गाँधी जयंती पर विशेष : महात्मा गाँधी के सपनों का भारत
"गाँधी ने हम क्या करते हैं, और हम क्या करने में सक्षम हैं, के बीच की खाई को लगातार उजागर किया। इस अंतर्राष्ट्रीय अहिंसा दिवस पर, हम सभी से आग्रह करते हैं कि हम इस विभाजन को पाटने के लिए अपनी शक्ति में सब कुछ करने की कोशिश करें क्योंकि हम सबके लिए एक बेहतर भविष्य बनाने का प्रयास करते हैं।" - संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस
महात्मा गाँधी ने अपनी गंभीर परिस्थितियों में विश्वास, समानता और न्याय के प्रतीक थे और उन्होंने सिद्ध किया कि महात्मा बुद्ध, भगवान महावीर स्वामी और गुरु नानक देव के सिद्धांत भारतीय संस्कृति और विरासत के मुख्य आधार थे और आज भी उनके सिद्धांत अहिंसा, भाईचारा, समानता, न्याय और सम्मान मानवता के लिए प्रासंगिक है। महात्मा गाँधी को पहली बार सुभाष चंद्र बोस ने 'राष्ट्रपिता' के रूप में संबोधित किया था। 4 जून 1944 को सिंगापुर रेडियो के एक संदेश को प्रसारित करते हुए 'राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी' कहा गया। 2020 में अंतर्राष्ट्रीय शांति दिवस का विषय "एक साथ शांति को आकार देना" है। करुणा, दया और आशा के साथ महामारी के प्रसार को रोक कर दिन का जश्न मनाएं। यह संयुक्त राष्ट्र के साथ भेदभाव या घृणा को रोकने के प्रयासों के खिलाफ एक साथ खड़े होने का दिन है। अंतर्राष्ट्रीय अहिंसा दिवस भारतीय मूल्यों, संस्कृति, परंपरा, प्राचीन भारत की विरासत और राष्ट्र की सहन शक्ति की पहचान का दिन है। इस वर्ष हम महात्मा गांधी की 151वीं जयंती मना रहे हैं। हर साल 2 अक्टूबर को महात्मा गाँधी (मोहनदास करमचंद गाँधी) की जयंती हम पूरे देश में प्रार्थना सभा,समाज सेवा, निर्मलता, साफ-सफाई, मानव समाज की कल्याणकारी अवधारणा और बापू को श्रद्धांजलि के साथ मनाते है।
महात्मा गाँधी के जन्मदिन, 2 अक्टूबर को अंतर्राष्ट्रीय अहिंसा दिवस मनाया जाता है। जनवरी 2004 में, ईरानी नोबेल पुरस्कार विजेता शिरीन एबादी ने पेरिस में एक हिंदी शिक्षक से अंतर्राष्ट्रीय दिवस का प्रस्ताव लिया था, जो पेरिस में एक हिंदी शिक्षक से अंतरराष्ट्रीय छात्रों को मुंबई में वर्ल्ड सोशल फ़ोरम में पढ़ाता था। 15 जून 2007 को, संयुक्त राष्ट्र महासभा ने महात्मा गाँधी की जयंती को 'अहिंसा दिवस' के रूप में मनाने के लिए मतदान किया। पूरे विश्व में सभी देशों के लोगों के लिए अहिंसा संदेश फैलाने के लिए प्रमुख रूप से इस दिन को चिह्नित किया है।
संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 2 अक्टूबर को महात्मा गाँधी के जन्मदिन के सम्मान में घोषित किया गया है, गाँधी जो अपने समय में भारत के सबसे प्रमुख प्रभावी, आकर्षक सार्वजनिक चेहरा और राजनीतिक कार्यकर्ताओं में से एक थे। गाँधी ने अंततः उस समय भारत पर शासन करने वाले अंग्रेजों को हराने के लिए अहिंसक नागरिक विद्रोह को अपनाया, जिससे अंततः भारत को स्वतंत्रता प्राप्त हुई। यह भारत के लिए गर्व की बात है कि अब सारा विश्व इस दिन को अंतर्राष्ट्रीय अहिंसा दिवस के रूप में मनाता है। राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी का जन्म 2 अक्टूबर 1869 को पोरबंदर, गुजरात में हुआ था। उनके पिता का नाम करमचंद गांधी और माता का नाम पुतलीबाई था। उनके पिता ब्रिटिश शासन में पोरबंदर , राजकोट के दीवान थे। महात्मा गांधी का असली नाम मोहनदास करमचंद गांधी था और वे अपने तीन भाइयों में सबसे छोटे थे।
“लम्बे समय तक सत्ता सुख भोगने की चाहत में शुरू हुई वोट बैंक की राजनीति ने भारतीय संविधान में अब तक जितने परिवर्तन किये हैं उनसे संविधान सम्बन्धी गाँधी जी की मूल अवधारणा एक तरह से नष्ट ही हुई है।“ यह सच है कि हम अपने लोगों और देश के लिए एक मजबूत नींव बनाने के प्रति उनके रवैये से निराश हैं। महात्मा गांधी एक आश्रित राष्ट्र चाहते थे। अब तक हमने अपने लोगों के लक्ष्य को हासिल नहीं किया। हम आगे बढ़ रहे हैं, लेकिन जितना हम उम्मीद करते हैं और जो सपना गाँधी द्वारा देखा गया था, हम अपने संभावित लक्ष्यों से पीछे हैं और यह हमारे लिए चुनौतीपूर्ण कार्य है। हमारे राष्ट्रपिता समाज के भीतर एक मजबूत संबंध चाहते थे और वे भारत के लोगों और भारत के युवाओं के साथ दूरदर्शी विचारों के साथ जुड़े थे। वे अपने समय के बहुत प्रभावी सामाजिक नेता के साथ-साथ अपने समय के एक अच्छे संचारक भी थे और उन्हें भारत के लोगों के साथ एक अच्छा अनुभव था। वह जानते थे कि ग्राम स्तर तक राजनीतिक शक्ति दिए बिना, हमारे लोग अच्छा प्रदर्शन नहीं कर सकते। उन्होंने भारतीय गाँव के विकास के लिए मजबूत नींव रखने की वकालत की। गांधी जी जनता की भावना के डॉक्टर थे और तदनुसार वह अपने लोगों के साथ अच्छे संबंध स्थापित कर रहे थे।
यह बहुत ही चिंताजनक स्थिति है कि अब तक हमने गाँधी के सपने को पूरा नहीं कर सके और न ही हमने स्वस्थ लोकतंत्र के लिए लोक कल्याण की अवधारणा का लक्ष्य हासिल किया। भारत 2 अक्टूबर 2019 से 150वीं जयंती वर्ष मना रहा है और इस वर्ष महात्मा गांधी जी की 151वीं जयंती है। आज देश भर में हम उनकी 151वीं जयंती बड़े मन और आशाओं के साथ मना रहे हैं। महात्मा गाँधी आज भी एक प्रासंगिक व्यक्तित्व हैं। महात्मा एक ऐसे राष्ट्र का निर्माण करना चाहते हैं, जो आप सभी के लिए समान हो और किसी के साथ कोई भेदभाव न हो। वह समाज के समावेशी विकास के विचार के साथ एक दूरदर्शी सामाजिक नेता थे। वह हमारे लिए एक वास्तविक धर्म निरपेक्ष देश बनाना चाहता है जहां जाति, रंग, भाषा, क्षेत्र, धर्म और संस्कृति के आधार पर कोई भेदभाव नहीं हो।
उन्होंने हमारे लिए एक मजबूत राष्ट्र का सपना देखा, जहां सभी का सम्मानजनक जीवन और व्यक्तिगत गरिमा हो। वह वास्तविक अर्थों में एक स्वामित्व वाले राष्ट्र और सम्मानित नागरिक चाहते थे। महात्मा गाँधी मात्र भारत में ही नहीं अपितु विश्व के सर्वाधिक प्रभावशाली व्यक्तियों में से एक थे। भारत को आजादी मिलने के बाद जब सारा देश जश्न मना रहा था, तब गाँधी जी साम्प्रदायिक दंगों को रोकने के लिए आमरण अनशन कर रहे थे। उन्हें आजादी मिलने की ख़ुशी से कहीं अधिक बिखरते भारत की चिन्ता थी। वे चाहते थे कि देश का प्रत्येक नागरिक समान रूप से आजादी और समृद्धि को प्राप्त करे। महान विचारक, दार्शनिक, कुशल राजनेता एवं दूरदृष्टा महात्मा मोहनदास करमचन्द गाँधी ने जिस भारत की कल्पना की थी, आज़ादी के 74 वर्ष बाद भी क्या हम उस भारत का निर्माण कर पाये हैं? यह यक्ष प्रश्न हम सब के सामने है।
गाँधी जी ने अपनी प्रसिद्ध कृति 'मेरे सपनों का भारत' में लिखा है मैं भारत को स्वतन्त्र और बलवान राष्ट्र बना हुआ देखना चाहता हूँ। भारत का भविष्य पश्चिम के उस रक्त−रंजित मार्ग पर नहीं है जिस पर चलते−चलते पश्चिम अब स्वयं थक गया है। पाश्चात्य सभ्यता का मेरा विरोध असल में उस विचारहीन और विवेकहीन नक़ल का विरोध है, जो यह मानकर की जाती है कि एशिया-निवासी तो पश्चिम से आने वाली हरेक चीज की नक़ल करने जितनी ही योग्यता रखते हैं। यूरोपीय सभ्यता बेशक यूरोप के निवासियों के लिए अनुकूल है, लेकिन यदि हमने उसकी नक़ल करने की कोशिश की, तो भारत के लिए उसका अर्थ अपना नाश कर लेना होगा। मैं साहसपूर्वक यह कह सकता हूँ कि जिन शारीरिक सुख−सुविधाओं के वे गुलाम बनते जा रहे हैं संभव है मेरा यह निष्कर्ष गलत हो, लेकिन यह मैं निश्चयपूर्वक जानता हूँ कि भारत के लिए इस सुनहरे मायामृग के पीछे दौड़ने का अर्थ आत्मनाश के सिवा और कुछ न होगा। हमें अपने हृदयों पर एक बोध वाक्य अंकित कर लेना चाहिये 'सादा जीवन उच्च चिन्तन'। गाँधी जी ने राजनेताओं और कथित समाजसेवियों को स्पष्ट रूप से लिखा है आज तो यह निश्चित है कि हमारे लाखों−करोड़ों लोगों के लिए सुख−सुविधाओं वाला जीवन संभव नहीं है और हम मुट्ठी भर लोग, जो सामान्य जनता के लिए चिन्तन करने का दावा करते हैं, सुख−सुविधाओं वाले उच्च जीवन की निरर्थक खोज में उच्च चिन्तन को खोने का जोखिम उठा रहे हैं।
गाँधी जी के विचारों से स्पष्ट है कि गाँधी जी के सपनों का समर्थ भारत आज कहीं दूर जाता दिखाई पड़ रहा है। वे पाश्चात्य सभ्यता और नीतियों के दुष्प्रभावों को भली भांति समझते थे। उसके मुकाबले में उन्हें भारत का सादा रहन−सहन और परोपकारी नीतियाँ कहीं अधिक उन्नत दिखाई देती थीं। परन्तु दुर्भाग्य से आजादी के बाद से भारत में जिस तेजी से पाश्चात्य सभ्यता ने पाँव पसारे हैं उतनी तेजी से तो तब नहीं पसारे थे जब यहाँ अंग्रेजी शासन था। भौतिकता की अन्धी दौड़ में भागते समाज में आज नैतिकता का कोई मूल्य ही नहीं रह गया है। वे लोग आज अति पिछड़े हुए समझे जाते हैं जो 'सादा जीवन उच्च चिन्तन' को अपने जीवन में धारण करने का प्रयास करते हैं। अब तो उन्हें निष्क्रिय और आलसी तक की संज्ञा भी दी जाने लगी है। गाँधी जी की दृष्टि में भारत अपने मूल स्वरूप में कर्मभूमि है, भोगभूमि नहीं।" परन्तु आज हमारा प्रत्येक प्रयास भारत को भोग-भूमि बनाने पर ही केन्द्रित रहता है। भोगवादी संस्कृति मनुष्य के पतन का मार्ग किस तरह से प्रशस्त करती है, इसके अनगिनत उदाहरणों से इतिहास के पन्ने भरे पड़े हैं। नदियों का प्रदूषण भारत के लिए एक बड़ी चुनौती है और सबसे बड़ी चुनौती जो आजाद भारत के लिए विकराल रूप धारण कर रही है, वह चरित्र की दृढ़ता की कमी है।
चरित्र सामाजिक चेतना और उसके नागरिकों की नैतिक अभिव्यक्ति है। गांधी जी की आध्यात्मिकता का अर्थ अच्छा चरित्र, नैतिकता, ईमानदारी और काम के प्रति समर्पण था लेकिन आज हम अपने नागरिकों के चरित्र और समाज से ईमानदारी खो रहे हैं। लम्बे समय तक सत्ता सुख भोगने की चाहत में शुरू हुई वोट बैंक की राजनीति ने भारतीय संविधान में अब तक जितने परिवर्तन किये हैं उनसे संविधान सम्बन्धी गाँधी जी की मूल अवधारणा एक तरह से नष्ट ही हुई है। उनका कथन था "मैं ऐसे संविधान की रचना करवाने का प्रयत्न करूंगा, जो भारत को हर तरह की गुलामी और परावलम्बन से मुक्त कर दे। मैं ऐसे भारत के लिए कोशिश करूँगा, जिसमें गरीब से गरीब लोग भी यह महसूस करेंगे कि यह उनका देश है। जिनके निर्माण में उनकी आवाज का महत्व है। मैं ऐसे भारत के लिए कोशिश करूँगा, जिसमें ऊँचे और नीचे वर्गों का भेद नहीं होगा और जिसमें विविध सम्प्रदायों में पूरा मेलजोल होगा। ऐसे भारत में अस्पृश्यता के या शराब और दूसरी नशीली चीजों के अभिशाप के लिए कोई स्थान नहीं हो सकता। ऐसे सब हितों का जिनका करोड़ों मूक लोगों से कोई विरोध नहीं है, पूरा सम्मान किया जायेगा, फिर वे हित देशी हों या विदेशी। यह है मेरे सपनों का भारत।
अब तक की हमारी सरकारें गाँधी जी के इन विचारों की कसौटी पर कितनी खरी उतरी हैं यह कहना हमारे लिए चुनौतीपूर्ण है। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट के विरुद्ध जाकर एस.सी/एस.टी एक्ट में किया गया बदलाव इसका सबसे ताजा उदाहरण है। हो सकता है इससे समाज के किसी वर्ग का कुछ हित संरक्षित हो सके परन्तु दूसरी ओर समाज के एक बहुत बड़े वर्ग के अहित का मार्ग स्वतः प्रशस्त हो जाता है। आरक्षण जैसी व्यवस्था भी इसी मार्ग की अनुगामी है। जबकि गाँधी जी के विचार से उसी हित का सम्मान होना चाहिए जिसका करोड़ों लोगों से कोई विरोध न हो। गाँधी जी ने शराब तथा अन्य नशीली वस्तुओं को समाज के लिए अभिशाप बताया है। क्या शराब या ऐसे अन्य अनेक मादक पदार्थों से देश को अब तक हम बचा पाये हैं? समाज का एक बहुत बड़ा वर्ग आज मद्यपान की गिरफ्त में है। जिनकी संख्या घटने की बजाय निरन्तर बढ़ रही है। इस सन्दर्भ में इससे बड़ा विद्रुप और क्या होगा कि गाँधी जी के देश की सरकार स्वयं ही शराब की दुकानें चलवाती है और नशीले पदार्थों के निर्माण व विक्रय के लिए लाइसेन्स जारी करती है।
पिछले साल महात्मा गाँधी की 150वीं जयंती के अवसर पर कुछ राज्यों में सरकार ने समाज और लोगों की भलाई के लिए एक अनूठा प्रयास किया राजस्थान, बिहार, महाराष्ट्र, सरकार ने खाद्य सुरक्षा अधिनियम के तहत तंबाकू और पान मसाला की वस्तुओं पर प्रतिबंध लगा दिया है। गाँधी जी ने साम्प्रदायिक मेलजोल की परिकल्पना की थी लेकिन वोट बैंक की राजनीति ने देश को अब तक सम्प्रदाय और जाति के खांचों में बाँटने का ही कार्य किया है। स्वराज्य के सन्दर्भ में गाँधी जी का बड़ा ही स्पष्ट, सार्थक और तर्कसंगत चिन्तन था। उनके शब्दों में "स्वराज्य एक पवित्र शब्द है, जिसका अर्थ आत्म−शासन और आत्म−संयम है।
अंग्रेजी शब्द 'इंडिपेंन्स' अक्सर सब प्रकार की मर्यादाओं से मुक्त निरंकुश आजादी या स्वच्छन्दता का अर्थ देता है। वह स्वराज्य शब्द में नहीं है। आखिर स्वराज्य निर्भर करता है हमारी आन्तरिक शक्ति पर, बड़ी से बड़ी कठिनाइयों से जूझने की हमारी ताकत पर। आजादी के बाद से हम गाँधी जी के स्वराज्य से परे 'इंडिपेंन्स' की दिशा में ही निर्वाध गति से बढ़ते चले जा रहे हैं। परिणामस्वरूप देश में भ्रष्टाचार, स्वेच्छाचार, अपराध और भीड़ जनित हिंसा का ग्राफ तीव्र गति से बढ़ रहा है। शासन−प्रशासन का भय भी लोगों में अब धीरे−धीरे समाप्त हो रहा है। जिन गाँधी जी के जन्म−दिवस (2 अक्टूबर) को पूरा विश्व 'अन्तर्राष्ट्रीय अहिंसा दिवस' के रूप में मनाता हो, उन्हीं गाँधी जी के देश में हिंसा का ताण्डव दिन−प्रतिदिन चरम पर पहुँच रहा है। हत्या, बलात्कार और लूटपाट की घटनाएँ आम बात हो गयी हैं। ऐसी हर छोटी बड़ी घटना राजनीतिक मुद्दा बन जाती है। क्या यही है बापू के सपनों का भारत?
महिलाओं के लिए गाँधी का सपना शिक्षा, आत्म निर्भरता और रोजगार के माध्यम से सशक्तिकरण बनाना था। वह देश के प्रत्येक नागरिक को स्वतंत्र और स्वस्थ लोकतंत्र की खुशी देना चाहते थे लेकिन हम इस लक्ष्य में अब तक विफल रहे हैं। राष्ट्रीय संदर्भ में तो आज गांधी की शिक्षाओं तथा प्रयोगों की जरूरत काफी बढ़ गई है। खेद की बात यह है कि जिस देश के महान मनीषी ने विश्व को अनेक उच्च विचार दिए, विश्व मानवता को संकटों से मुक्ति का मार्ग बताया, उसी के महान् भारत में स्वाभिमान, राष्ट्रीयता, ईमानदारी, कर्तव्यनिष्ठा, सहनशीलता आदि गुणों का ह्रास हो रहा है और देश के चारों तरफ समस्याओं के काले बादल छाने लगे हैं। हमें आज की परिस्थितियों में यह देखकर निश्चित रूप से प्रसन्नता हुई है कि देश और विदेश सभी जगह लोगों ने कुछ हद तक गांधी के रास्ते पर चलना शुरू कर दिया है और वह दिन अब अधिक दूर नहीं जब दुनिया का हर व्यक्ति गांधीवादी पद्धति का अवलंबन शुरू कर दे। ऐसा होगा, तभी मानवता को जीवित रखा जा सकता है। अमेरिका, इंग्लैंड, पश्चिम जर्मनी, जापान और अन्य दूसरे विकसित देशों के लोग आज गांधी द्वारा बताए गए अहिंसात्मक प्रतिरोध के द्वारा अपनी-अपनी सरकारों पर दवाब डाल रहे हैं कि वे मानवता का संहार करने वाले हथियारों पर प्रतिबंध संबंधी बातचीत में तेजी लाएँ।
महात्मा गांधी राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक कार्यों में अंतर करने को तैयार नहीं थे। वे मानते थे कि मनुष्य के सभी कार्य एवं समस्याएँ मूल रूप में नैतिक हैं, अत: उनका समाधान भी नैतिक उपायों से ही संभव है। भारत का भविष्य पश्चिम के उस रक्त रंजित मार्ग पर नहीं है, जिस पर चलते-चलते वह स्वयं थक गया है उसका भविष्य को सरल आध्यात्मिक जीवन द्वारा प्राप्त शान्ति के अहिंसक रास्ते पर चलने में ही है। भारत के समक्ष अपनी आत्मा को खोने का खतरा उपस्थित है और यह सम्भव नहीं है कि अपनी आत्मा को खोकर भी वह जीवित रह सके। गाँधी जी ने समर्थ भारत का सपना साकार करने के लिए ‘पूर्ण स्वावलम्बन’ का बीड़ा उठाया था, जिसे घर-घर में चरखा, हस्तकला अपने स्वभाव के अनुसार रोजगार ’खादीग्राम उद्योग’ के माध्यम से एक क्रान्ति के रूप में आन्दोलन चलाया गया था।
जिससे अनेकों ग्रामवासी अपना जीवनयापन आनन्द से चला रहे थे। उनका कहना है- ‘मैं जितनी बार चरखे पर सूत निकालता हूँ उतनी ही बार भारत के गरीबों का विचार करता हूँ। भूख की पीड़ा से व्यथित और पेट भरने के सिवा और कोई इच्छा न रखने वाले मनुष्य के लिए उसका पेट ही ईश्वर है।’ चरखा देहात की खेती की पूर्ति करता था और उसे गौरव प्रदान करता था। वह विधवाओं का मित्र और सहारा था और वह लोगों को आलस्य से बचाता था। उनका कहना था ‘ग्रामोद्योग का यदि लोप हो गया तो भारत के सात लाख गाँवों का सर्वनाश ही समझिए। खादी हिन्दुस्तान की समस्त जनता की एकता की, उसकी आर्थिक स्वतन्त्रता और समानता की प्रतीक है। यह ‘हिन्दुस्तान की आजादी की पोशाक’ है। किन्तु आज तरह-तरह के ब्रान्डेड कपड़े बहुतायत से उपयोग में आने लगे हैं। यन्त्रों से काम लेना उसी अवस्था में अच्छा है, जब कि किसी निर्धारित काम को पूरा करने के लिए आदमी बहुत ही कम हो पर यह भारत में तो हैं नहीं। यहाँ काम के लिए जितने आदमी चाहिए, उनसे कहीं अधिक बेकार पड़े हुए हैं। इसलिए उद्योगों के यन्त्रीकरण से यहाँ की बेकारी बढ़ रही है।
गांधी जयंती पर उठाए गए सबसे महत्वपूर्ण कदमों में से एक 2014 में स्वच्छ भारत मिशन का शुभारंभ है। इस स्वच्छता अभियान की पहुंच और प्रभाव महत्वपूर्ण हैं। राजस्थान सरकार ने गाँधी जी की 150वीं जयंती वर्ष पर कई नई पहलें कीं और ग्राम स्वराज मिशन की अवधारणा और ग्राम उद्योग के विकास के माध्यम से रोजगार प्रदान करने के लिए कई नई परियोजनाएँ का शुभारंभ किया और राजस्थान में ग्राम पंचायत स्तर पर इस तरह के नए लघु उद्योगों को विकसित करने के लिए वित्तीय सहायता दी। भारत सरकार ने संविधान का 73वां संशोधन विधेयक पारित कर ग्राम पंचायतों, क्षेत्र पंचायतों और जिला पंचायतों के स्तर पर त्रिस्तरीय पंचायती व्यवस्था को लागू कर महिलाओं को एक तिहाई आरक्षण देकर गांधी जी के सपनों को साकार करने की दिशा में सकारात्मक कदम उठाया है। कई राज्यों में तो महिलाओं को 50 प्रतिशत तक आरक्षण दिया जा चुका है। गाँधी जी ने पंचायत राज के बारे में जो सपना देखा था वह साकार हो चुका है। गाँधी जी ने ‘मेरे सपनों का भारत’ में पंचायत राज के बारे में जो विचार व्यक्त किये हैं वे आज वास्तविकता के धरातल पर साकार हो चुके है क्योंकि देश में समान तीन-स्तरीय पंचायत राज व्यवस्था लागू हो चुकी है जिसमें हर एक गांव को अपने पांव पर खड़े होने का अवसर मिल रहा है।
महात्मा बुद्ध के इन सिद्धांतों के माध्यम से अहिंसा व्यक्तिगत, स्थानीय, राष्ट्रीय और वैश्विक स्तरों पर संघर्ष, क्रोध और हिंसा को कम कर सकती है। अहिंसा को छात्रों, सभी समुदायों, समाजों, समूहों की सभी समस्याओं को संबोधित करने और बदलने में एक शक्तिशाली रणनीति के रूप में मान्यता दी गई है और महात्मा गाँधी द्वारा भारत में मानव समाज के हित के लिए जीवन के विभिन्न प्रकार के अनुभवों के माध्यम से जीवन के इन मूल सिद्धांतों का इस्तेमाल लोक कल्याण की अवधारणा के लिए किया। गाँधी जी ने कहा था-“अगर हिंदुस्तान के हर एक गांव में कभी पंचायती राज कायम हुआ तो मैं अपनी इस तस्वीर की सच्चाई साबित कर सकूंगा, जिसमें सबसे पहला और सबसे आखिरी व्यक्ति दोनों बराबर होंगे या यों कहिए कि न तो कोई पहला होगा, न आखिरी।” गाँधी के सपनों का भारत में हम सब अगर गाँधी जी के बताए रास्ते पर चलें तो एक सशक्त, लोक-कल्याणकारी भारत का निर्माण कर सकते हैं। आओ, हम सब भारतवासी इस पुनीत कार्य में भागीदार बनें। (लेखक के अपने विचार हैं) जय हिंद, जय भारत, जय संविधान
लेखक : कमलेश मीणा
सहायक क्षेत्रीय निदेशक,
इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय, क्षेत्रीय केंद्र जयपुर।
मोबाइल: 9929245565 ईमेल: kamleshmeena@ignou.ac.in