अजमेर ख्वाजा मुईनुद्दीन हसन चिश्ती के सगे पोते की मजार पर आने से मिलता है सुकून
http//daylife.page
सांभरझील। अजमेर में ख्वाजा साहब के उर्स के कुल की रस्म सम्पन्न होने के साथ ही सांभर में पुरानी धानमण्डी में मौजूद उनके सगे लाड़ले पोते हजरत ख्वाजा हुसामुद्दीन चिश्ती जिगर सोख्ता रहमतुल्लाह अलेह की दरगाह में भारी तादाद में जायरीनों के आने का सिलसिला शुरू हो गया है, यूं तो यहां पर अजमेर में उर्स के शुरूआत होने के बाद से ही उर्स की हलचल शुरू हो गयी थी। इनकी आस्ताने दरबार में सभी धर्मों के लोग आकर ख्वाजा साहब के प्रति अपनी आस्था प्रकट करते है। आप हजरत ख्वाजा मुईनुद्दीन हसन चिश्ती, अजमेर के सगे लाड़ले पोते है तथा ख्वाजा फकरूद्दीन के साहबजादे है। दादा ख्वाजा अजमेरी ने अपने पोते का नाम खुद के लाड़ले बेटे के नाम पर हुसामुद्दीन रखा, इसलिये इन्हें लाडली सरकार के नाम से भी जाना जाता है।
यह आम मशहूर है कि इन्हें जिगर सोख्ता भी कहा जाता है क्योंकि ये यादें इलाही में इतने डूबे रहे कि इनका जिगर इश्के इलाही की आग की तपिश से जलकर खाक हो गया। ये जिधर से भी गुजरते तो जले हुये मांस की बू चारों और फैल जाती और इनके आने की मौजूदगी का अहसास हो जाता और लोग कहते की ख्वाजा साहब तशरीफ ला रहे है। इन्होंने सभी धर्म के लोगों से प्यार किया और उनकी खिदमत की, इनके पास जो भी अपनी दुख तकलीफें लेकर इनके आस्ताने दरबार में पहुंचा उनकी तकलीफें दूर की तथा उन्हें दुनिया में आने का मकसद बताया, उनके वजूद की अहमियत बतायी और एक दूसरे को मोहब्बत से रहना सिखाया। यहीं वजह है कि आज भी ख्वाज साहब की मजार पर सिर्फ मुसलमान ही नहीं बल्कि सभी महजब के लोग अकीदत से हाजिरी देते है, मन की मुरादें पाते है।
अजमेर में कुल की रस्म सम्पन्न होने के साथ ही शुक्रवार को ख्वाजा साहब की दरगाह के बुलन्द दरवाजे पर झण्डे की रस्म अदा की गयी, इसके साथ ही सांभर में उर्स का आगाज हो गया। सांभर में अजमेर के उर्स के ठीक बाद हर साल चांद की तारीख 11 रजब से 14 रजब तक उर्स का मेला भरता है। तीनों दिन मध्य रात्रि को अजमेर दरगाह दीवान साहब सज्जादानशीन द्वारा पारम्परिक व वंशानुगत रूप से मजार शरीफ पर गुल की रस्म अदा की जाती है, इस दौरान मजार शरीफ को केवड़ा व गुलाब जल से धोया जाता है उसके बाद इत्र छिड़का जाता है। 13 रजब को उर्स के मौके पर अजमेर दरगाह शरीफ की ओर से सज्जादानशीन साहब द्वारा मजार शरीफ पर चादर पेश की जाती है और खास दुआयें कर देश में अमन एवं खुशहाली की कामना की जाती है।
अजमेर से लायी गयी चादर का जुलूस भी शहर के खास रास्तों से होता हुआ दरगाह शरीफ पहुंचता है। 14 रजब को कुल की रस्म अदा की जाती है, उसके बाद उर्स सम्पन्न हो जाते है। उर्स के दिनों में दरगाह को खास रोशनी व सजावट से सरोबार किया जाता है। आज झण्डे की रस्म छोटूखां अगवान की ओर से निभायी गयी। इससे पहले झण्डा और चादर शरीफ को गाजे बाजे के साथ लाया गया, जहां सभी रस्म को पूरा करने के बाद मजार शरीफ पर चादर पेश की गयी।