निशांत की रिपोर्ट
लखनऊ (यूपी)
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भारत में कोयला आधारित बिजली उत्पादन में लगातार दूसरे साल गिरावट दर्ज की गयी है। साल 2018 से शुरू इस गिरावट की बड़ी वजह रही है सौर ऊर्जा का बढ़ता उत्पादन और परम्परागत बिजली की घटती मांग।
ताज़ा आंकड़ा है साल 2020 का जब कोयला बिजली उत्पादन में 5 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गयी। इस गिरावट का सिलसिला 2018 से शुरू हुआ जब उत्पादन ने अपने ऐतिहासिक शिखर पर पहुँचने के बाद नीचे का रुख कर लिया। पिछले साल कोविड की वजह से लगे लॉकडाउन ने इस गिरावट को मज़बूत कर दिया और अब यह सुनिश्चित करने का एक अवसर है कि COVID-19 महामारी से उबरने के दौर में देश वापस कोयला बिजली के उत्पादन को बढ़ने का मौका न दे।
इन बातों का ख़ुलासा हुआ एनर्जी थिंक टैंक एम्बर द्वारा किये एक विश्लेषण से, जिसमें पता चलता है कि भारत की कोयला बिजली 2018 में चरम पर पहुंचने के बाद से लगातार घट रही है। कोविड-19 लॉकडाउन की वजह से वार्षिक बिजली की मांग में कमी आई है जिसके परिणामस्वरूप भारत की कोयले से चलने वाली बिजली का उत्पादन 2020 में 5% कम हो गया है। यह लगातार दूसरा वर्ष है जिसमे कोयला बिजली उत्पादन में गिरावट आयी है, 2018 की तुलना में 2020 में कोयला उत्पादन 8% कम है। फिर भी कोयला अभी भी बिजली का प्रमुख स्रोत बना हुआ है, और इस से 2020 में भारत की बिजली का 71% उत्पादन हुआ।
अध्ययन में भारत के केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण के नए आंकड़ों का विश्लेषण किया गया है, जिससे पता चलता है कि बिजली की मांग में 36 TWh (3%) की गिरावट और सौर उत्पादन में 12 TWh (3%) की वृद्धि हुई जिसकी वजह से कोयला 2020 में 51 TWh (5%) की गिरावट हुई। जैसे-जैसे कोयले से चलने वाला बिजली उत्पादन गिरता गया और कोयले की क्षमता बढ़ती गई, भारत का कोयला संयंत्र लोड फैक्टर (PLF) (पीएलएफ) 2020 में 53% के निचले स्तर पर गिर कर आ गया।
एम्बर की रिपोर्ट दर्शाती है कि अगर बिजली की मांग कोविड-19 से संरचनात्मक रूप से प्रभावित होती है तो भारत का कोयला आधारित बिजली उत्पादन इस दशक में नहीं बढ़ेगा और जैसा है वैसा ही रहेगा। बिजली की मांग 2030 1 तक हर साल सिर्फ 4-5% बढ़ने का अनुमान है, अध्ययन की गणना है कि 2030 तक कोयले से चलने वाले बिजली उत्पादन में केवल एक छोटी (52 TWh) वृद्धि होगी। विश्लेषण अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी के आंकड़ों पर आधारित है और यह दिखाता है कि हालिया भारत एनर्जी आउटलुक 2021 की रिपोर्ट इस निष्कर्ष का समर्थन करती है कि कोयला शक्ति और नहीं बढ़ेगी और इस दशक में गिर भी सकती है।
यह नया प्रक्षेप पथ भारत को जलवायु के लिए अधिक मुनासिब मार्ग पर डालता है। हालांकि, एम्बर की रिपोर्ट से पता चलता है कि यह भारत पर निर्भर है कि वह पवन और सौर उत्पादन के लिए अपना 2022 का लक्ष्य पूरा करे जिसे 2020 (118TWh) में हुए उत्पादन से दोगुना से अधिक होने की आवश्यकता होगी।
एम्बर के वरिष्ठ विश्लेषक आदित्य लोल्ला ने कहा, यह संभावना बढ़ रही है कि भारत में 2020 में कोयला बिजली (उत्पादन) स्थिर रहेगा। लेकिन, अभी भी भारत के लक्ष्य पाने से चूकने का जोखिम है। जैसे-जैसे भारत कोविड -19 महामारी के सदमें से उबरता है, अगले एक दशक में इसके द्वारा किए जाने वाले विकल्प इसके कोयला-से-स्वच्छ बिजली संक्रमण को बनाएंगे या तोड़ देंगे। बढ़ती बिजली की मांग को पूरा करने के लिए अब पर्याप्त नई सौर और पवन क्षमता के निर्माण पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिए। इसका मतलब होगा कि अगले कुछ वर्षों में ऑनलाइन आने वाले कोयला संयंत्रों की नई लहर का उपयोग भारत के सबसे पुराने और गंदे (प्रदूषित करने वाले) कोयला संयंत्रों को बदलने के लिए किया जा सकता है। दुनिया के दूसरे सबसे बड़े कोयला उत्पादक के रूप में, सभी की निगाहें जलवायु कार्रवाई के इस महत्वपूर्ण दशक में भारत पर टिकी हैं।
वाकई, इसमें कोई दो राय नहीं कि अगर कोयला बिजली उत्पादन यूँ ही घटता रहा और रेन्युब्ल एनेर्जी की डिमांड बढ़ती रही तो भारत की जलवायु परिवर्तन के ख़िलाफ़ लड़ाई काफ़ी आसान हो जाएगी। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार हैं)