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न अफ्रीका, न अमरीका, न इंगलिस्तान लिखना है।
न जर्मन, रूस या जापान या ईरान लिखना है।
सभी की माँ है यह धरती इसीके हम सभी पाले।
इसी के पुण्य-पृष्ठों पर इसीका गान लिखना है।
क्या सूरज चाँद तारों पर किसी ने नाम लिक्खा है।
अगर लिखना ज़रूरी है तो बस इंसान लिखना है।
जो बाँटे हमको नस्लों, जात-धर्मों और फिरकों में।
वही सबसे बड़ा खतरा उसे शैतान लिखना है।
गिरे को जो सहारा दे, पिलाए प्यास को पानी।
वो कोई हो कहीं का हो उसे भगवान लिखना है।
सभी इस डाल के पंछी यहीं सबका बसेरा है।
यही सबका अक़ीदा है इसे ईमान लिखना है।
जहाँ पर स्वर्ग की, जन्नत की टिकटें बेचीं जाती हों।
उसे लाला का घर समझो उसे दूकान लिखना है।
जहाँ बस हुक्म चलता हो, जहाँ संवाद गायब हो।
उसे आबाद क्या लिखना उसे वीरान लिखना है।
लेखक : रमेश जोशी
प्रधान सम्पादक, 'विश्वा', अंतर्राष्ट्रीय हिंदी समिति, यू.एस.ए.