वहाँ दोनों देशों में जंग न हो इसे लेकर नवाज़ शरीफ ने अटलजी के स्वगात में अटलजी की ही लिखित चर्चित नज़्म का वाचन किया था। उक्त किताबों में कहीं यह भी दर्ज़ है कि नवाज़ शरीफ को भी कानों कान खबरे नहीँ थी कि मियाँ परवेज़ मुशर्रफ आखिर  क्या गुल खिलाने वाले हैं। दरअसल, पाक अवाम फौजी बूटो के नीचे ही दबे रहने को अभिशप्त है और इसी प्रथा को देखते हुए मुशर्रफ ने घुसपैठ का पुराना एवं घिस चुका दांव नवाज़ शरीफ को बिना बताए चल दिया। मुशर्रफ ने खबरें फैला दीं कि उक्त घुसपैठ करने वाले तो कश्मीर के उग्रवादी हैं ।पाकिस्तान की सेना इस पचड़े में नहीं है मग़र जल्दी ही पता चल गया कि असलियत यह थी कि उग्रवादियों ने तो यह नापाक हरकत  की ही थी, लेकिन बड़ी संख्या में पाकिस्तान के लड़ाके भी उनमें शामिल थे।


इन लोगों ने साजिश रची थी कि बर्फ से ढके लद्दाख सियाचिन द्रास तथा टाइगर हिल्स इत्यादि भारत के लिए अति महत्वपूर्ण सामरिक अडडों का सम्बंध आपस में काट दिया जाए ।कारण था कि इन्ही सेंटर्स के आपस में जुड़े होने के कारण भारत की फौजों का सजो समान यहाँ से वहाँ पहुचता था इस जंग  की सबसे खास बात यह थी कि दूसरे विश्वयुद्ध के बाद भारतीय वायु सेना ने ढाई लाख से ज़्यादा बम गिराए थे और लगातार कई मिसाइलें दागी गई थी। यह भी विशेष बात थी कि उन दिनों जितनी  संख्या में भारतीय  सेना को बलिदान देना पड़ा था। उसे देखते हुए तत्कालीन उप प्राधनमंत्री लालकृष्ण आडवाणी ने सुझाव दिया था कि तीनों सेनाओं का एक चीफ बनाया जाए। सन 2019 में तत्कालीन पैदल सेना के सेना अध्यक्ष जनरल विपिन रावत रिटायर हुए तो उन्हें यह जिम्मा सौंपा गया। यह भी कदाचित पहला प्रसंग था। जब पाक सेना की टोलियां  खून ज़मा देने वाली सर्द पहाड़ियों पर बहुत ऊँचे छुपकर पोजीशन लिए बैठी  थी कई कई जगह तो यह ऊँचाई 18 हजार फीट तक थी, जबकि भारत के एक फ़ौजी को ऊपर चढ़ाने के लिए दो अन्य फौजियों को पहाडियों के नीचे लगाना पड़ा था।



रोचक बात यह भी बताई जाती है कि पहली बार में भारत की फौजों को अपनी रणनीति असफल होती दिख रही थी। फलतः तत्काल बोफ़ोर्स तोपें मंगवाई गई और इन्हीं ने पाक फौजों के होश ठिकाने लगा दिए थे। ऊपर से मिग 27 एवं मिग 29 पाक के अड्डो को चुन चुन कर तबाह कर रहे थे। इस लड़ाई में किस देश का कितना नुकसान हुआ। इस पर चर्चा बेमानी है। 
किन्तु भारत की कूटनीति की भी तब जीत हुई थी, क्योकि अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति बिल क्लिंटन भारत के हक में खड़े हो गए थे। एक दिलचस्प जानकारी यह भी बताई जाती है कि भारत के तत्कालीन रक्षा मंत्री स्व जॉर्ज फर्नाडीस ने सियाचिन, जो संसार का सबसे ठंडा ग्लेशियर माना जाता है कि उक्त जंग के दौरान कई बार यात्रा की थी। एक बार सन 1971 के  भारत पाक युद्ध मे सेनाध्यक्ष रहे  स्व जनरल सेम मानेकशॉ ने कहा था जो व्यक्ति कहता है कि उसे मौत से डर नहीँ लगता। वह या तो झूठ बोलता है या फिर भारतीय सेना का बंदा है।


कहा तो यहाँ तक जाता है कि किसी विदेशी तानाशाह तक ने भारत के सैनिको की इसलिए यह कहकर मांग की थी कि उक्त सपूतो की रग-रग में देश भक्ति समाइ हुई होती है। जब जुलाई 26, 1999 में  कारगिल स्थित टाइगर  हिल्स पर कब्ज़ा कर लिया गया तो वहाँ तिरंगा फहराने के साथ युद्ध समाप्ति की घोषणा कर दी गई। उसी समय अटलजी ने जनरल परवेज़ मुशर्रफ को कारगिल का कसाई कह दिय था। इस जंग से तो पाक प्रायोजित आतंकवाद में कोई विशेष अंतर नहीं आया, बल्कि वहाँ की सेना के दबाव में यह बढा ही। देश के राजनीतिक नेतृत्व ने जब पिछले साल संविधान से अनुच्छेद 370 को  हटाने से सम्बंधित बिल संसद में पास करवाया तो कुल मिलाकर सरहदों पर अमन लौटने लगा था लेकिन पिछले जून माह में पाकिस्तान के सरपरस्त चीन ने जंग की स्थिति पैदा कर दी थी।


कारगिल युद्ध को अपने समाचार चैनल के लिए लाइवली कवर करने के लिए बरखा दत्त ने जितना नाम कमाया था, उतनी ही वे उक्त करीब दो महीनों तक चली जंग में कुछ शॉट्स को  वैसा ही जारी कर देने के लिए काफ़ी विवादों में भी आ गई थीं। उस वक्त मीडिया के एक हिस्से में इस ख़बर ने बड़ी जगह पाई थी, जिसमें कहा गया था कि कथित शाट्स यदि बरखा जारी नहीं करती तो पाकिस्तान की वायु सेना को रात में भारतीय पोस्ट पर बम मारने का मौका नहीं मिलता। ज़ाहिर है इससे भारत की फौज को बेकार का नुकसा न झेलना पड़ा था। कहा जाता है कि ऐसा करने से कुछ कमांडरों ने बरखा को रोका भी था, मगर सम्भवतः पत्रकारिता की स्वतंत्रता के तहत वे भूल गई हों कि ऐसा करने से उनके वतन को ही हानि उठाना पड़ सकता है। (लेखक के अपने विचार है) 



लेखक : नवीन जैन
इंदौर