इंदौर (एमपी), 98935 18228
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खबर है कि केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो ऊर्फ़ सीबीआइ ने पश्चिम बंगाल में सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस के सांसद अभिषेक बैनर्जी की पत्नी रुजीरा बैनर्जी को कोयले के किसी मामले में नोटिस थमाया है। सनद रहे कि यह नोटिस ऐन उस वक़्त दिया गया है, जब अभिषेक बैनर्जी ने गृह मंत्री अमित शाह के खिलाफ मानहानि का मुकदमा दायर किया है। जान लें सीबीआइ केन्द्र सरकार के तहत काम करने वाली एक पुलिस ही है, जो गृह मंत्री को ही अपनी रिपोर्ट देती है। आपातकाल में ऐसा अवश्य हुआ था कि तत्कालीन प्रधानमंत्री स्व. इंदिरा गांधी ने इस एजेंसी को अपने अधीन कर लिया था। कहते वे हर सप्ताह इसके बॉस और रिपोर्ट को तलब करती थी। सन 1963 में गठित की गई इस एजेंसी के गठन का मूल मकसद था भ्र्ष्टाचार, देश विद्रोही गतिविधियों पर नजर रखना, अपराधों, माफिया गठ जोड़ के मामलों की जाँच करना। यदि इस एजेंसी के पास पुष्ट प्रमाण आ जाते हैं तो यह सुप्रीम कोर्ट के प्रति जवाबदेह स्पेशल कोर्ट में आरोप पत्र दाखिल करती है।
अक्सर देखा गया है कि उक्त जांच एजेंसी दूध का दूध और पानी का पानी करने में अपना कोई सानी नहीं रखती रही है। जहाँ तक पश्चिम बंगाल में कोयले के खुदाई में विभिन्न नेताओं और चंद अफसरों की विवादास्पद भूमिका की बात है तो कोयले की दलाली में सबके हाथ काले होने का मुहावरा देश में कभी का जंग खा चुका है। अपने को भारत में समाजवाद का अन्तिम हीरा घोषित कर चुके पूर्व प्रधानमंत्री चन्द्रशेखर तो अक्सर मान लिया करते थे कि हाँ, उनके एक बड़े कोल माफिया से सम्बंध रहे हैं। उनका अपनी अदा में मासूम सा तर्क था मेरे इतने खर्च हैं उनका वहन करने को कौन तैयार है बताइए? अब इस तरह के प्रधानमंत्री के कथित समाजवाद को आप प्रणाम ही कर सकते हैं न? उसके सिवा और क्या। पश्चिम बंगाल में चूँकि मई जून में विधानसभा की सभी सीटों के आम चुनाव होने हैं। इसलिए भाजपा वहाँ सत्ता हासिल करने के लिए न जाने कब से नीदें गंवा चुकी है।
पीएम नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह, पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा, केन्द्रीय मंत्री स्मृति ईरानी एवं इस सूबे के दूसरी बार बनाए गए रणनीतिकार राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय जो इन्दौर के ही बाशिंदे हैं लगातार रैलियां करके मुख्यमंत्री ममता बैनर्जी के लिए नित नई मुश्किलें खडी कर रहे हैं। राजनीतिक पण्डित मानते हैं कि अब केन्द्र सरकार ने एन चुनाव के पहले पश्चिम बंगाल की सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस पार्टी को घेरने का नया पांसा फ़ेंका है। अब नोटिस के बाद जांच के हालात बनते भी हैं तो उसके नतीजों तक पहुंचने में कितना समय लगेगा यह अभी से तय नहीं है। सीबीआइ का इतिहास कुल मिलाकर सफलताओं से भरा रहा है। हाल में उसे उत्तर प्रदेश के चर्चित हाथरस काण्ड की जाँच में कामयाबी मिली थी। इस काण्ड के आरोप पत्र सीबीआइ ने स्पेशल कोर्ट में दाखिल भी कर दिए हैं।
बॉलीवुड अभिनेता स्व. सुशांतसिंह के मामले की पड़ताल में भी सीबीआइ का नाम कुछ महीने पूर्व ही लगातार आया था। इस एजेंसी का स्वर्ण काल तब माना गया था जब झारखंड मुक्ति मोर्चा के सांसदों को तत्कालीन प्रधानमंत्री स्व. पी. नरसिम्हाराव द्वारा रिश्वत देने के मामले को सीबीआइ ने ही उजागर किया था। इसमें सुप्रीम कोर्ट ने नरसिम्हाराव को तीन साल की सजा सुना दी थी। यह बात और है कि नरसिम्हाराव को तत्काल ज़मानत भी मिल गई थी। बिहार के मुख्यमंत्री रहते हुए जब फिलहाल गम्भीर रूप से बीमार लालूप्रसाद यादव ने जो करोड़ों का चारा घोटाला किया था, उसमें भी लालूप्रसाद यादव को सीबीआइ की जाँच पड़ताल के कारण ही जेल की सजा हुई थी, जिसे उन्हें भोगना पड़ा।
कहा जाता है कि सीबीआइ को सबसे पहली सफलता धर्म तेजा काण्ड में मिली थी। धर्म तेजा बड़े तेज शख्स माने जाते थे और उनके रसूख़ भी सियासी गलियारों में दूर तक थे लेकिन वे आखिरकार उक्त एजेंसी के जाल में फंस ही गए थे। क्रिकेट में भी सट्टा बाज़ारी के आरोप पूर्व कप्तान अजरूद्दीन जैसों पर लगे थे। उनके साथ कुछ दिग्गज क्रिकेटर्स के नाम भी जुड़े थे, पर कोर्ट ने इस मामले को काल अवधि के बाहर का मानकर इसकी फाइल बंद कर दी थी। आज भी माना जाता है कि इस एजेंसी को पूरे प्रोफेशनल बिना राजनीतिक हस्तक्षेप या अन्य दबाओं में न आकर काम करने दिया जाए तो सीबीआइ अपनी मजबूत साख को बनाए रख सकती है। यह हमारी राजनीतिक तंत्र की कमज़ोरी है कि कभी किसी प्रकरण के कारण ग़ुस्से में उबल रही संसद को सिर्फ़ यह कहकर शांत किया जा सकता था कि फलाँ मामले की जाँच पड़ताल के निर्देश सीबीआइ को दिए जा रहे हैं।
यह तो विश्वसनीयता की बात हुई, मग़र ऐसा भी दौर आया जब इसके कामकाज में दखलंदाजी के चलते इसकी जाँच को लोगों ने पर्याप्त गम्भीरता से लेना बंद कर दिया। अब तो कुछ सूबों ने नियम बना दिया है कि बिना उनकी सहमति एवं अनुमति के सम्बंधित राज्य के किसी मामले में सीबीआइ केन्द्र सरकार के निर्देशों के तहत जांच पड़ताल नहीं कर सकती। इस नियम पर कुछ समय पहले सुप्रीम कोर्ट ने भी मुहर लगा दी है।दरअसल रुजिरा बैनर्जी को सीबीआइ ने नोटिस देने के बाद उनसे कोयला तस्करी मामले में करीब डेढ़ घण्टे तक पूछताछ की। एक विनय मिश्रा का नाम भी इस स्कैम में लिया गया है। कहा जाता है कि कोयले की खदाने पश्चिम बंगाल में ही नहीं फैली हुई है बल्कि झारखंड के धनबाद तक ये मिल सकती है। कहते हैं उस पट्टी का बच्चा बच्चा इस गलत काम से जुड़ा हुआ है। आम चर्चा का विषय यह रहे कि कि उक्त कोयले को काला सोना मानकर तत्काल ट्रकों से रवाना कर दिया जाता।
कोयले के खनन पर अमिताभ बच्चन, शत्रुघ्न सिन्हा और राखी के साथ एक बडी हिट फ़िल्म काला पत्थर भी सालों पहले बन चुकी हैं। बेहतर होता कि उत्तर प्रदेश के गाज़ियाबाद में विशेष प्रशिक्षण देकर तैयार की गई सीबीआइ की टीम को ऐन चुनाव के वक्त सत्ताधारी दल के नेताओं के खिलाफ कार्यवाही करने से रोका जाता। वजह यह है कि जाना पहचाना तथ्य है कि पश्चिम बंगाल के लोग जितने सृजनशील होते हैं उतना ही कानून औऱ व्यवस्था की धज्जियाँ भी इसी सूबे में सबसे ज़्यादा उड़ाई जाती रही हैं। अब 1947 के बंटवारे के बाद पश्चिम बंगाल में हुए भयानक साम्प्रदायिक दंगों के बीच सैकड़ो की लाशें बिछने से बचाने के लिए वन मैन आर्मी बनकर स्वर्ग से पुनः राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को तो पुकार नहीं लगाई जा सकती न! (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार हैं)