लेखिका : वीना करमचंदानी
घर छोड़ पढ़ने को हॉस्टल जाते
बच्चे की माँ
सहेज कर रखती है
उसका पूरा सामान
साथ ही दुलारती है
खिलाती है उसकी
पसंद का खाना
बच्चे के पूछने पर
कब आओगी मिलने
माँ की आँखों में
तिरने लगते हैं आँसू
मुस्कुराती है हलके से
और घर के किसी
कोने में छिपकर
रोती है जार-जार
बच्चे से अलग होना
कितना मुश्किल है
इसे नहीं जानता बच्चा अभी
बड़ा होगा तो
जान ही जाएगा !