साहित्य में भाषा शैलियों का स्थान सर्वथा रहा है और रहेगा




लेखिका :
रश्मि अग्रवाल 

नजीबाबाद, 9837028700

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भाषा के विकास के रूप में हिन्दी की ओर आते हुए, भारत के पृथक-पृथक स्थानों पर अलग-अलग भाषा शैलियाँ जन्मीं। हिन्दी इनमें सबसे अधिक विकसित थी, अतः उसको भाषा की मान्यता मिली। अन्य भाषा शैलियाँ बोलियाँ कहलाईं। इनमें से कुछ में हिन्दी के महान रचनाकारों ने रचना की जैसे तुलसीदास ने रामचरितमानस को अवधी में, सूरदास ने बृज भाषा, विद्यापति ने मैथली में और मीराबाई ने राजस्थानी को चुना।

विभिन्न बोलियों में साहित्य आज भी लिखा व पढ़ा जा रहा है। इसलिए साहित्य में भाषा शैलियों का स्थान सर्वथा रहा है और रहेगा।