लोकलुभावन निर्णयों से शिक्षातंत्र बदहाल


लेखक : डा. रक्षपाल सिंह


(लेखक प्रख्यात शिक्षाविद हैं एवं आगरा विश्वविद्यालय शिक्षक संघ के पूर्व अध्यक्ष रहे हैं)


अलीगढ़ । हमारे शिक्षा तंत्र की बदहाली पर विगत 25 वर्षो में उत्तर प्रदेश की सत्ता में रहीं सरकारों ने कभी भी ध्यान देना गवारा नहीं किया। मौजूदा हालात इसके सबूत हैं। प्रदेश की सरकारी ने राज्य में राजकीय स्कूल खोले, सहायता प्राप्त स्कूलों व स्ववित्त पोषित विद्यालयों को मान्यताएँ दीं और सरकार के शिक्षा मंत्रियों ,शिक्षा सचिवों, माध्यमिक शिक्षा विभाग के अधिकारियों ने कभी भी ये जानने की कोशिशें नहीं कीं कि उन स्कूलों में समुचित योग्य शिक्षको कर्मचारियों की नियुक्तियां हुई हैं या कि नहीं, उसमें छात्रों की वर्ष में 240 दिन कक्षाएं चलती हैं कि या नहीं और स्कूल समय से खुलते-बन्द होते भी हैं कि या नहीं, जबकि इन्हीं की बदौलत शिक्षा का स्तर और माहौल बनता है और इसी से सरकारों की पढ़ाई के प्रति दिलचस्पी का पता चलता है।


सरकारी स्कूल खुलवाकर वाहवाही लूटने के लोकलुभावन सरकारी निर्णयों से शिक्षातंत्र बदहाल हुआ और निरंतर बदहाली की ओर अग्रसर हो रहा है । इस बारे में  औटा के पूर्व अध्यक्ष डा. रक्षपाल सिंह ने राज्य के शिक्षा राज्यमंत्री संदीप सिंह के प्रयास से खुलने जा रहे 4 गांवों में राजकीय इंटर कालेजों पर टिप्पणी करते हुए कहा है कि उन गावों में और उनके पास ही  कालेज मौजूद हैं, फिर वहां नये स्कूल-कालेज खोलने की ज़रूरत ही नहीं है। उस इलाका में नये स्कूल-कालेज खोलने का निर्णय समझ से परे है। फिर  क्या मन्त्री जी इन स्कूलों में नियमानुसार शिक्षकों - कर्मचारियों की तैनाती की व्यवस्था करा पायेंगे ? 


डा सिंह का कहना है कि वर्तमान में जनपद अलीगढ में 35 राजकीय कालेज संचालित हैं और उनमें 50 प्रतिशत से भी अधिक शिक्षकों की कमी होने के कारण ये राजकीय कालेज एक अरसे से सफेद हाथी ही सिद्ध हो रहे हैं । ऐसी स्थिति में जनपद अलीगढ के लोग शिक्षामंत्री जी से उम्मीद कर सकते हैं कि वह अलीगढ के 35 राजकीय इंटर कालेजों और 6 डिग्री कालेजों में 50 प्रतिशत से अधिक रिक्त पदों पर शिक्षकों की यथाशीघ्र तैनाती कराने का कष्ट करें जिससे उन कालेजों में पढ़ाई का माहौल बन सके। शिक्षा मंत्री के नाते यह उनका दायित्व भी है और कर्तव्य भी जिसका निर्वहन उनको करना चाहिए। (लेखक के अपने विचार हैं)