लेखक : ज्ञानेन्द्र रावत
वरिष्ठ पत्रकार एवं पर्यावरणविद
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नेशनल रिक्रूटमेंट एजेंसी से कुछ खास बदलाव तो नहीं होगा, हां जिलों में परीक्षा केंद्र होने से छात्र मारामारी-भागमभाग और आर्थिक बोझ से जरूर बचेंगे
दिल्ली। केन्द्र सरकार द्वारा नेशनल रिक्रूटमेंट एजेंसी की घोषणा की चारो ओर सराहना हो रही है जबकि हकीकत इसके विपरीत है। हकीकत यह है कि यह कोई बड़ा ऐलान नहीं है, यह तो छलावा है। केन्द्र सरकार को इस दिशा में यदि कुछ सार्थक करना था तो वह कदम था पुरानी भर्तियों की नियुक्तियों को जो एक लम्बे अरसे से रुकी पड़ी हैं, उनको पूरा करने का। वह एक सराहनीय और सार्थक कदम होता और इससे हजारों-लाखों नौजवानों को रोजगार मिलता। इस तरह तो सरकार ने बरसों से नौकरी की बाट जोह रहे लाखों नौजवानों के साथ धोखा किया है और कुछ नहीं जबकि विडम्बना देखिए कि समर्थक इसे एक बड़े कदम की संज्ञा देकर सरकार की वाहवाही लूटने का दंभ भर रहे हैं।
जाने-माने पत्रकार और मैगसेसे पुरस्कार से सम्मानित रवीश कुमार का इस बारे में स्पष्ट मत है कि सरकार की घोषणा के अनुसार एक नेशनल रिक्रूटमेंट एजेंसी बनेगी जो केंद्र सरकार की भर्तियों की आरंभिक परीक्षा लेगी। इस आरंभिक परीक्षा से छंट कर जो छात्र चुने जाएंगे उन्हें फिर अलग-अलग विभागों की ज़रूरत के हिसाब से परीक्षा देनी होगी। इसके लिए ज़िलों में परीक्षा केंद्र बनाए जाएंगे। जबकि हकीकत में कई ज़िलों में पहले से ही परीक्षा केंद्र बने हुए हैं। सरकार की घोषणा के तहत यह नई नेशनल रिक्रूटमेंट एजेंसी में ही अब स्टाफ सलेक्शन कमीशन ,रेलवे रिक्रूटमेंट बोर्ड और बैंकिंग सेवा की परीक्षा लेने वाली संस्था आई बी पी एस की परीक्षाएं भी शामिल हो जाएंगी। जबकि मौजूदा दौर में 20 अलग-अलग एजेंसियां यह परीक्षाएं आयोजित कराती हैं। घोषणा में यह भी उल्लेख किया गया है कि सीईटी यानी कॉमन एलिजिबिलिटी टेस्ट का स्कोर तीन साल तक मान्य होगा। उस स्कोर के आधार पर ही आप रेलवे वित्त विभाग या बैंक आदि की परीक्षा दे सकेंगे।
दर असल अभी तक होता यह रहा है कि जब छात्र रेलवे ,स्टाफ सलेक्शन कमीशन और बैंकिंग सेवा की भर्तियों को लेकर आंदोलन करते हैं, ट्विटर पर ट्रेंड करते हैं कि रिज़ल्ट कब आएगा और जिनका पहले दी गयी परीक्षाओं का रिज़ल्ट आ गया है, उनकी ज्वाइनिंग कब होगी, तब सरकार मौन धारण कर लेती है। लेकिन आज जब नेशनल रिक्रूटमेंट एजेंसी का एलान हुआ है तो प्रधानमंत्री से लेकर मंत्री और उनके समर्थक ही नहीं, चहुं ओर इसे एक बड़े फैसले के रूप में पेश किया जा रहा है। देखा जाये तो सरकार पुरानी की जगह नई एजेंसी की ज़रूरत के हिसाब से घोषणा तो कभी भी कर सकती है लेकिन यहां गौर करने वाली बात यह है कि इस बात का ख्याल आने में उसे 6 साल का समय लग गया। जबकि सरकार को हर साल 2 करोड़ नौकरियां देने का वादा याद दिलाया जाता रहा है। अगर इस पूरे प्रकरण पर नजर दौड़ायें तो मालूम पड़ता है कि सरकार का यह एक पैटर्न है। वह यह कि समस्या का समाधान मत करो। उस पर बात ही मत करो। बल्कि एक समानांतर समाधान पेश कर दो ।
इस तरह तो नेशनल रिक्रूटमेंट एजेंसी के एलान से भी अभी क्या बदलाव हुआ है? क्या सरकार एस एस सी, सी जी एल के नतीजे निकाल कर अभ्यर्थियों को नियुक्ति पत्र देने जा रही है? क्या सरकार बताएगी कि लोकसभा चुनाव के समय लोको पायलट और सहायक लोको पायलट की परीक्षा के रिजल्ट आए कितने महीने हो गए हैं ? क्या सरकार बताएगी कि सभी सफल अभ्यर्थियों की ज्वाइनिंग कब पूरी होगी? नहीं। इस पर कोई बयान नहीं देगा। न इस बाबत कोई चर्चा ही है कि इस पर भी सरकार विचार कर रही है। सबसे बड़ी बात यह कि इस वक्त जो सालों से परीक्षा देकर तड़प रहे हैं, उनके लिए आज के एलान में कुछ भी नहीं है। रेलवे को ही लें, नॉन टेक्निकल परीक्षा के फार्म भर कर छात्र कब से इंतज़ार कर रहे हैं। क्या इन छात्रों को बहलाने के लिए नई एजेंसी का एलान किया गया है लेकिन उससे इन छात्रों की समस्या का समाधान किस तरह होता है?यह समझ से परे है।
यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि अभी कुछ ही हफ्ते पहले रेलवे ने कहा था कि एक साल तक कोई नई भर्ती नहीं होगी। रेलवे के उस आदेश में यह भी था कि रेलवे के अधिकारी अपने विभागों में पता लगाएंगे कि कहां - कहां नौकरियां कम हो सकती हैं। क्या उस ख़बर को रेल मंत्री से लेकर प्रधानमंत्री तक ने अपने ट्विटर हैंडल पर शेयर किया था? एक तरफ भर्ती बंद होने की ख़बरें आ रही हैं। दूसरी तरफ बताया जा रहा है कि भर्ती की नई एजेंसी गठित की जा रही है। सरकार की यह घोषणा तो भर्ती न होने से भी बहुत बड़ी ख़बर है। हो सकता है सरकार का यह निर्णय नौजवानों में कुछ समय के लिए सांत्वना देने का काम करे लेकिन क्या वह अपनी दी हुई परीक्षा के रिजल्ट न आने औऱ ज्वाइनिंग की बात भी भूल पाएंगे? (लेखक के अपने विचार हैं)
आगे देखिएगा अगली क़िस्त में (क्रमश :)