सांभर में इण्डस्ट्रीज लगाने के लिये सरकार तक ठोस पहल का अभाव

रोजगार की कमी के कारण अब तक सैंकड़ों लोग कर चुके है पलायन

शैलेश माथुर की रिपोर्ट 

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सांभरझील। सांभर में लोगों को स्थायी रोजगार नहीं मिलने के कारण विगत दो दशकों से अब तक सैंकड़ों लोग यहां से पलायन कर चुके है और रोजाना सैंकड़ों लोग अपना पेट पालने के लिये राजधानी के अलावा अन्य क्षेत्रों में जाकर नियमित अप डाउन करने को मजबूर है, जिसकी वजह से निम्न व मध्यम आय वर्ग के लोगो के सामने अपने परिवार के भविष्य को लेकर बेहद चिंतित है। 

इनमें बेरोजगारों की श्रेणी में ऐसे युवाओं की भी कमी नहीं है जो अपनी पढाई व तकनीकी शिक्षा प्राप्त करने के बाद आज रोजगार ढूंढने के लिये सांभर छोडने को मजबूर हो गये है या महज पांच से सात हजार की मामूली पगार में जयपुर जाकर कमाने खाने को मजबूर है। ऐसे युवाओं के अभिभावकों ने जो सुनहरे सपने संजाये थे वे अब पूरी तरह से इसलिये धूमिल हो गये है कि सांभर में रोजगार का कोई स्कोप नहीं है, इस पर देश में बढती मंहगाई की वजह से ऐसे कमजोर आय वर्ग के लोग बमुश्किल अपना गुजारा कर पा रहे है, जिन लोगों ने सांभर में ही अपना धंधा शुरू करने के लिये इधर उधर से पैसा लेकर काम शुरू किया या तो वे कर्ज के बोझ तले दब गये है या फिर उनकी रिकवरी नहीं होने से उस काम को बंद कर चुके है। 

यह लिखने योग्य है कि अंग्रजों के जमाने में सांभर नमक उत्पादन के लिये पूरे विश्व में अपनी पहचान कायम रखता था, और रोजगार के लिये प्रदेश से बाहर से लोग आकर यहां पर अपनी नमक की गद्दी लगाते थे, लेकिन सांभर साल्ट्स का इतिहास अब करीब करीब पन्नों तक सिमट कर रह गया है। भारत सरकार के उपक्रम सांभर साल्ट्स लिमिटेड को निजी हाथों में सौंपने के लिये सरकार तक दबाव बनाने में तमाम राजनेता पूरी तरह से नकारा साबित हुये, जबकि यहां के बुद्धीजीवियों का यह तर्क रहा है कि जब तक सांभर साल्ट्स का निजीकरण नहीं किया जायेगा सांभर के लोगों को रोजगार मिलना बेहद ही मुश्किल भरा काम है। राजनीतिक उपेक्षा व छिछली राजनीतिक की वजह से सांभर में जो कुछ था वह भी कम होता जा रहा है यानी इसके अस्तित्व को ही खत्म कर दिया गया है। गौर करने लायक बात यह भी है कि सांभर उपखण्ड मुख्यालय जिसे उप जिले का दर्जा तो हासिल है लेकिन सुविधायें ग्राम पंचायतों से बेहतर नहीं है, तमाम सरकारी व न्यायियक कार्यालयों की मौजूदगी के बावजूद सांभर अब सूना होने लगा है, जिसका प्रमुख कारण रोजगार की कमी के चलते अब युवाओं का भी मन यहां से टूट चुका है। 

सांभर में इण्डस्ट्रीज लगवाने के लिये जो प्रयास सांसद व विधायक स्तर होने से चाहिये थे आज तक नहीं हो सके, लेकिन वोटों की राजनीति कर अपना उल्लू साधने में इनको महारत हासिल है। यहां के लोगों का कहना है कि जब तक सांभर में कल कारखाने लगाने की दिशा में सरकार खुद कोई ठोस प्रयास नहीं करेगी तब तक रोजगार के अभाव में ऐसे लोगों के सामने सांभर छोड़ने के अलावा दूसरा कोई रास्ता ही नहीं बचेगा तो अन्य सरकारी सुविधाये भी किस काम की रह जायेगी। लोगों का यह भी कहना है कि सांभर के वजूद को बचाना है और आने वाली पीढी का भविष्य बेहतर बनाना है तो स्थायी रोजगार के लिये सरकार पर दबाव बनाकर कोई न कीई इण्डस्ट्रीज स्थापित करवानी होगी अन्यथा सांभर इतिहास के पन्नों तक सिमट कर रह जायेगा।