विचार बिकते हैं, बोलो खरीदोगे.....?

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चाणक्य के नाम से कौन परिचित नहीं है ? चाणक्य आज भी दुनिया के दिमाग़ में इसलिए छाए हुए हैं कि उनकी राजनीतिक रणनीति बनाने में कोई जोड़ ही नहीं थी। इस ब्राह्मण विद्वान को पराजय किसी कीमत मत पर बर्दाश्त नहीं थी। उनके कौटिल्य नाम से दिए गए अर्थशास्त्र के सिद्धांत आज भी प्रसिद्ध हैं। कुछ सालों में प्रशांत किशोर भी एक तरह से चाणक्य के तबके से निकले हैं। पीके नाम से चर्चित बिहार निवासी उक्त सज्जन फ़िलहाल पश्चिम बंगाल में ममता बैनर्जी के मुख्य चुनावी सलाहकार होने की वजह से ख़बरों में हैं ही। उन्हें पंजाब सरकार ने भी अपने साथ जोड़ लिया है। 

पंजाब के मुख्यमंत्री केप्टन अमरिंदर सिंह ने हाल में जानकारी दी है कि मेरी सरकार अब प्रशांत किशोर की सेवाएं लेगी। पीके प्रति माह एक रुपया सैलरी लेंगे, मग़र उन्हें काबीना मंत्री का ठाठ-बाठ मिलेगा। वे पश्चिम बंगाल में ममता बैनर्जी को तत्काल छोडकर नहीं आ रहे हैं, लेकिन उन्होंने घोषणा कर दी है कि यदि पश्चिम बंगाल में  भाजपा 100 सीटें भी ले आई तो वे अपनी राजनीतिक सलाहकार कम्पनी बंद कर देंगे और नया काम शुरू करेंगे। कहने वाले कह रहे हैं कि कहीं प्रशांत किशोर राजनीति से मुक्ति लेकर विचार विमर्श की कोई नई दुकान तो नहीं खोलेंगे? कहा जाता है कि 2014 के चुनाव में पहली बार जब पीएम नरेंद्र मोदी की केन्द्र में सरकार बनी थी तो उसके प्रचार अभियान के पीछे प्रशांत किशोर का दिमाग़ भी प्रमुख रूप से काम कर रहा था। कहा जाता है कि नरेन्द्र मोदी तो न तो दिल्ली में दरबार सजा लिया पर पीके को पीछे की अंतिम कुर्सी भी नहीं मिली। इसे राजनीति में तो आजकल एक दूसरे को निपटाया जाना भी कहा जाता है।

शिष्ट भाषा में यह भी कह सकते कि पीके तो किसी भी पार्टी का वैचारिक चेहरा होते हैं जैसे योगेश यादव जो कभी आम आदमी पार्टी में भी यही दमख़म रखते थे। वे इन दिनों किसान आंदोलन के उड़न खटोले पर सवार हैं। ऐसा कदापि नहीं है कि बुद्धिमत्ता के मामले में प्रशांत किसी से कमतर बैठते हैं, लेकिन दुःखद बात है कि बुद्धिजनों की विशेष रूप से भारतीय राजनीति में क्या जरूरत? बतातें हैं कि बिहार में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का उन्हें कभी छोटा भाई तक माना जात था। यह दूसरे या तीसरे मुख्यमंत्री पद के कार्यकाल की बात है। उन दिनों पीके पूरे शबाब पर थे। उनके दर्शन के लिए लोग इंतजार करते थे। मीडिया शाय माने जाने वाले इस 48 की उम्र के बीच आने वाले इस बंदे की रणनीति को लेकर कहा जाता है कि उनके काम करने से पश्चिम बंगाल में टीएमसी में नाराजगी इतनी बढ़ कि उन्हीं के कारण छोटे बड़े नेताओ की ममाता की पार्टी में इस क़दर रेलम पेल मची कि स्थिति आपे से बाहर निकल गई बताई जाती है।लेकिन, प्रशांत किशोर अलग मिट्टी के बने हुए हैं। वे कहते हैं कि मुझे अपने का जुनून होता है।

कोई लतीफे सुनाने के लिए तो रखा नहीं गया है। जान लें भाजपा के लिए पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनाव परिणाम जो 2 मई 2021 को आएंगे, देश के राजनीतिक दलों ने पूरी फोर्स लगा दी है। पहले यह सत्ता संघर्ष ममता बैनर्जी और भाजपा के बीच माना जा रहा था, लेकिन अब तो विपक्षी गठबंधन भी अपनी ज़मीन तैयार करते दिखता है। संभव है अतः यह गठजोड़ रंगत बदल दें। इसमें कांग्रेस के अलावा वामपंथी एवं मुस्लिम संगठन भी प्रमुख रूप से शामिल हैं। प्रशांत किशोर को एओ सुहाना सफर जरूर याद आता होगा जब वे विश्व स्वास्थ्य संगठन एवं यूनिसेफ से जुड़े थे। 

इसी काल खण्ड की वजह से उन्होंने एक बार तत्कालीन पीएम मनमोहन सिंह को देश की स्वास्थ्य सेवाओं में बुनियादी बदलाव लाने को सुझाव देने चाहे। पीएम ने भाव नहीं दिए बताया जाता है कि लेकिन पीके ने राहुल गांधी से मिलने की जुगत भिड़ा ही ली। पूर्व कांग्रेस अध्य्क्ष राहुल गाँधी ने समय दे ही दिया। खुशी से लबरेज़ पीके का जब सामना राहुल गांधी से हुआ तो कहते हैं कि राहुल ने पीके की सभी बातें ध्यान से सुनीं। फिर राहुल बाबा ने बड़ा रोचक जवाब दिया। कहा, आप अमेठी में सरकारी अस्पताल के इंचार्ज का पद जाकर फ़ौरन सम्हाल लीजिए। मैं आपके सामने अमेठी में सम्बन्धितों को फोन पर कह देता हूँ। प्रशांत किशोर का एक और काग़ज़ी तीर बेकार गया। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार हैं)

लेखक : नवीन जैन

वरिष्ठ पत्रकार

इंदौर।   9893518228