आन्ध्र प्रदेश में कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच टकराव

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लेखक : लोकपाल सेठी


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ऐसा पहली बार हुआ है कि मुख्यमंत्री जैसे संवैधानिक पद बैठ एक राजनीतिज्ञ ने सर्वोच्च न्यायालय जैसी संस्था के मुख्य न्यायधीश को एक पत्र लिखकर आरोप लगाया है कि सर्वोच्च न्यायालय के एक वरिष्ठ न्यायधीश और आंध्र प्रदेश के उच्च न्यायालय के कुछ जज मिलकर राज्य में उनकी सरकार को अस्थिर करने में लगे है। 


आन्ध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री जगन मोहन रेड्डी ने पिछले दिनों सर्वोच्च न्यायलय के मुख्य न्यायधीश एस. ए. बोबडे को इस बारे में जो पत्र लिखा है उसको लेकर कार्यपालिका और न्यायपलिका में  एक प्रकार से सीधा टकराव हो गया है। कानूनी जानकारों में इसको लेकर एक बहस शुरू हो गयी है। एक पक्ष यह कह रहा है कि कार्यपालिका के एक प्रमुख द्वारा इस प्रकार न्यायपलिका के एक वर्ग पर राजनीतिक करने के आरोप लगाना एक ऐसा कदम है जिसमें वे अपने पद और अधिकारों की सभी  सीमाएं लाँघ गए है। जानकारों का दूसरा वर्ग देख रहा है कि इस मामले में बोबडे क्या कदम उठाते है। लेकिन इसी बीच  आंध्र प्रदेश के उच्च न्यायालय ने एक आदेश पारित कर सीबीआई को सारे मामले के जाँच लिए कहते हुए आठ हफ़्तों में अपनी रिपोर्ट देने को कहा है। 


इस सारे विवाद के पीछे तेलगु देशम पार्टी के मुखिया और राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू जगन महिना रेड्डी की बीच चली आ रही राजनीतिक  दुश्मनी है, जिसमे अब न्यायपालिका को घसीटा जा रहा है। न्यापालिका अपने सदस्यों को  हर हालत में तथा  कथित भ्रष्टाचार के आरोपों और पक्षपात से बचाने में लगी है। 


 जब पुराने आंध्र प्रदेश का विभाजन कर तेलंगाना बनाया गया तो अविभाजित आँध्रप्रदेश के राजधानी तेलंगाना के हिस्से में आई थी। आँध्रप्रदेश को अपनी नई राजधानी का निर्माण करने के लिए कहा गया था जिसमें केंद्र ने आर्थिक सहायता देने के वादा किया था। उस समय राज्य में तेलगु देशम पार्टी की सरकार थी जो बाद में एनडीए का हिस्सा बन गयी। राज्य की सरकार ने  अमरावती स्थल को राज्य की राजधानी बनाने के लिए चुना। बड़े स्तर पर भूमि अधिग्रहण करने का काम शुरू हुआ। इससे इस इलाके में जमीनों के भाव असमान को छूने लगे, ऐसा आरोप है कि इसमें सत्तारूढ़ दल के लोगों द्वारा भारी धन कमाया। किन्ही कारणों से इस योजना पर जितनी तेज़ गति से काम होना चाहिए था, नहीं हुआ।


नायडू ने इसके लिए केंद को दोषी ठहराया और उनकी पार्टी एनडीए अलग हो गई। लेकिन विधान सभा के चुनावों में नायडू की पार्टी हार गयी और जगन मोहन रेड्डी के नेतृत्व वाली वाईएसआर कांग्रेस सत्ता में आई। रेड्डी ने सत्ता में आते ही अमरावती राजधानी योजना को रोक दिया। इससे अमरावती और इसके पास जमीनों की कीमतें धडाम से नीचे आ गई। जिन बिल्डरों और अन्य व्यापारिक संस्थानों ने ऊंचें दामों पर जमीने खरीदें थी वे भारी घाटे में आ गए। मामला यहीं नहीं रुका।  रेड्डी ने राज्य में एक की बजाये  तीन राजधानियां बनाने का निर्णय किया। इसके लिए विधान सभा से तीन कानून भी पारित करवा लिए। पर कुछ दिन बाद आंध्र  प्रदेश उच्च न्यायालय ने इन कानूनों पर रोक लगा दी। यह फैसला एक याचिका पर दिया गया था। 



 बस फिर क्या था, कार्यपालिका और न्यायपालिका एक दूसरे के आमने सामने गए। सत्तारूढ़ दल के सभी स्तर के नेताओं ने आंध्रप्रदेश के सर्वोच्च न्यायालय के न्यायधीशों पर तरह-तरह आरोप लगाने शुरू कर दिए। इसी बीच इन सब पर लगभग चार दर्ज़न जनहित याचिकाएं दायर की गयी जिन सब में  मुख्यमंत्री सहित सत्तारूढ़ पार्टी के नेताओं को वादी बना दिया गया। बताया जाता है कि इन सब के पीछे नायडू अथवा उनके नज़दीकी लोग ही थे। न्यायालय ने जो नोटिस जारी किये उन सब में जगन मोहन रेड्डी भी शामिल थे। बस यहीं से मामला और घमासान हो गया। 


 सर्वोच्च न्यायालय में वरिस्था के क्रम में जस्टिस एनवी रमन्ना आते है। वे कॉलेजियम के सदस्य भी है। जब राज्य में पूर्व में नायडू के नेतृत्व वाली तेलगु देशम पार्टी की सरकार थे वे राज्य के महाधिवक्ता बनाये गए थे। वे नायडू के बहुत करीबी माने जाते है। बाद वे उच्च न्यायालय के जस्टिस, मुख्य न्यायाधीश भी बने तथा फिर सर्वोच्च न्यायालय में जज बने। 


 जगन मोहन रेड्डी सहित उनकी पार्टी के नेता यह मानते है कि सारे विवाद के पीछे जस्टिस रमन्ना ही है। रेड्डी ने तो अपने पत्र में साफ लिखा है। अमरावती में जमीनों के खरीद फरोख्त में रमन्ना के परिवार के सस्दय भी शामिल हैं। चूँकि अब वहां जमीनों के दाम बहुत नीचे आ गए है इसलिए वे अब भारी घाटे में गए हैं। उन पर आरोप लगाया गया है कि उन्होंने अपने प्रभाव और आंध्र प्रदेश उच्च नयायालय के कुछ जजों की अपनी निकटता का दुरुपयोग कर उनसे ऐसे मामलों में अपनी इच्छा मुताबिक फैसले करवा लिए जो राज्य की वर्तमान सरकार के विपरीत जाते थे। उन पर आरोप है कि वे अब भी तेलगु देशम पार्टी और इसके नेता चंद्रबाबू नायडू के बहुत करीब हैं और उन्हीं के कहने पर अपने पद का उपोयोग कर रेड्डी सरकार के कामकाज में बाधाएं पैदा कर रहे है।