विश्व स्तर पर चमकती हिन्दी भारत में ही उपेक्षित है : डा. रक्षपाल सिंह


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अलीगढ। विश्व हिन्दी दिवस के अवसर पर आज एक संगोष्ठी काआयोजन हरीमोहन अपार्टमेंट, अवंतिका फेज़- 2  में किया गया। इसकी अध्यक्षता शिक्षाविद् डा रक्षपाल सिंह ने की तथा संचालन औटा के पूर्व अध्यक्ष डा .मुकेश भारद्वाज ने किया। संचालन करते हुए डा. भारद्वाज ने कहा कि स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद देश एवं अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर हिन्दी के विकास के लिये अनेकानेक  कार्यों एवं उपलब्धियों के बावजूद अफसोस है कि विश्व में सबसे ज्यादा बोले जाने वाली तीन भाषाओं में शामिल हिन्दी अभी तक संयुक्त राष्ट्र संघ की भाषाओं में शामिल नहीं हो सकी है। इस अवसर पर वरिष्ठ समाजसेवी एवं एडवोकेट सुभाष लोधी ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि यद्यपि हिन्दी के बढ़ावे के लिए अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर कई हिन्दी सम्मेलनों के आयोजनो से विदेशों में हिन्दी का प्रसार बढ़ा है और यही नहीं विदेशों के अनेक स्कूलों एवं विश्विद्यालयों में हिन्दी की पढ़ाई की व्यवस्थायें भी हैं,लेकिन आश्चर्य है कि वही हिन्दी भारत में ही उपेक्षा की शिकार है।

संगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए डा रक्षपाल सिंह ने कहा कि हकीकत यह हैकि नई शिक्षा नीति--1986/92 के लागू होने के लगभग 28 वर्ष बाद हिन्दी भाषी प्रदेशों में हिन्दी के पठन-पाठन की व्यवस्थायें बदहाल हुई हैं। एनुअल स्टेटस ऑफ़ एजुकेशन रिपोर्ट  के अनुसार सरकारी स्कूलों के कक्षा 5 के 50 % विद्यार्थियों का कक्षा 2 की हिन्दी किताब का न पढ़ पाना देश में हिन्दी शिक्षा की पोल खोलने के लिए काफी है। डा. सिंह ने वेदना के साथ कहा कि कैसी विडम्बना है कि कक्षा 5 के विद्यार्थियों को हिन्दी की कक्षा 2 की पुस्तक तक पढ़ना आता नहीं और प्राथमिक कक्षाओं के पाठ्यक्रम में ही अंग्रेजी, संस्कृत सहित हमारा परिवेश नामक पुस्तकें शामिल हैं। बैठक में डा. राजेश कुमार, डा. राजीव कुमार, आदित्य कुमार आदि शिक्षाविदों ने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि सरकारी स्कूलों में हिन्दी की बदहाली की मुख्य वज़ह प्राथमिक स्तर पर ही अंग्रेजी,संस्कृत, सहित हमारा परिवेश पुस्तकों को शामिल किया जाना है क्योंकि ये विषय बिना हिन्दी के सम्यक ज्ञान के नहीं पढ़ाये ही नहीं जा सकते। (लेखक का अपना अध्ययन एवं विचार हैं)