लेखिका :
रश्मि अग्रवाल
नजीबाबाद, 9837028700
http//daylife.page
धन होगा तब सुख आ ही जायेगा। ऐसा सोचते हम सब। पर क्या आप ऐसे व्यक्ति से नहीं मिले, जिसके पास पैसा हो, पर खुशियाँ नहीं? या फिर पैसा नहीं, तो भी सफल हुए। मैं मानती कि धन, जीवन के लिए आवश्यक पर खुशियों के लिए इतना आवश्यक नहीं। कहाँ से आते हैं सुख-दुःख? कैसे एक ही परिस्थिति में कोई अपने लिए सुख निकाल लेता तो कोई दुःख। पैसा आदमी को खुशी नहीं देता और न कभी देगा क्योंकि इसकी प्रकृति में ऐसा कुछ नहीं, जो खुशी दे सके। धन जीवन की जरूरतों को पूरा करता पर खुशी उनमें नहीं अपनें भीतर ढूंढनी पड़ती, जो धन से नहीं खरीदी जा सकती। इसलिए कम है तो क्या गम है? हर समय ज्यादा, ज्यादा और ज्यादा की भागदौड़। ‘अभी और’ का भाव हमें बचैन किए रखता वो चाहे पैसा हो या यश-वैभव। ऐसे में आप दूसरों की टांग खींचने का अवसर तलाशते रहते, उसके सुख को दुःख में बदलने के विचार सोचते रहते जैसे अमुक व्यक्ति के पास कोठी, गाड़ी, नौकर-चाकर, मेरे पास क्यों नहीं? उसके बच्चे ऊँचे स्कूलों में शिक्षा प्राप्त कर रहे, मेरे क्यों नहीं? वो मुझसे सुन्दर, मैं क्यों नहीं? उसकी सब प्रशंसा करते, मेरी क्यों नहीं? बस यह विचार आपके गमों में बढ़ोत्तरी करते क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति को वो सबकुछ नहीं मिल सकता, जिसकी उसे चाहत है। मिलना या न मिलना आपके स्वभाव, कर्म व भाग्य से मिलता न कि गम मनाकर।