लेखक : डा. रक्षपालसिंह चौहान
(लेखक प्रख्यात शिक्षाविद व अलीगढ़ स्थित धर्म समाज कालेज के पूर्व विभागाध्यक्ष और डा. बी. आर. अम्बेडकर विश्व विद्यालय, आगरा शिक्षक संघ के पूर्व अध्यक्ष हैं।)
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अलीगढ़। गांधी के अनुयायी चौधरी चरण सिंह के बारे में बहुत कुछ लिखा गया है, अखबारों में और पत्रिकाओं में भी। आज वह हमारे बीच नहीं हैं लेकिन उनके बारे में जनता में आज भी एक अच्छे प्रशासक,एक ईमानदार राष्ट्रीय राजनेता की छवि बनी हुई है। इस बारे में मैंने अनेकों कहानियों भी सुनी हैं। बीते दिनों उनके विषय में लिखी मुझे दो किताबें पढ़ने को मिली। एक "चौधरी चरण सिंह : स्मृति और मूल्यांकन " और दूसरी " चौधरी चरण सिंह : सूक्ति और विचार "। उसके बाद चौधरी साहब और पुस्तकों के बारे में लिखे बिना रहा नहीं गया। जबकि इनके बारे में कई बार पर्यावरणविद भाई सुबोध नंदन शर्मा ने भी जिक्र किया था और चौधरी साहब के बारे में लिखी इन पुस्तकों की चर्चा भी की थी। पढ़ने के बाद उन पुस्तकों के बारे में जन-मानस को बताना मैं आवश्यक समझता हूँ कि आखिर चौधरी साहब क्यों और राजनीतिक नेताओं से अलग और विशिष्ट थे।
रहबरे आजम चौधरी छोटूराम के बाद देश में चौधरी चरण सिंह एकमात्र ऐसे नेता थे जिन्हें देश का किसान अपना मसीहा और गरीब - वंचित तबका अपना ताड़नहार मानता था। उनमें वह अपने हमदर्द की छवि देखता था। यही कारण था कि उनके 77 वें जन्म दिवस, 23 दिसम्बर 1978 को नयी दिल्ली स्थित वोट क्लब पर हुयी किसान रैली में देश के उत्तर से लेकर दक्षिण तक और पश्चिम से लेकर पूरब तक के राज्यों के लाखों किसान, मजदूर और वंचित तबकों के लोगों ने भाग लेकर यह साबित कर दिया था कि यदि देश में किसान-मजदूर और गरीबों का कोई मसीहा है, तो वह है चौधरी चरण सिंह। देश ही नहीं, विदेशी अखबारों तक ने इस रैली को ऐतिहासिक करार देते हुए देश के इतिहास की सबसे बड़ी रैली की संज्ञा दी थी। देश के ऐसे राजनीतिज्ञ जिनके बारे में बड़े-बड़े ख्यातनामा राजनीतिक नेताओं तक ने उन्हें गांधी का सच्चा अनुयायी माना, उनके जीवन के विभिन्न पहलुओं के बारे में वरिष्ठ पत्रकार ज्ञानेन्द्र रावत ने करीब ढाई दशक पूर्व लिखी अपनी पुस्तक " चौधरी चरण सिंह: स्मृति और मूल्यांकन" में सिलसिलेवार खुलासा किया है।
उल्लेखनीय है कि इस पुस्तक में ज्ञानेन्द्र रावत ने वह चाहे देश के राष्ट्रपति रहे ज्ञानी जैल सिंह हों, डा. शंकर दयाल शर्मा हों, प्रधानमन्त्री विश्व नाथ प्रताप सिंह हों, चंद्र शेखर हों, पी. वी. नरसिम्हाराव हों, इन्द्र कुमार गुजराल हों, उप प्रधानमंत्री रहे चौधरी देवीलाल हों या लालकृष्ण आडवाणी हों, समाजवादी नेता राजनारायण हों, मधु लिमये या मधु दंडवते हों, या फिर सुरेन्द्र मोहन या मधुकर दिघे रहे हों, रघुबर दयाल वर्मा हों या कम्युनिस्ट नेता हरिकिशन सिंह सुरजीत हों, सी. राजेश्वर रा़व या एम. फारूखी हों, या प्रताप कुमार टंडन हों, जनसंघ के नेता बलराज मधोक हों, प्रख्यात लेखक भगवती चरण वर्मा हों या जैनेन्द्र कुमार हों या परिमल दास हों, या वरिष्ठ पत्रकार कुलदीप नायर हों, उदयन शर्मा हों, रमेश वर्मा हों, अर्थशास्त्री प्रो. जे. डी. सेठी हों, लोकसभाध्यक्ष डा. शिवराज पाटिल हों या राज्यसभा की उपसभापति रहीं डा. नज्मा हेपतुल्ला रही हों, जस्टिस हंसराज खन्ना रहे हों, आर्यसमाजी नेता देवीदास आर्य हों या रामाकृष्ण हेगड़े हों या डा. सुब्रहमण्यम स्वामी रहे हों या शिक्षाविद डा. स्वरूप सिंह हों, उनके धुर विरोधी रहे रामचंद्र विकल रहे हों या उनके सहयोगी चौधरी कुंभाराम आर्य हों, वीरेन्द्र वर्मा हों, नाथूराम मिर्धा हों, डा. वी. सत्यनारायण रेड्डी हों, हेमवती नंदन बहुगुणा हों, धनिक लाल मंडल हों या सरदार बलवंत सिंह रामूवालिया या हरिसिंह नलवा हों या चंद्र जीत यादव हों या कुंवर नटवर सिंह हों या फिर उनके सेनानी रहे मुलायम सिंह यादव हों, रामनरेश यादव हों, शरद यादव हों, रामविलास पासवान हों, अजय सिंह हों या ए. नील रोहितदास नाडार आदि के साक्षात्कार व चौधरी चरण सिंह के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर लिखे लेखों को संकलित : संपादित किया है। इसके अलावा ज्ञानेन्द्र रावत ने चौधरी चरण सिंह की शिष्टाचार, स्वास्थ्य, भाषा, कृषि, किसान, बेरोजगारी, श्रम, उद्योग, जाति-प्रथा आदि विषयों से सम्बन्धित सूक्तियों को, उनके विचारों को " चौधरी चरण सिंह : सूक्ति और विचार" नामक पुस्तक में संकलित करने का काम किया है।
इन दोनों पुस्तकों को किसान ट्रस्ट ने ढाई दशक पूर्व प्रकाशित किया है। असलियत में यह दोनों पुस्तकें पठनीय तो हैं हीं, अनुपम और संग्रहणीय हैं । इसके लिए ज्ञानेन्द्र रावत बधाई के पात्र हैं, साधुवाद के पात्र हैं। इसलिए भी कि उन्होंने इसके माध्यम से चौधरी साहब के जीवन की विशिष्टताओं और व्यक्तित्व के विभिन्न पहलुओं को जनमानस के सामने लाने का पुनीत कार्य किया है। (लेखक के अपने विचार हैं)