लेखिका : रश्मि अग्रवाल
नजीबाबाद, 9837028700
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देखा जाए तो मृत्यु की बात या विचार से लोगों में डर की भावना पैदा हो जाती है। अपने जीवनकाल को कुछ और बड़ा करना, स्वस्थ रहने का प्रयास करना एक बात और मृत्यु से घबराना दूसरी बात, इससे जो वर्ष हम जोड़ेंगे वे प्रताड़ित करेंगे। मृत्यु से डरें तो कैसा आनन्द, अगर मृत्यु को स्वीकार करेंगे, निर्भय होकर जी सकेंगे। इसलिए मृत्यु को जब आना तब आना पर जो जीवन मिला उसे भरपूर जिएँ। सार है अगर पहले कुछ गलत किया, इसका अर्थ यह नहीं कि सर्वथा गलत है। बीते समय के बोझ को हटाते, वर्तमान को जीने की राह बनाते, अपने देश की संस्कृति-सभ्यता को भय से नहीं, एहसास करते स्वीकार करें ताकि विषम परिस्थितियों से जूझने के लिए मुखौटे न लगाने पड़े, अगर लगाने भी पड़े तो उनमें इतना न खो जाएँ कि उनके गुलाम हो जाएँ।