मुम्बई। चूंकि, भीमाबाई का किरदार स्वाभाविक रूप से अपने अंतिम पड़ाव पर पहुंच चुका है। ऐसे में एण्डटीवी के ‘एक महानायक डाॅ. भीमराव आम्बेडकर’ में भीमाबाई का किरदार को निभा रहीं, नेहा जोशी ने इस शो में अपने किरदार और इस पूरे सफर से मिली सीख के बारे में चर्चा की।
जब बाबासाहेब बड़े हो रहे थे उस दौरान भीमाबाई का काफी गहरा प्रभाव उन पर पड़ा था। क्या आप मां-बेटे के रिश्ते और इस शो में उसकी प्रस्तुति के बारे में थोड़ा और बता सकती हैं?
बाबासाहेब के पूरे जीवनकाल में भीमाबाई उनकी सबसे बड़ी प्रेरणा रही हैं। उन्हें सही मूल्यों के बारे में बताने और सही सीख देने में वह एक माध्यम रही हैं। इस सीख और समझ ने उन्हें भविष्य के महान लीडर्स में से एक बनाया। बाबासाहेब के लिये भीमाबाई एक मजबूत स्तंभ की तरह खड़ी रही हैं और उन्हें मेहनत करने और अपनी पढ़ाई का इस्तेमाल अपनी जिंदगी को बेहतर बनाने में करने के लिये प्रेरित किया है। वह उन्हें अपनी शिक्षा के माध्यम से देश की सेवा करने और अपने समाज को बंधनमुक्त करने के लिये प्रोत्साहित करती रहती हंै। वह उन्हें हमेशा ही सही का साथ देने की बात सिखाती हैं, भले ही परिस्थिति कैसी भी हो।
परदे पर और परदे के बाहर भी आयुध के साथ आपका बेहद ही करीबी और अनूठा रिश्ता रहा है। इसके बारे में थोड़ा और बतायें। इस किरदार के खत्म हो जाने के बाद भी क्या आप उनसे संपर्क में रहेंगी?
इतनी कम उम्र होने के बावजूद भी आयुध भानूशाली एक्टिंग के अपने टैलेंट से हमें हैरान करने का कोई भी मौका नहीं छोड़ते। वह बेहद लगनशील और मेहनती को-स्टार हैं। वह हंसमुख और मिलनसार स्वभाव के हैं। मुझे याद है जब कोल्हापुर की शूटिंग के दौरान हमारी पहली मुलाकात हुई थी, हम तुरंत ही दोस्त बन गये थे और हमारा काफी अच्छा रिश्ता बन गया था। हमारे बीच कमाल का रिश्ता है, वह मेरी आंखों का तारा हैं और उनके साथ काम ना करने की कमी जरूर खलेगी।
रामजी के जीवन की मुश्किल घड़ियों में भीमाबाई एक मजबूत सहारा बनकर खड़ी रही हैं। क्या इस बारे में थोड़ा और विस्तार से बता सकती हैं? और आगे आने वाले एपिसोड्स में कहानी किस तरह आगे बढ़ेगी?
उस दौर में भीमाबाई और रामजी का रिश्ता अपने वक्त से आगे था। सबसे मुश्किल और चुनौतीपूर्ण समय में दोनों एक-दूसरे के साथ खड़े रहते थे। हर अच्छे और बुरे वक्त में एक-दूसरे का साथ देते थे। हम दोनों हमेशा ही एक-दूसरे का बेहद सम्मान करते हैं।
‘एक महानायक डाॅ. बी.आर आम्बेडकर’ एक अनूठा हिन्दी टेलीविजन शो है; आपको यह भूमिका कैसे मिली और आपका सफर कैसा रहा?
आडिशन के कई राउंड के बाद मुझे शाॅर्टलिस्ट किया गया। मुझे इतने बड़े शो में काम करने की काफी खुशी थी। एण्डटीवी का ‘एक महानायक डाॅ. बी.आर आम्बेडकर’ हिन्दी जनरल एंटरटेमेन्ट क्षेत्र में एक अनकही कहानी है। इतनी अद्भुत शख्सियत और भारतीय समाज के प्रति उनके अत्यधिक योगदान की कहानी इससे पहले कभी नहीं दिखायी गयी।
इस शो में भीमाबाई का किरदार आखिर में मर जाता है, फिर भी आपने इसे इतने खुले दिल और दिमाग से क्यों लिया? आपके अनुसार भीमाबाई के किरदार का पूरा सार क्या है?
एक ऐसा किरदार निभाना जिसके लिये पहले से ही संदर्भ मौजूद हों और कई लोगों को वह चुनौतीपूर्ण लगता हो, फिर भी वह अपने साथ सीख लेकर आता है। सबसे बड़ी चुनौती यह विश्वास दिलाना होता है कि आप उस भूमिका को अच्छी तरह निभा लेंगे। भीमाबाई का किरदार एक जिम्मेदारी की तरह है, जिसे मैंने स्वीकार किया और अपना सबसे बेहतर करने की कोशिश की। मेरे विचार से भीमाबाई की ताकत उसका ‘परिवार’ था। उनकी वजह से ही वह इतने सालों तक आगे बढ़ती रही। वह एक अद्भुत मां, एक समर्पित पत्नी और प्यारी भाभी है।
आप इस शो से एक साल से ज्यादा समय से जुड़ी रही हैं और हाल ही में इस शो ने 200 एपिसोड पूरे किये हैं। क्या आप कलाकारों के साथ शूटिंग से जुड़े सबसे यादगार लम्हों के बारे में बता सकती हैं, भले ही वह आॅफ-स्क्रीन रहे हों?
किसी एक लम्हे का जिक्र कर पाना तो काफी मुश्किल है; यह पूरा सफर ही यादगार रहा है। हम एक बड़े परिवार की तरह हैं। सेट के काफी सारे लोग आफ-स्क्रीन भी मुझे ‘आई‘ कहकर बुलाते हैं। सारे कलाकारों और क्रू के सदस्यों ने हमेशा ही पूरा सहयोग दिया है। हमारे बीच जीवनभर का रिश्ता बन गया है और वे सभी मेरे दिल के बेहद करीब हैं।
हमने सबसे पहले सीन की शूटिंग कोल्हापुर में की थी, जो बाबासाहेब के जन्म का था और वह भावुक सीन था, जिसे परदे पर उतारना था। उस सीन की शूटिंग के दौरान काफी सारी भावनाएं उमड़-घुमड़ रही थीं और वह काफी अच्छा बन गया था। आखिरी सीन हमने भीमाबाई के मौत की शूटिंग की थी और एक बार फिर वह एक बेहद भावुक पल था। उस सीन की वजह से सबकी आंखें नम हो गयी थीं। मैंने पैक-अप के बाद यह कहते हुए सबको गुडबाय किया कि संपर्क में बने रहेंगे।
‘ईएमबीआरए’ (एक महानायक बी.आर. आम्बेडकर) के साथ शुरूआत करने से पहले आपको बाबासाहेब के जीवन और उस दौर के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं थी। इस शो ने किस तरह आपको उनके बारे में और ज्यादा जानने में मदद की और एक ऐसी कोई सीख जिसे आप ताउम्र याद रखेंगी?
स्टूडेंट के रूप में हम सब बाबासाहेब के बारे में हमेशा पढ़ते रहे हैं, लेकिन इस शो के माध्यम से उस सफर का हिस्सा बनना सीखने का बहुत ही अच्छा अनुभव रहा है। बाबासाहेब के जीवन का सिर्फ एक ही नहीं बल्कि काफी सारे पहलू रहे हैं, जिसे मैंने इस शो के माध्यम से जाना और मैं हमेशा ही इसे याद रखूंगी।
सेट से जुड़ा ऐसा कौन है जिसकी आपको सबसे ज्यादा याद आने वाली है और क्यों?
मुझे सबसे ज्यादा अपने किरदार भीमाबाई की कमी खलने वाली है! यह सिर्फ एक किरदार निभाने की बात नहीं थी, बल्कि जैसे-जैसे यह शो आगे बढ़ा, कई रूपों में वह मेरी जिंदगी का एक अहम हिस्सा बन गया। इस किरदार की सबसे बड़ी खूबी है उसकी हिम्मत और उसका प्यारा और लोगों का ख्याल रखने वाला स्वभाव। मुझे सारे कास्ट की कमी खलेगी, खासकर भीमराव (आयुध भानूशाली), रामजी (जगन्नाथ निवानगुने), मीराबाई (फाल्गुनी दवे), बाला (साद मंसूरी) और कई अन्य लोग। सेट पर पहले दिन से ही सबके बीच काफी अच्छा तालमेल था, सभी एक-दूसरे की मदद कर रहे थे और एक-दूसरे का सहयोग कर रहे थे। मुझे हर दिन सेट पर ना होने की कमी खलने वाली है।
तो अब आगे नेहा जोशी क्या करने वाली है?
फिलहाल तो मैंने आगे के बारे में अभी नहीं सोचा। लेकिन अभी के लिये मैं एक छोटा-सा ब्रेक ले रही हूं और थोड़े समय के लिये खुद पर ध्यान दूंगी। वैसे कुछ अच्छे प्रोजेक्ट मिलते हैं तो मैं जरूर करूंगी।