शिक्षक दिवस पर विशेष (5 सितम्बर)
हमारे देश, समाज, सभ्यता, संस्कृति का भार बहुत कुछ शिक्षकों के कन्धों पर रखा है।
शिक्षक के संबंध में मनुष्य से ही मनुष्य सीख सकता, जिस प्रकार जल से जलाशय भरता, दीए से दीया प्रज्जवलित होता, उसी प्रकार प्राण से प्राण रचित होता है। चरित्र को देखकर चरित्र बनता है।
निः संदेह हमारी प्राचीन शिक्षा पद्धति में इस बात का विशेष ध्यान रखा जाता था कि गुरु और विद्यार्थी का सहजीवन आश्रमों में व्यतीत होता, उस समय विद्यार्थी पाठ ही नहीं अपितु गुरु के जीवन चरित्र, व्यवहार को सीख का पाठ भी सीखाता था।
सारगर्भित शब्दों में परिभाषित करें तो शिक्षकों का कर्तव्य जो व्यक्तिगत रूप से, उनके ऊपर है, उससे इंकार करने का विषय नहीं रह जाता। इसलिए एक स्वतंत्र राष्ट्र के नागरिक होने के नाते, अपने समस्त अभाव, अभियोगों, व्यक्तिगत परेशानियों में भी शिक्षक अपने उत्तरदायित्वों से विमुख नहीं हो सकता है क्योंकि बच्चे के जीवन का उत्कृष्ट निर्माण करने में अधिकाधिक प्रयास शिक्षक का ही होना चाहिए व होता है। (लेखिका का अपना अध्ययन एवं विचार है)
लेखिका : रश्मि अग्रवाल
नजीबाबाद
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