पुडुचेरी में कांटे की लड़ाई

लेखक : लोकपाल सेठी

(वरिष्ठ लेखक, पत्रकार एवं राजनीतिक विश्लेषक) 

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धुर दक्षिण में स्थित केंद्र शासित प्रदेश पुदुचेरी का राष्ट्रीय राजनीति में महत्व नगण्य सा रहा है। लेकिन पिछले कुछ  महीनों से यहाँ के राजनीतिक घटना चक्र के चलते यह छोटा सा राज्य राष्ट्रीय अखबारों की सुर्ख़ियों में रहा। कारण, तमिलनाडु की तरह तमिल भाषी इस छोटे से राज्य में, जो कभी फ्रांस का उपनिवेश था, इस बार विधान सभा बड़े दिलचस्प हो गए है।

यहाँ दो गठबन्धनो में लडाई कांटे की होने वाली है। इस राज्य में या तो कांग्रेस का वर्चस्व रहा है या कांग्रेस से अलग हुए धड़े का.. दोनों ही गठबन्धनो  में   राष्ट्रीय दलों, कांग्रेस और बीजेपी, का स्थान दोयम दर्जे का है। क्षेत्रीय दल ही इन गठबन्धनो का नेतृत्व कर रहे है।

राज्य विधान सभा की यहाँ कुल 30 सीटें है और सभी की सभी तीस सीटों पर चुनावी लड़ाई कांटे की है। यहाँ राष्ट्रीय लोकतान्त्रिक मोर्चे का नेतृत्व, लगभग के दशक पूर्व कांग्रेस से अलग हो बनी आल इंडिया एन रंगास्वामी कांग्रेस के पास है। यह कुल मिलाकर  16 सीटेंलड़ रही है। जबकि बीजेपी और इसके सहयोगी दल अन्नाद्रमुक के हिस्से में 14 सीटें आयी है। लेकिन दोनों  दलों ने अभी अपनी सीटों का बंटवारा करना है। दोनों दल अधिक से अधिक से सीटें चाहते है। लेकिन दोनों दल इस बात को मान गए है कि आल इंडिया एन. रंगास्वामी कांग्रेस के मुखिया एन रंगास्वामी को मुख्यमत्री के रूप में पेश किया जाये। 

71 वर्षीय रंगास्वामी अविवाहित है। वे 12 वर्ष तक राज्य केमुख्यमत्री रहे है। गुटबंदी के चलते उन्होंने 2011 कांग्रेस से अलग होकर अपने नाम से कांग्रेस बना ली थी और तब राज्य में इसी नयी पार्टी की सरकार बनी थी। वे साफ सुथरी छवि वाले और सबको आसानी से मिल सकने वाले नेता है। वे राज्य के बहुसख्यक समुदाय वन्नियार से आते है तथा वे इस समुदाय के एक छत्र नेता माने जाते है। दो महीने पहले  उन्होने राज्य की कांग्रेस सरकार को गिराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। 2016 के विधान सभा के चुनावों में उनकी पार्टी को 9 सीटें मिली थी और वह सदन में सबसे बड़ाविपक्षी दल था। रंगास्वामी ने 2019 के लोकसभा चुनावों में  बीजेपी का साथ दिया था। उसी समय संकेत मिलने लगे थे कि विधान सभा का चुनाव दोनों दल मिलकर ही लड़ेंगे।

बीजेपी हर हालत में यहाँ सत्ता में आना चाहती है ताकि वह आने वाले समय में वह यहाँ से अपने पैर तमिलनाडु में पसार सके। उधर केन्द्रीय स्तर पर जहाँ कांग्रेस संयुक्त प्रगतिशील मोर्चा का नेतृत्व कर रही है। वहां राज्य में इस मोर्चे को धर्मनिरपेक्ष प्रगतिशील मोर्चे का नाम दिया गया है। यहाँ इस मोर्चे के नेतृव  कांग्रेस के पास नहीं है बल्कि द्रमुक के पास है। 2016 के विधान सभा चुनाव दोनों ने मिलकर डाला था, कांग्रेस ने जहाँ 21 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे वहीँ   द्रमुक को केवल 9 ही मिली थी। कांग्रेस ने 15 सीटों पर जीत हासिल की वही द्रमुक को दो सीटें पाकर ही संतोष करना पड़ा। लेकिन दोनों दल मिलकर     सरकार बनाने में सफल रहे। उस समय रंगास्वामी ने अपने दल को कांग्रेस में विलय करने की पेशकश की थी। लेकिन कांग्रेस की ओर से मुख्यमत्री पद के दावेदार व नारायणसामी के दबाव में उनकी पेशकश को ठुकरा दिया था।

इस बार द्रमुक ने नेताओं ने साफ कर दिया था कि मोर्चे का नेतृत्व उनके पास रहेगा। सीटों के बंटवारे में द्रमुक ने 15 अपने रखीं है और कांग्रेस को 14 सीटें ही दी है। एक सीट कम्युनिस्ट पार्टी को दी गयी है।

कांग्रेस सरकार के मुख्यमंत्री के रूप में नारायणसामी का उप राज्यपाल किरण बेदी से लगातार टकराव रहा। एक बार तो वे अपने पूरे मत्रिमंडल के साथ बेदी के खिलाफ सड़कों पर उतर आये थे। उन्होंने कई बार कहा कि अगले चुनाव में पार्टी किरण बेदी की कथित तानाशाही को अपना प्रमुख चुनावी मुद्दा बनायेंगें .बीजेपी ने इस बात को ठीक से भांप लिया। लगभग दो महीने पहले केन्द्र ने बेदी को उनके पद से हटा दिया। इसके साथ ही बीजेपी ने कांग्रेस के हाथ से एक बड़ा चुनावी मुद्दा खींच लिया।

केवल इतना ही नहीं। यहाँ उप राज्यपाल के पद पर कोई नियुक्ति नहीं की गयी बल्कि आंध्र प्रदेश की राज्यपाल तमिलिसाई सौन्द्रराजन का पुडुचेरी का अतिरिक्त कार्यभार दे दिया। ऐसा बीजेपी के केंद्रीय नेताओं ने बड़ा सोच समझा कर किया गया। वे तमिल मूल की है तथा तमिलनाडु बीजेपी की प्रदेश अध्यक्ष भी रही है। वे कुछ समय तक बीजेपी की राष्ट्रीय  सचिव भी रही है। इससे भी बढ़कर बात यह है कि वे वन्नियार समुदाय से आती जो पुडुचेरी में सबसे बड़ा जातीय समुदाय है।

उधर पूर्व मुख्यमंत्री नारायणसामी राज्य में कभी भी पार्टी केबड़े नेता नहीं रहे। उनकी सबसे बड़ी योग्यता यह है कि वे गाँधी परिवार के बहुत नज़दीक माने  जाते है। इसी के चलते 2016 में राज्य पार्टी के नेताओ के विरोध के बावजूद उन्हें राज्य का मुख्यमंत्री बना दिया गया था, इन सारी परिस्थितियों के बावजूद  दोनों मोर्चों में लडाई कांटे की लग रही है और बीजेपी पूरी ताकत लगा धुर दक्षिण में कमल खिलाने की कोशिश में लगी है। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार हैं)