महत्व समाज सेवा का


प्रोफेसर (डॉ.) सोहन राज तातेड़ 
पूर्व कुलपति सिंघानिया विश्विद्यालय, राजस्थान



समाज की प्राथमिक इकाई परिवार होता है, तथा इसी परिवार में सामाजिक करण की प्रक्रिया या सीखने-सिखाने की प्रक्रिया के तहत उसका विकास होता है। इस विकास प्रक्रिया में दो चीजे महत्त्वपूर्ण आधार रखती है- व्यक्ति की सामाजिक स्थिति, व्यक्ति की आर्थिक स्थिति। सामाजिक स्थिति में व्यक्ति का पद, रोजगार, सामाजिक निर्णय प्रक्रिया में हिस्सा, व्यक्ति की जाति, धर्म आदि तथा आर्थिक स्थिति में व्यक्ति की आर्थिक साधनों तक पहुंच, उसकी उपलब्धता तथा सम्पति तथा आर्थिक साधनों की सुनिश्चितता को सम्मिलित किया जाता है। कई अवसरों पर यह देखनों को आता है कि आर्थिक स्थिति का सशक्त होना, सामाजिक स्थिति को भी सशक्त कर देता है, परन्तु कुछ जगहों में यह प्रभाव नगण्य नजर आता है जैसे की एक अनुसूचित जाति का व्यक्ति चाहे कितना भी साधन सम्पन्न और आर्थिक स्थिति से सशक्त हो परन्तु समाज में उसे हीन दृष्टि से देखा जाता है।



सांस्कृतिक, आर्थिक एंव सामाजिक परिदृश्यों में परिवर्तन आया, विशेषकर आर्थिक परिदृश्य में। बदलाव की बयार में आमजन की परिस्थितियों में भी परिवर्तन हुआ। अच्छी चिकित्सकीय सेवा, खाद्यान्न उपलब्धता, आर्थिक सुदृढ़ीकरण ने जीवन प्रत्याशा को बढ़ा दिया। समाज सेवा की सबसे अधिक जरूरत वरिष्ठ नागरिक अर्थात् वृद्धों को होती है। वृद्धावस्था को मानव जीवन की चैथी अवस्था कहा गया है। जिसमें व्यक्ति आगे देखना यानी भविष्य के सुखद सपने बुनना बंद कर देता है। भावात्मक दृष्टि से भले ही बुजुर्ग, सम्मान, श्रद्धा और आस्था के पात्र माने जाते हो लेकिन व्यावहारिक धरातल पर इन वरिष्ठ नागरिकों को अनेक तरह से कष्टों और परेशानियों से गुजरना पड़ता है। अभी तक वृद्धावस्था, व्यक्तिगत या पारिवारिक समस्या मानी जाती थी लेकिन दुनियाभर में वृद्धजनों की संख्या में हो रही वृद्धि के कारण उनकी देखभाल अब परिवार के साथ-साथ समाज और शासन की भी जिम्मेदारी बनती जा रही है। वृद्धजनों की संख्या बढ़ने के अलावा इस मुद्दे से जुड़े और ऐसे अनेक पहलू है, जो सरकार और स्वंयसेवी संगठनों के लिए चुनौती पेश कर रहे हैं।



समाज सेवा का क्षेत्र बहुत ही विस्तृत है। समाज के उत्थान और उन्नति के लिए जो कुछ भी प्रयास किये जाते है वह सब समाज सेवा में गिने जाते है। समाज सेवा करना सभी मनुष्यों का नैतिक उत्तरदायित्व है। अपना नैतिक कत्र्तव्य समझते हुए मानव को यह कार्य करना चाहिए। हर कार्य के लिए सरकार की तरफ दृष्टि नहीं लगानी चाहिए। गांव के छोटे-मोटे कार्यों को गांवों के लोग ही संगठन बनाकर यदि पूरा कर ले तो इससे गांव की उन्नति होगी, समाज की उन्नति होगी और राष्ट्र की उन्नति होगी। समाज में छोटे-बड़े, ऊंच-नीच का भेद-भाव भूलकर समानता के आधार पर सबके साथ व्यवहार होना चाहिए। समाज में धनी-निर्धन, अमीर-गरीब सभी प्रकार के लोग रहते है। सबका समाज में महत्व है। अमीर लोग आर्थिक रूप से समाज की सेवा कर सकते है। धन के अभाव में यदि कोई विद्यार्थी शिक्षा ग्रहण नहीं कर पा रहा है तो सम्पन्न लोगों का यह कत्र्तव्य है कि उसे धन उपलब्ध कराकर विद्यार्थी की शिक्षा की व्यवस्था करे। यदि खाने के लिए किसी के पास अन्न न हो तो ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए कि उसे अन्न उपलब्ध हो सके।



गांव से मुख्य सड़क को जोड़ने वाले मार्ग यदि टूटे-फूटे हो तो गांव के लोगों का यह कत्र्तव्य है कि श्रमदान करके समाज सेवा करे। जिससे उस मार्ग पर चलने वाले बुजुर्गों, बच्चों और महिलाओं को किसी प्रकार का कष्ट न हो। इस प्रकार से यदि कार्य किया जाये तो यह समाज सेवा का एक बहुत बड़ा दृष्टांत हो सकता है। मानव जीवन में किस प्रकार के परिवर्तन किया जाय कि मानव की गरिमा, स्वाधीनता, सृजनात्मकता तथा सर्वोपरि मानव जीवन की रक्षा हो सके। समाज सेवा में “परस्परोपग्रहोजीवानाम्“ से लेकर ’जियो और जीने दो’ का सिद्धान्त निहित रहता है। इसके अनुसार मनुष्य अपने व्यक्तिगत संतोष एवं आत्म विकास द्वारा सामाजिक रूप से सक्रिय रहकर सुखपूर्वक जीवन व्यतीत कर सकता है। समाज सेवा मानव जीवन को सर्वांगपूर्ण तथा सौन्दर्यमय बनाने पर बल देती है। इसके अनुसार कला एवं सौन्दर्य का अधिक से अधिक विकास होना चाहिए। समाज सेवा में मानवतावाद को महत्व दिया जाता है।



विश्वशांति, अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग, विश्वबंधुत्व के साथ साथ स्वतंत्रता, समानता, सामाजिक कल्याण एवं परार्थ को मुख्य उद्देश्य मानने के कारण समाज सेवा का अत्यधिक महत्व है। समाज सेवा मानव की निःस्वार्थ भावना से किया जाना चाहिए। बहुत सी स्वयंसेवी संस्थाएं समाज सेवा में लगी हुई है। सरकारी सहयोग के साथ-साथ समाजसेवी संस्थाएं अनेक क्षेत्रों में कार्य कर रही है। गांव की उन्नति के लिए और गांव को राष्ट्र की मुख्य धारा से जोड़ने के लिए सरकारी योजनाओं को क्रियान्वयन कैसे किया जाये इस योजना को अनेक स्वयंसेवी संस्थाएं लोगों तक पहुंचाती है। योजनाओं को प्रचार-प्रसार भी इन संस्थाओं द्वारा किया जाता है। गांवों के लोगों को जागरूक बनाने के लिए और उनमें चेतना जागृत करने के लिए समाजसेवियों का बहुत बड़ा योगदान रहता है। प्रोफेसर सोहनराज तातेड़ स्वयं एक बहुत बड़े समाजसेवी है। शिक्षा, स्वास्थ्य, पर्यावरण और चिकित्सा के क्षेत्र में उनके सामाजिक सहयोग को भुलाया नहीं जा सकता। अतः समाज सेवा करना प्रत्येक मनुष्य का परम कत्र्तव्य है। समाज सेवा को पुनीत कत्र्तव्य मानकर करना चाहिए। (लेखक के अपने विचार हैं)