मध्यप्रदेश उप महाचुनाव
इंदौर से नवीन जैन (वरिष्ठ पत्रकार) की रिपोर्ट
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मद्य प्रदेश की 28 विधानसभा सीटों पर अगले माह के शुरुआती दौर में सम्पन्न होने जा रहे उप चुनाव कई मायनों में अतिमहत्वपूर्ण साबित हो सकते हैं। राजनीतिक पंडितों का फ़िलवक्त तो आकलन है कि उक्त उप चुनाव केंद्र में तथा अन्य राज्यों में सियासत की नई दिशा तय कर सकते हैं। मध्यप्रदेश में जहां शिवराज सिंह के नेतृत्व में चल रही अल्पमत की सरकार, जिसे स्पष्ट बहुमत के लिए सिर्फ नो सीटों की जरूरत है के उप चुनावों को, महाचुनाव तक कहा जा रहा है और जिसमें कांग्रेस से भाजपा में शामिल हुए पूर्व केन्दीय मंत्री तथा वर्तमान राज्यसभा सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया, शिवराज सिंह के साथ राज्य के गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा कांग्रेस की एक एक पुरानी सीट में सेंध लगाने का कोई अवसर हाथों से जाने नहीं दे रहे है, लेकिन अभी तक तो कांग्रेस दो तीन मुद्दों से काम चला रही है। बावजूद इसके उक्त उप चुनाव रोचक से रोचक ही नहीं, नज़ीर भी बन सकते हैं।
इस दौरान सबसे अकेले पड़ गए हैं कमलनाथ। अपने तमाम राजनीतिक कौशल एवं अनुभव के उपरांत भी अभी तक उनका कोई तीर निशाने पर बैठता नही दिख रहा है। खास बात यह है कि वे अपने राजनीतिक तरकश में से जो ब्रह्मास्त्र तीर था उसे उन्होंने ने ही विभिन्न सभाओं में अभी तक इतनी बार चलाया की ,वही उनके लिए बोथरा हो चला है ।इस तीर का नाम भी सुन लें ज़रा, सिंधिया तो गद्दार हैं। भारतीय समाज में अन्य तरह की बतकहियों को हरेक पार्टी में बर्दाश्त किया जाता रहा,इसकी बजाय कमलनाथ अन्य जमीनी मुद्दों पर अभी तक तो उतरते नहीं दिखते। लगता है कमलनाथ का थिंक टैंक, यानी मार्गदर्शक मंडल उनके लिए दूसरे इश्यूज ढूंढ नही पा रहा है।
क्या कांग्रेस भूल गई कि सोनिया गांधी ने गुजरात की आम सभा में मौत का सौदागर कहकर नरेंद्र मोदी को गुजरात के मुख्यमंत्री पद से बढा कर देश का प्रधानमंत्री बनने तक का रास्ता साफ़ कर दिया था। सिंधिया ने सफाई दी है कि मैं एक राजपरिवार में जन्मा हूँ, इसमें मेरी कोई गल्ती नहीं है ।यह तो तीन सौ साल पुरानी बात है, और इसके बावजूद यदि मेरी यह कोई गलती है,तो चलिए मैंने इसे स्वीकार कर लिया। मेरा सवाल तो उनसे है जो नए नए महाराज बने हैं। मज़ा है कि सिंधिया के इस नए शब्द बाण का गले उतरने वाले बयान कांग्रेस अध भुने चने बांट की तरह बाँट रही है। जैसे उसका कहना है कि इस राज परिवार ने लोगों की ज़मीन को हड़पा है। मीडिया को इस बयान से प्रिय कॉपी मिल गई कि सिंधिया के कांग्रेस में रहते यह आरोप कांगेस ने क्यो नहीं लगाया था। सिंधिया ने यह भी कहा है कि कमलनाथ की नजर तिजोरी एवं कुर्सी पर है। जानकार कहते हैं कि दून स्कूल में स्व.राजीव गांधी तथा स्व.संजय गांधी के साथी रहे कमलनाथ को पूर्व प्रधानमंत्री स्व. इन्दिरा गांधी अपना तीसरा बेटा मानती थी। कहते हैं करीब बहत्तर वर्षीय कमलनाथ को तभी से सियासत भाने लगी थी। वे केन्द्र में स्व. नरसिम्हा राव के मंत्री मण्डल में जब पर्यावरण मंत्री थे तब उनकी खूब तारीफे हुई थी।
जानकारों का कहना है कि कांग्रेस के एक वर्ग में भावना घर करने लगी है कि पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह की तरह कमलनाथ भी अपना जलवा खोने लगे हैं और कदाचित इसीलिए उनके साथ प्रचार अभियान में पूर्व मंत्री सज्जन सिंह वर्मा बढ़ चढ़कर हिस्सा ले रहे हैं ,लेकिन दूसरा ऐसा असरदार नेता नजर आता जो कोंग्रेस के हक में वातावरण बना सके। ऐन वक्त पर राजस्थान के कोंग्रेस मुख्यमंत्री अशोक गहलोत तथा पंजाब के कांग्रेस मुख्यमंत्री कैप्टेन हरम्मिन्द्रसिंह को भी आयात करने की चर्चा चल रही है, लेकिन दोनों ही नेता विवादों में घिरे रहे हैं और दोनों ही मद्ययप्रदेश की सियासत को आखिर कितना समझते हैं।भाजपा या कांग्रेस में से कौन सा दल मतदाताओं की कसौटी पर खरा उतरता है, यह तो परिणाम आने वाले दिन दस अक्टूबर पर छोड़ देना ही राजनीति का मान्य सिद्धांत है, लेकिन कांग्रेस की सबसे बडी चुनौती है कि उसे सभी 28 सीटों पर विजयी होना सरकार में वापसी के लिए अनिवार्य है। हो सकता है इस बहाने कमलनाथ केन्द्र में अपना कद ऊंचा कर दिखाने की भावना भी रखते हों। आखिर दो तीन मर्तबा कमलनाथ को पार्टी की कमान सौपने की चर्चा मुखर हुई थीं।
इसलिए कमलनाथ की जिद को इस नजरिए से भी समझा जा सकता है कि पार्टी आला कमान को वे बताने की सोच में हों कि इस उम्र में भी काम करते रहने की भरपूर ऊर्जा उनमें हैं, हालांकि कहा जाता रहा है कि कभी पार्टी की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी उन्हें पसंद नहीं करती थीं, परन्तु अब नजारा कभी का बदल चुका है। इस सूबे में भाजपा को सरकार के सपष्ट बहुमत के लिए नौ विधायकों की दरकार है, जिसके बारे में माना जा रहा है कि यह कोई करिश्मा जैसा नहीं तो किसी एवरेस्ट पर चढ़ने जैसा भी नहीं है। उधर, राज्य का आम नागरिक एक स्थिर सरकार ही चाहता हैऔर यदि भाजपा के हाथों से एक मर्तबा फिर सत्ता चली गई तो इसके जाने से तमाम जायज तर्कों के बावजूद केन्द्र में पीएम नरेंद्र मोदी की सरकार हिचकोले खा सकती है,जबकि मद्ययप्रदेश के साथ ही बिहार की सभी विधानसभा चुनाव में वहां के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के साथ ही पीएम नरेंद्र मोदी का चेहरा सबसे ज़्यादा आकर्षण के केंद्र में बताया जा रहा है। जान लें कि 2019 के लोकसभा चुनाव में नीतीश कुमार ने भाजपा के साथ मिलकर कुल 40 में से 39 सीटें जीती थीं और मद्ययप्रदेश की कुल 29 सीटों पर भाजपा ने आराम से 28 सीटों पर जीत दर्ज की थी।
इस नए परिदृश्य को देखते हुए कहा जा सकता है कि उक्त सभी 28 सीटे कांग्रेस को सौपकर वोटर फिर पुराना सिरदर्द शायद मोल न लें। वैसे भी शिवराज सिंह के चौथी बार मुखिया बनने को अभी चार पांच महीने ही तो हुए हैं। इस बीच उनकी प्राथमिकता कोरोना रही। सही है कि शिवसेना भाजपा का खेल मालवा तथा निमाड़ अंचलों की सात सीटों पर बिगाड़ सकती है। इन सीटों पर उक्त पार्टी ने बाकायदा सर्वे कराया है। यदि उसके प्रत्याशी मैदान में उतरते हैं तो हिंन्दुत्व विचारधारा के कारण भाजपा के वोट ही उसकी तरफ झुक सकते हैं। इसकी कोई काट भाजपा के पास फ़िलवक्त तो नहीं दीखती। मध्यप्रदेश में विधानसभा की कुल 230 सीटें है जिसमे से फिलहाल कांग्रेस के पास 88 विधायक हैं और सरकार में लौटने के लिए उसे जादुई आंकडा पाना है तो सभी 28 सीटों पर उप चुनावों में जीत दर्ज करवानी तो पड़ेगी ही,बसपा के दो, सपा का एक तथा निर्दलीयों के साथ ही भाजपा के दो नाराज विधायकों को भी साथ लेना पड़ेगा तभी कमलनाथ के खिलने के फिर दिन लौट सकेंगे।