सुकून, मुहब्बत और खुलूस का दूसरा नाम है जयपुर

जयपुर स्थापना दिवस के मौके पर 

सद्दीक अहमद की कलम से 

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गुलाबी नगर जयपुर दुनिया में अपनी अलग पहचान रखते हुए अपने बारे में बहुत कुछ दुनिया को बताता है। यहाँ की बसावट हो या स्थापत्य कला, यहाँ की इमारतों का ऐतिहासिक सम्बन्ध, यहाँ की नागरिकों के आपसी सद्भावपूर्ण रिश्ते, यहाँ राजस्थान से बाहर से आने वाले स्वदेशी लोगों की तो बात ही कुछ ओर है वे इस धरती के प्रति इतने आकर्षित हो जाते हैं कि सदा के लिए यहीं अपना आशियाना बना लेते हैं। जी हाँ सुकून, मुहब्बत और खुलूस का दूसरा नाम है जयपुर। 

जयपुर शहर की स्थापना दिवस के अवसर पर यहाँ के अतीत के बारे में जाना जाए तो उस वक़्त के आर्टिटेक, नक्शानवीस, वास्तुशास्त्री या योजना बनाने वालों के दिल दिमाग़ और अध्ययन को आज भी सलाम किया जाता है। जिन लोगों ने अपने-अपने काम को भविष्य को ध्यान में रखते हुए प्लान किए। जयपुर की मुख्य सड़कें हो या चौराहे सभी एक दूसरे से सटे नहीं बल्कि ये रास्ते कहीं बंद नहीं होते ताकि एक मार्ग से दूसरे मार्ग में मुख्य मार्ग के बिना भी आया जाया सके। 

नागरिकों के स्वास्थ्य के प्रति जागरूक रहने के लिए सभी जगह पर्यावरण, वायु एवं प्रकाश का पूरा ध्यान रखा गया। समय की मांगानुसार तब से आज तक न जाने कितने परिवर्तन होते रहे लेकिन जयपुर के मूल रूप से कहीं छेड़छाड़ नहीं की गयी। कहते हैं जयपुर पहले चार दीवारी तक ही सीमित था तब शाम होते होते शहर के दरवाजे बंद कर दिए जाते थे। यानि नागरिकों की सुरक्षा का ख्याल रखते हुए चारों दिशाओं के अलावा भी बुर्ज और दरवाजे बनाये गए जो आज भी कायम है। 

बात शहर की करें तो व्यापारिक दृष्टि से बनाये गए बाज़ार दुनिया में अपनी पहचान रखते हैं। एक रूपता के साथ साथ आज भी शहर में यदि यातायात सुव्यवस्थित रहे तो सड़कें कहीं भी सकड़ी नज़र नहीं आती। व्यापारिक गतिविधियों के लिए जयपुर में हर सामान का एक अलग बाजार होता था और मिक्स मार्केट  भी आज देखे जा सकते हैं।

यातायात के साधन उस वक़्त से लेकर आज ना जाने कितनी टेक्नॉलोजी के साथ बदलते रहे लेकिन कोई भी दरवाज़ा उनके सामने छोटा नहीं रहा। यहाँ आज के दौर की डिमांड को ध्यान में रखते हुए मेट्रो ट्रेन चलायी जा रही है लेकिन जयपुर की चार दीवारी की खूबसूरती से कोई छेड़छाड़ नहीं की ताकि आने वाले पर्यटक जयपुर की ओर आकर्षित होते रहे। पर्यटकों को जयपुर की ऐतिहासिक इमारतें पहले भी लुभाती रही और भविष्य भी सरकार द्वारा इन्हें संभालने, देखरेख के लिए एक अलग से विभाग बनाया हुआ है जो इनकी देखरेख का पूरा ख्याल रखता है। 

पिंकसिटी चार दीवारी की बात करें तो यहाँ सभी मजहबों के लिए उस वक़्त से अलग अलग ज़मीन उपलब्ध रही ताकि नागरिक अपने धार्मिक कर्म स्वतंत्रता के साथ अपनी जगह जाकर कर सके। एक ओर जयपुर के आराध्य देव गोविन्द हैं तो दूसरी ओर जामा मस्जिद, शहर में चौपड़ बनी हैं तो वहां लगने वाले मेलो को देखने के लिए शहर के व्यावसायिक स्थानों पर नागरिकों के लिए बरामदों की छतों को अवाम के लिए रखना। 

जैपर की स्थापना 1727 में की गई। धीरे-धीरे इस शहर विकास कार्य अनुभवी लोगों द्वारा होते रहे। सैकड़ों साल की आगे की सोच रखने वाले लोगों ने हर जगह को बनाने से पहले उसमें मूलभूत सुविधाओं का ध्यान रखा। जैपर से बने जयपुर को 1942 सवाई मानसिंह-2, मिर्जा इस्माईल ने आधुनिक रूप दिया ताकि जयपुर को दुनिया रहने तक याद किया जा सके। आज भी जयपुर की खूबसूरती अन्य शहरों से ज्यादा आकर्षक एवं व्यवस्थित होने के साथ अपनी स्थापत्य कला के लिए जाना पहचाना जाता है। जिसके लिए अनेक अंतर्राष्ट्रीय अवार्डों से जयपुर को नवाज़ा जा चुके है। अब शहर की देख रेख करने के लिए सरकार ने नगर निगम हैरिटेज के लिए एक अलग महापौर और छोटे छोटे वार्ड बनाकर जन प्रतिनिधियों (पार्षद) को नागरिकों की समस्याओं के साथ शहर के सौन्दर्यकरण पर आंच न आये यह जिम्मेदारी भी दी है।