प्राणायाम द्वारा स्वास्थ्य


लेखक : प्रोफेसर (डॉ.) सोहन राज तातेड़ 
पूर्व कुलपति सिंघानिया विश्वविद्यालय, राजस्थान


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प्राणायाम का शाब्दिक अर्थ है- प्राण का विस्तार। प्राण विस्तार से तात्पर्य है प्राणशक्ति को बढ़ाना, उसे सुदृढ़ करना। प्राणायाम का संबंध प्राण से ही है। अतः प्राणायाम प्राण को सुरक्षित रखने का महत्त्वपूर्ण प्रयोग है। प्राणायाम के कई प्रकार हैं जिनमें तीव्र गति, मंद गति, कुंभक आदि का विशेष प्रावधान है। जिस प्रकार आसन शरीर को स्वस्थ रखने में सहायक होते हैं उसी प्रकारं प्राणायाम इसमें सहयोगी बने यह आवश्यक नहीं। इसलिए भिन्न-भिन्न प्रकार के प्राणायामों का निर्देश दिया गया है। प्रत्येक प्राणायाम की अपनी विशेषता है, अपनी विशिष्टता है। इनका सबका अन्तिम लक्ष्य प्राण शक्ति को ही स्वस्थ रखना, व्यवस्थित रखना है और सुदृढ़ करना है। प्राणायाम से अनेक लाभ होते हैं। मुख्यतया प्राणायाम से शरीर से मलों का निष्कासन होता है जिससे शरीर स्वस्थ होता है। साथ ही प्राणायाम से मानसिक अस्त-व्यस्तता समाप्त होेने से मानसिक संतुलन की अवस्था प्राप्त होती है। प्राणायाम के द्वारा ही प्राणमय कोश को स्वस्थ एवं संतुलित रखा जा सकता है। इससे स्पष्ट है कि प्राणायाम कायिक, मानसिक और प्राणिक स्तर पर अपना विशेष प्रभाव डालता है। प्राण के अपव्यय मंे इन तीनों की अहम् भूमिका रहती है। 



प्राणायाम एक ऐसा साधन हैं जो इन तीनों स्तरों को स्वस्थ रखता है और प्राणशक्ति के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। प्राणवायु प्राण को उत्तेजित करती है, सहायता देती है। हम जितनी मात्रा में प्राणवायु (आॅक्सीजन)लेंगे, उतना ही प्राण विशुद्ध होगा, सक्रिय होगा। यदि प्राणवायु नहीं मिलेगी तो प्राण में उत्तेजना नहीं आएगी, सक्रियता नहीं आएगी। वैज्ञानिक दृष्टि से विचार करें तो रक्त शुद्धि के लिए ईंधन चाहिए। वह ईंधन है प्राणवायु, आॅक्सीजन। यदि प्राण उचित मात्रा में मिलता है तो अशुद्ध रक्त को शुद्ध कर कार्बन आदि को शरीर से बाहर कर दिया जाता है और शुद्ध रक्त भीतर प्रवाहित होता है। इसके अभाव में रक्त अशुद्ध रहेगा और शरीर को भी विकृत कर देगा। प्राणवायु रक्त शुद्धि का साधन है और शुद्ध रक्त हमारे शरीर को गति देता है। प्राण के साथ उसका संबंध गहरा है। 



प्राणवायु रक्त के माध्यम से प्राण को भी उत्तेजित करता है, सक्रिय करता है। यदि पौंधे को पानी का पर्याप्त सिंचन मिलेगा तो लहलहा उठेगा। इसी प्रकार प्राणवायु का पर्याप्त सिंचन मिलने पर प्राण का पौंधा भी लहलहा उठता है। पूरा सिंचन न मिलने पर यह पौंधा कुम्हला जाता है। व्यक्ति निष्प्राण और निष्क्रिय हो जाता है। प्राणवायु को सही से लेने का साधन है प्राणायाम। जो प्राणायाम को नहीं जानता, वह प्राणवायु को पूरी मात्रा में ग्रहण नहीं होता और प्राणवायु के बिना प्राण का सम्यक उद्दीपन नहीं होता। अतः प्राणायाम का अभ्यास होगा तो प्राणवायु सध जाएगी। तत्पश्चात् प्राण को सक्रिय करने की क्षमता जागृत हो जाती है। प्राणशक्ति की अनेक क्रियाएं हैं। प्राण का संबंध तैजस से है। यह तब होता है जब प्राणायाम से ली गई प्राणवायु की अग्नि के द्वारा प्राण को इतना उद्दीप्त कर दिया जाता है, प्राण इतना ज्वलित हो जाता है कि उसमें अद्भुद् क्षमताएं प्रकट हो जाती है। 



इस दृष्टि से प्राणायाम का बहुत महत्त्व है। इससे स्पष्ट है कि प्राणायाम प्राण को उत्तेजित और सक्रिय करने का सशक्त माध्यम है। जहां स्वास्थ्य के लिए आसन उपयोगी हैं, वहां प्राणायाम उसमें नव-जीवन संचार करने वाला है। प्राणायाम प्राण-शक्ति को विकसित और जागृत करता है। इस जागृति का निमित्त प्राणायाम बनता है। श्वास-प्रश्वास को व्यवस्थित एवं संयमित करने से प्राणायाम फलित होता है। अतः श्वास-पूरक, रेचक और कुंभक को प्राणायाम कह दिया जाता है, किंतु साधना करने वाला साधक इस भेद रेखा को स्पष्ट समझता है।


विद्युत बल्ब के द्वारा अभिव्यक्त होती है। तारों में प्रवाहित होने वाला विद्युत को अनुशासित एवं व्यवस्थ्ति किया जाता है। ठीक विद्युत-प्रवाह की तरह प्राण भी प्राणायाम के द्वारा जागृत और अनुशासित होता है। महर्षि पतंजलि के अनुसार श्वास और प्रश्वास की गति का विच्छेद ही प्राणायाम है। जब श्वास-प्रश्वास अनुशासित होकर निग्रह की स्थिति में पहुंचता है, तब प्राणायाम की पूर्णता होती है। ‘‘प्राण वे बलम्’’ अर्थात् प्राण ही बल है-इसके अनुसार प्राण शक्ति-संपन्न होकर शरीर के अंग-अंग में फैलता है, और उसे बलवान बनाता है। प्राणायाम संजीवनी शक्ति है, जिससे शारीरिक स्वास्थ्य तो बनता ही है, साथ-साथ चित्त की निर्मलता भी बढ़ती है। 



इससे आध्यात्मिक शक्ति को जागृत होने का अवसर उपलब्ध होता है। प्राणायाम-मानसिक शांति एवं आध्यात्मिक विकास का मार्ग प्रशस्त करता है। उससे समाधि की उपलब्धि होती है, व्यक्ति अपने स्वरूप की यात्रा करने लगता है। शारीरिक स्वास्थ्य उसका पहला फलित है। प्राण जीवन-यात्रा के लिए आवश्यक तत्व है। उसके बिना जीवन की यह यात्रा खण्डित हो जाती है। भोजन और पानी शरीर धारण करने के लिए अपेक्षित है, तो प्राण के बिना जीवन का अस्तित्व ही नहीं रह सकता। प्राण सतत्-प्रवाही जीवन-शक्ति है। वह प्राणवायु से तेजस्वी बना रहता है। प्राण वायु श्वसन क्रिया पूरक, रेचक और कुम्भक से सक्रिय होता है। प्राणायाम श्वसन क्रियाओं का सम्यक् नियमन और नियोजन है। प्राणायाम श्वास-उच्छ्वास का सम्यक् अभ्यास है। प्राण का व्यवस्थित विस्तार और संयम प्राणायाम है। प्राणायाम से शरीर को शक्ति प्राप्त होती है, वहीं चैतन्य-जागरण की भूमिका का निर्माण होता है और शरीर स्वस्थ रहता है। प्राणायाम से रक्त एवं स्नायुमण्डल का शोधन होता है। (लेखक के अपने विचार है)