राम मंदिर निर्माण : संघर्ष की पटकथा के लेखक आडवाणी

छठी क़िस्त


 


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इन्हें लालकृष्ण आडवाणी कहते हैं। क़रीब तिरानवे वर्ष की उम्र में भी लाल सुर्ख़ चेहरा। ऊंची क़द काठी और फ़िट नेस ऐसी कि नज़र उतारने की इच्छा हो जाए। दोनों हथैलियां हरदम मिलाए रखना तथा कम अज़ कम बोलना। भारतीय जनता पार्टी के शिल्पज्ञ आडवाणी भी विषेशकर हैं एवं भाजपा शासनकाल में उप प्रधानमंत्री के साथ गृह मंत्री भी रहे। आडवाणी ही दरअसल सबसे पहली के एक और नायक है, जिन्होंने राम मंदिर के निर्माण का रास्ता करीब चालीस साल तक कड़ा संघर्ष करके बुहारा था। उनके यही संघर्ष की गाथा मंदिर निर्माण की एक-एक रग में समाई हुई मानी जाएगी, लेकिन वे अकेले यह श्रेय लेते मीडिया तो मानता है कि आडवाणी नहीं आगे आते तो मंदिर निर्माण का निर्माण कदाचित आगे खिसक गया होता। कितना दूर चला जाता यहाँ कोई नहीँ कह सकता। जब राम मंदिर निर्माण यात्रा इस बुजुर्गवार नेता ने 25 सितंबर 1990 को गुजरात के जग प्रसिद्ध सोमनाथ मंदिर से अयोध्या तक पार्टी के चाणक्य कहे जाने वाले पूर्व केंद्रीय मंत्री स्व प्रमोद महाजन के संयोजन में निकाली थी, तभी देश दुनिया को मंदिर निर्माण का सपना साकार होता दिख रहा था। इस यात्रा को 30 अक्टूबर के दिन अयोध्या पहुँचना था।


कहा यह भी जाता है कि यात्रा के साथ नरेन्द्र मोदी भी चल रहे यह। मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभु श्रीराम मंदिर निर्माण की इस विश्व प्रसिद्ध यात्रा के कारण आडवाणी यकायक मंदिर निर्माण के ध्येय या श्रेय पुरूष भी हो गए। हाँलाकि, इस कई राज्यो से गुजर रही  यात्रा को बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव ने समस्तीपुर में रोककर और आडवाणी को गिरफ्तार कर पूरे देश में राम लहर लाने में  भाजपा की ही भरपूर मदद ही की थी। पूर्व पीएम स्व. चन्द्रशेखर ने तमाम विरोधों के बावजूद तब कह दिया था कि आडवाणी की गिरफ्तारी बहुत बड़ी गलती है। कहते हैं पूर्व पीएम स्व. अटलबिहारी वाजपेयी ने भी आडवाणी को मंदिर निर्माण यात्रा को लेकर विशेष हिदायतें दी थीं, क्योंकि दोनों एक दूसरे की हरेक बात पर पूरा गौर करते थे। दोनों की जोड़ी कभी अटलजी, लालजी के रूप में दिल्ली निवास के दौरान बड़ी मशहूर हुआ करती थी। दोनों दिलीप कुमार की फिल्में देखने साथ जाया करते थे।


वास्तव में राष्ट्रीय सेवक संघ के अधिकांश विचार आडवाणी को घुटी में मिलें हैं। कहा जाता है कि वे कभी संघ का साहित्य भी बेचा करते थे।जहां तक याद पड़ता है, मंदिर निर्माण को लेकर आडवाणी ने कभी कोई भड़काऊ बात नहीँ कही। अपने लक्ष्य  की तरफ़ वे शांति से बढ़ते रहे। यह बात और है कि समय ने ऐसा गोता खाया कि पीएम नरेंद्र मोदी मंदिर का लगभग पूरा श्रेय बटोरने में सफल हो गए, लेकिन यह भी तो है कि बजाय स्व अटलजी के संघ तथा अन्य हिन्दू संगठन पीएम का पद आडवाणी को दिलवाना चाहते थे। यदि अन्य सभी विपक्षी दल आडवाणी के नाम पर सहमत हो जाते तो अटलजी तक को रास्ता छोड़ना पड़ता, लेकिन आडवाणी के मन मे अटलजी को लेकर कभी कोई चुभन, खलिश या शिकायत नहीं रही। आडवाणी हरदम देश हित और पार्टी हित को ही सवोर्परि मानते रहे।


इसीलिए मोदी को उन्होंने हरेक वक्त आगे बढ़ने दिया और स्वयं पार्टी के थिंक टैंक में रहे। भाजपा के वरिष्ठ नेता डॉ. मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती, स्व. सुषमा स्वराज संघ के सर संचालक डॉ. मोहन भागवत जैसे कई पार्टी नेता उनके साथ उठना बैठना ज़्यादा पसंद करते हैं।मोदी ख़ुद एक बार बोल पड़े थे कि हमें आडवाणीजी के दिखाए मार्ग पर ही चलना है। सालों तक राज्यसभा सदस्य ही रहे, की परम्परागत लोकसभा सीट गांधीनगर रही, मग़र एक बार नई दिल्ली से सिनेस्टार स्व. राजेश खन्ना से बहुत कम वोटों से ही वे जीत पाए थे। कई बार उन्होंने पार्टी की कमान सम्हाली।क्योंकि अपनी पार्टी को एक तरफ जहां उन्होंने केन्द्र में सरकार में लाने के लिए एक रचनाकार की भूमिका अदा की। वहीं अयोध्या में राम मंदिर की पटकथा उन्होंने ही लिखी।लगता है वे शिलान्यास के अवसर पर न जाएं और सारा नज़ारा वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग पर ही देखें,लेकिन हो सकता है कि वे आखिरकार राम नगरी चले ही जाएँ। कारण यह है कि वे हैं तो पार्टी के सबसे बुजुर्ग नेताओं में से प्रमुख है। (लेखक के अपने विचार हैं)  इज़ाज़त।



लेखक : नवीन जैन 
इंदौर (मध्य प्रदेश)