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इस वर्ष मैं सच में यह कह सकती हूँ की 2021 मेरे जीवन का वास्तविक "नया" वर्ष हैं क्योंकि अब मैं वह तो हूँ ही नहीं जो वर्ष 2020 की शुरुआत में थी। वर्ष 2020 - दो शुन्य मतलब ज़िन्दगी के एक चक्र का समापन और दूसरे चक्र की शुरुआत.. एक ख़ूबसूरत आल्हादित आनंदित एहसास एकदम ज़ुदा सा जो पहले कभी न हुआ था.. होता भी कैसे..तब तक खुद से मुलाक़ात ही कहाँ हुई थी?
बहुत समय से एक कहानी दिल में उत्प्रेरक का काम कर रही थी पर परिभाषित अब हुई हैं । "बांस के पेड़" की कहानी.. बांस का बीज "माँ पृथ्वी" की गोद में कई वर्ष तक समाया रहा.. उसकी कोंपले माँ की गोद से बाहर ही ना निकल सकीं। वो हाथ-पैर मारता.. खूब छटपटाता परंतु माँ उसे अपनी गोद में ही समाये रखती थी। बांस के बीज ने यह भी देखा की माँ सिर्फ उससे ही यह विशेष व्यवहार करती हैं जबकि उसके दूसरे साथी तो कभीके माँ की गोद से निकल कर आगे बढ़ गए.. खूब फल-फूल भी रहे हैं.. उसे कभी-कभी माँ पर बहुत गुस्सा भी आता था। एक दिन उसने माँ से सवाल भी पूछा तो माँ ने कहा कि समय आने पर तुम ख़ुद ही समझ जाओगे।
कुछ सालों के कठोर और उबाऊ इंतज़ार के बाद अचानक एक दिन माँ ने बीज को अपनी गोद से बाहर जाने की इज़ाज़त दे दी और यह क्या ? देखते ही देखते बहुत ही कम समय में बांस का बीज एक विशालकाय पेड़ में बदल गया..उसने देखा की उसके साथी जो पहले ही बाहर आ गए थे वो भी उससे पीछे छूट गए हैं और वह माँ के आँचल से निकल कर अपने पिता "आकाश" को मिलने की डगर पर झटपट दौड़ पड़ा हैं और पिता भी उससे मिलने के लिए अपनी बाहें फ़ैलाकर उसका स्वागत करने को तत्पर हैं। यह सब देखकर उसे यक़ीन ही नहीं हो रहा था क्योंकि उसके बाकी साथी तो अभी भी बहुत पीछे हैं तो फिर उसने इतनी ज़ल्दी यह सफ़र कैसे तय कर लिया? उसने अपने पिता से सवाल किया तो परमपिता परमात्मा ने बहुत ही प्यार से उसे उत्तर देते हुए कहा कि इतने सालों तक जब तुम माँ की गोद से बाहर आने के लिए कठोर प्रयास कर रहे थे तो तुमने कभी ग़ोर नहीं किया कि तुम अपनी जड़ों को मज़बूत कर रहे थे उन्हें माँ की गोद में गहरा और गहरा करते जा रहे थे ताकि जब तुम उसकी गोद से निकल कर बाहर आयों तो एक मज़बूत ऊँची छलांग लगा सकों और मुझसे मिल सकों। तुम्हारे साथी जो कठोर परिश्रम एवं धैर्य रखने में सफ़ल ना हुए वों बिना नींव मज़बूत करें ही माँ की गोद से निकल आये और मुझ तक ना पहुँच सकें।
बस 2020 मेरे जीवन का वही समय हैं जब मैं अपने परमपिता से मिलने के लिए माँ की गोद से बाहर निकल आयी और देखते ही देखते पिता ने भी मुझे गले से लगाने में देर ना की। बचपन से बार-बार यह सुना और पड़ा था कि "अहम् ब्रह्मासि" मतलब हम ही ब्रह्मांड हैं कुछ भी बाहर नहीं हैं.. जो बाहर दिखाई देता हैं वो सब "माया" हैं लेकिन यही तो पहचानने का "सब्र" और "समय" हम ख़ुद को नहीं देते और परमपिता से मिलने में चूक जाते हैं। 2020 के "शुन्य" ने मुझे अपने अंदर के ब्रह्मांड (0) से साक्षात्कार करवा दिया।
"ख़ुद की ख़ुद से" यह मुलाक़ात यक़ीनन बेहद ख़ूबसूरत हैं। ख़ुद में ही आल्हादित आनंदित रहना एक बेहद सुक़ून देने वाला "ख़ास एहसास" हैं। वर्ष 2021 अपनी "इकाई" से मेरे जीवन की सच्ची शुरुआत करने जा रहा हैं.. बिलकुल वैसे ही जैसे घोर तपती गर्मी के बाद सावन की बारिश से "ख़ुशी के झरनें" कलकल करते पर्वतों से बह निकलतें हैं और उनकी मदमस्त चाल आसपास के वातावरण को भी भाव विभोऱ एवं आनंदित कर देती हैं। यह "आनंद" ही तो "शिव" हैं, शिव ही "सत्य" हैं और सत्य ही तो "सुंदर" हैं - "चिदानंद रूपे शिवोह्म शिवोह्म" ।
क्या आप भी कुछ इसी तरह का आनंद एवं प्रसन्ता महसूस कर रहे हैं नए वर्ष का स्वागत करते हुए? इस सवाल का जवाब ख़ुद में खोजीयेगा ज़रूर..क्या पता इस वर्ष आपकी भी परमपिता से मुलाक़ात हो जाये?
नूतन वर्ष की ढ़ेर सारी शुभकामनाओं सहित..आनंदित रहें, स्वस्थ रहें, सुरक्षित रहें और माँ "पृथ्वी" का भी ध्यान रखें...!