पालिका प्रशासन लावारिस और पालतू जानवरों पर नहीं कर पाया कण्ट्रोल
न्यू मार्केट सांभर साल्ट फाटक के पास विचरण करती गाये |
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सांभरझील। यहां रोडवेज व निजी बसों के ठहराव स्थल, न्यू मार्केट में सांभर साल्ट फाटक के नजदीक, सार्वजनिक नेहरू बालोद्यान, सब्जी मण्डी, पुरानी चारामण्डी, के अलावा पालिका प्रशासन की ओर से यूनानी औषधालय व गर्ल्स स्कूल के बाहर बनवाये गये कचरा डिपो कई वर्षों से लावारिस जानवरों की शरण स्थली बन चुके है।
इसके अलावा लावारिस गायों के झुण्ड में अनेक गायें ऐसी भी बतायी जा रही है जिनके मालिक दूध दोहने के बाद उन्हें शहर में पेट भरने के लिये छोड़ देते है। इन लावारिस जानवरों में गायो, साण्डों की संख्या इतनी तादाद में है कि बाहर से आने वाले को देखकर अजीब सा लगता है कि वह पर्यटन नगरी सांभर में प्रवेश कर रहा है या किसी गांव की गौशाला में। ऐसे में सबसे ज्यादा मुसीबत उन लोगों को प्रात:काल के समय जो नियमित दिनचर्या के दौरान भ्रमण पर निकलते है या बाहर जाने वाले डेली अप डाउनर होते है। ऐसे में छोटे-छोटे बच्चों या बुजुर्गों को इन जानवरों से बेहद ही खतरा रहता है।
अनेक ऐसे मामले अब तक प्रकाश में आ चुके हैं कि गायों और साण्डों के आपसी लड़ाई की चपेट में आकर कई लोगों अपनी हड्डी तक फ्रेक्चर तक करवा चुके है तो कई गंभीर रूप से घायल भी हुये है। बताया यह भी जा रहा है कि सुबह सुबह हरा चारा लेकर बेचने के लिये कुछ लोग यहां खड़े रहते है, जिनसे चारा खरीदकर लोग भी सड़कों पर डाल देते है जिससे गायों और साण्डों का झुण्ड एक जगह इकट़ठा हो जाता है। इन लावारिस जानवरों पर लगाम लगाने के लिये अनेक बार निवर्तमान पालिका के बोर्ड में इस मुद्दे को उठाया गया था और इन जानवरों को पकड़कर पहले उन्हें यथास्थान छोड़ने के लिये कार्यवाही को अंजाम दिया गया तथा कुछ पशु पालकों को हिदायत भी दी गयी की वे अपने दुधारू पशुओं को खुले में नहीं छोड़े लेकिन उन पर कोई असर नहीं हुआ।
हालाकि पालिका ने इस मामले में जब सख्ती बरती तो मालिकाना हक जताते हुये पशु पालक गौशाला पहुंचकर झगड़ा करने तक उतारू हो गये। लावारिस जानवरों को पकड़ने के लिये बताया जा रहा है कि पालिका प्रशासन की ओर से इसके लिये निविदा भी आमंत्रित की गयी थी, लेकिन कोई टेण्टर ही नहीं छुड़ाने आया, उसके बाद पालिका प्रशासन ने भी सुस्त रवैया दिखाते हुये इस मामले को ठण्डे बस्ते में डाल दिया, लोगों का कहना है कि स्थानीय जनता को इन जानवरों से निजात दिलाने का काम निकाय विभाग का है, यह उनकी हैडक है कि वे इसका क्या समाधान निकालते है। इसी प्रकार कई महिनों से सांभर में कुछ काले मुंह के बंदरों की वजह से लोगों को छत पर जाने में भी डर सताता है। दो तीन दिन पहले ही स्टेशन रोड पर रहने वाली अर्पिता कश्यप बंदर से हमले से बचने के चक्कर में चोटिल हो गयी थी, लेकिन इन तमाम बातों का न तो यहां के राजनेताओं पर असर हो रहा है और न ही प्रशासन अपनी जिम्मेदारी बखूबी तरीके से निभा रहा है।